सीताफल आइसक्रीम पर तय हुआ बुआ-भतीजे में सीटों का बँटवारा

12:06 am Jan 06, 2019 | कुमार तथागत । लखनऊ - सत्य हिन्दी

अरसे से बहस का विषय बना उत्तर प्रदेश में सपा-बसपा गठबंधन अब शक्ल लेने लगा है। कांग्रेस महागठबंधन से बाहर हो गई है, पर कुछ छोटे दलों व कम्युनिस्ट पार्टियों के लिए गुंजाइश निकाली गई है। शुक्रवार को सपा प्रमुख अखिलेश यादव और बसपा सुप्रीमो मायावती के बीच रामगोपाल यादव की मौजूदगी में हुई बैठक में महागठबंधन की तमाम पेचीदगियों को सुलझाने का काम हुआ। अखिलेश ने मायावती को उनकी पसंद की सीताफल आइसक्रीम खिलाकर सीटों पर बात पक्की होने की खुशी मनाई।

सपा 36, बसपा 34 सीटों पर लड़ेगी

बैठक से बाहर आए फ़ॉर्मूले के मुताबिक़, सपा और बसपा उत्तर प्रदेश में 70 सीटों पर चुनाव लड़ेंगी जबकि चार सीटें राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के लिए छोड़ी जाएँगी। सपा और बसपा दोनों कांग्रेस की परंपरागत सीटों अमेठी-रायबरेली में प्रत्याशी खड़ा नहीं करेंगी। अभी तक की बातचीत के मुताबिक़, सपा 36 और बसपा 34 सीटों पर लड़ेगी। हालाँकि अमेठी व रायबरेली के लिए भी मायावती को मनाने में अखिलेश यादव को ख़ासी मशक्कत करनी पड़ी। मायावती कम से कम रायबरेली सीट पर तो अपना प्रत्याशी खड़ा करने पर आमादा थीं। आख़िरकार अखिलेश ने उन्हें तैयार कर लिया। गठबंधन तय होने की खुशी बुआ-भतीजे ने मायावती की पसंदीदा सीताफल आइसक्रीम खा कर मनाई। मायावती को मुलायम सिंह यादव समेत तमाम नेता बहन जी कहते हैं और अखिलेशन ने उन्हें कई बार बुआ कह कर बुलाया है। 

6-8 सीटों से ज़्यादा देने को तैयार नहीं

बैठक में कांग्रेस को लेकर सपा-बसपा में काफ़ी लंबी बातचीत हुई। दोनों नेताओं ने माना कि उत्तर प्रदेश में कानपुर, लखनऊ, धौरहरा, वाराणसी, सहारनपुर जैसी कुछ सीटों पर कांग्रेस मजबूती से भाजपा के ख़िलाफ़ लड़ सकती है पर किसी भी सूरत में इसके लिए 6-8 सीटों से ज़्यादा की गुंजाइश नहीं निकली। लेकिन कांग्रेस महागठबंधन में शामिल होने पर 20 सीटों से कम पर मानने को तैयार नहीं थी। सूत्रों का कहना है कि बाराबंकी, सहारनपुर, गाज़ियाबाद, झाँसी जैसी सीटों को लेकर मायावती एकदम अड़ी हुई थीं और उनका कहना है कि कांग्रेस के वोट किसी भी सूरत में ट्रांसफ़र नहीं होंगे लिहाजा उससे गठबंधन को कोई फ़ायदा नहीं होगा।

यह भी पढें: कांग्रेस यूपी में अकेले लड़ेगी लोकसभा चुनाव

सपा और बसपा कांग्रेस को 6-8 सीटों से ज़्यादा देने को तैयार नहीं थे। लेकिन कांग्रेस महागठबंधन में शामिल होने पर 20 सीटों से कम पर मानने को तैयार नहीं थी।

मायावती ने अखिलेश को, कांग्रेस के साथ 1996 में विधानसभा चुनाव में हुए अपने व पिछले चुनाव में सपा के गठबंधन की याद दिलाते हुए कहा कि किसी भी दशा में इससे कोई लाभ नहीं होने वाला। इतना ही नहीं, उन्होंने कहा कि उपचुनाव में फूलपुर व गोरखपुर लोकसभा जैसी मुश्किल सीटें कांग्रेस प्रत्याशी के रहते विपक्ष ने जीत ली थी जबकि कैराना में कांग्रेस के समर्थन के बाद भी मुश्किल से 50000 वोटों से जीत मिली। कैराना में हर हाल में समीकरण ज़्यादा मुफ़ीद थे।

रालोद के लिए मथुरा, बागपत, मुज़फ़्फरनगर सहित पश्चिम की एक और सीट छोड़ने पर भी सहमति बन गई। यहाँ भी मायावती, रालोद को पहले दो और बाद में केवल तीन सीटें देने पर अड़ी रहीं, पर अखिलेश ने उन्हें पश्चिम में जाट वोटों का समीकरण समझा कर मनाया।

वाम दलों का साथ चाहते हैं अखिलेश

अमेठी-रायबरेली के बाद महागठबंधन की छोड़ी जा रही चार सीटें ज़रूर सबके लिए दिलचस्पी का सबब हैं। दरअसल महागठबंधन को व्यापक दिखाने, प्रचारित करने के लिए अखिलेश यादव इसमें वाम दलों को भी लाने की वकालत कर रहे हैं। उनका कहना है कि वाम दलों को दो सीटें और दो सीटें पीस पार्टी, सुहेलदेव राजभर भारतीय समाज पार्टी जैसों को देने का लाभ होगा। 

अखिलेश का कहना है कि केंद्र की राजनीति के लिहाज से वाम दलों को अपने पाले में रखना ज़रूरी है। मायावती के दो सीटें गंवाने के सवाल पर उनका तर्क था कि संसाधनों से मदद करने की दशा में वाम दल भी दो सीटों पर मजबूत प्रदर्शन करेंगे और जीत सकते हैं। इससे विपक्षी एकता का बड़ा संदेश जाएगा। हाल ही में अखिलेश यादव ने वाम नेता अतुल अंजान व एनसीपी नेताओं से मुलाकात भी की थी।