क्या तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) की नज़र भी प्रधानमंत्री की कुर्सी पर है? दक्षिण भारत के राजनीतिक गलियारे में इन दिनों इसी सवाल को लेकर गरमा-गरम बहस चल रही है। दिलचस्प बात यह है कि जिस तरह से केसीआर राजनीतिक चालें चल रहे हैं उससे यह संकेत मिलने लगे हैं कि वह भी प्रधानमंत्री पद के दावेदार हैं। तेलंगाना विधानसभा चुनाव में तेलंगाना राष्ट्र समिति (टीआरएस) को जिस तरह की शानदार जीत मिली उससे केसीआर का राजनीतिक कद भी काफ़ी बढ़ गया। सूत्रों की मानें तो इसी शानदार जीत से उनकी राजनीतिक महत्वाकांक्षा भी बढ़ गयी।
दुबारा तेलंगाना का मुख्यमंत्री बनने के बाद केसीआर ने ग़ैर-बीजेपी और ग़ैर-कांग्रेस वाला एक राजनीतिक मोर्चा केंद्र में बनाने के लिए कवायद तेज़ कर दी थी।
केसीआर बीजेपी के नेतृत्व वाले एनडीए और कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए के विकल्प के रूप में फ़ेडरल फ़्रंट बनाना चाहते हैं।
फ़ेडरल फ़्रंट के गठन के सिलसिले में वह जेडीएस के देवेगौड़ा और उनके बेटे कुमारस्वामी, तृणमूल कांग्रेस की ममता बनर्जी, बीजेडी के नवीन पटनायक, समाजवादी पार्टी के अखिलेश यादव, बहुजन समाज पार्टी की मायावती, वाईएसआर कांग्रेस के जगन मोहन रेड्डी, सीपीएम के सीताराम येचुरी और पिनरई विजयन से बातचीत कर चुके हैं। इनमें से कुछ नेताओं से केसीआर ने मुलाक़ात भी की है। लेकिन इनमें से ज़्यादातर नेताओं से कोई स्पष्ट आश्वासन केसीआर को नहीं मिला। ये सभी नेता अपने-अपने राज्यों में अपनी स्थिति मज़बूत करने में लगे हुए हैं और लोकसभा चुनाव के बाद ही केंद्र में वैकल्पिक गठबंधन यानी फ़ेडरल फ़्रंट के बारे में बातचीत करने के इच्छुक हैं। बावजूद इसके केसीआर ने चुनाव से पहले ही कांग्रेस और बीजेपी विरोधी ताक़तों को एक मंच पर लाने की कोशिश नहीं रोकी है।
दक्षिण भारत से पीएम दावेदार कौन?
बड़ी बात यह है कि केसीआर को छोड़कर दक्षिण भारत से कोई दूसरा नेता प्रधानमंत्री पद के लिए दावेदारी की कोशिश करता नज़र नहीं आ रहा है। यही वजह भी है कि केसीआर ख़ुद को दक्षिण के सबसे बड़े और असरदार राजनेता के तौर पर उभारने की कोशिश में हैं, ताकि प्रधानमंत्री की दावेदारी मज़बूत की जा सके।
बात कर्नाटक की करें तो देवगौड़ा की उम्र 85 साल है और वह इस उम्र में दुबारा प्रधानमंत्री बनने की सोच भी नहीं रहे हैं। उनके बेटे और कर्नाटक के मुख्यमंत्री कुमारस्वामी भी कर्नाटक से बाहर आने के इच्छुक नहीं हैं। कुमारस्वामी ने इशारों-इशारों में ममता बनर्जी का पक्ष लिया है। तमिलनाडु से क्षेत्रीय पार्टी का कोई नेता प्रधानमंत्री की कुर्सी के क़रीब पहुँचता भी नहीं दिखाई देता है।- डीएमके के अध्यक्ष स्टालिन ने पहले ही ऐलान कर दिया है कि वह राहुल गाँधी को प्रधानमंत्री पद के दावेदार के तौर पर देखना चाहते हैं। सूत्रों की मानें तो एआईएडीएमके बीजेपी के साथ जाएगी और नरेंद्र मोदी की दावेदारी का ही समर्थन करेगी। बात केरल की करें तो वहाँ से भी कोई नेता प्रधानमंत्री के तौर पर ख़ुद को उभारने की कोशिश करता नहीं दिख रहा है।
चंद्रबाबू से कैसे निपटेंगे?
आंध्र के मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू राजनीति के बड़े खिलाड़ी हैं। केंद्र में सरकार बनवाने में पहले भी बड़ी भूमिका निभा चुके हैं। बीजेपी से नाता तोड़ने के बाद से ही वह कांग्रेस के साथ हैं। चंद्रबाबू ऐसे कोई गठबंधन का हिस्सा नहीं बनना चाहते हैं जहाँ केसीआर हैं या फिर उनके राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी जगन मोहन रेड्डी। फ़िलहाल केसीआर और जगन मोहन रेड्डी साथ आ गए हैं। बड़ी बात यह भी है कि चंद्रबाबू के सामने सबसे बड़ी चुनौती आंध्र में अपनी सत्ता बचाने की है। लोकसभा चुनाव के साथ ही आंध्र प्रदेश विधानसभा के भी चुनाव होंगे। इस बार चंद्रबाबू को जगन मोहन रेड्डी से कड़ी चुनौती मिल रही है। पिछले चुनाव में बीजेपी और फ़िल्मस्टार पवन कल्याण की जनसेना उनके साथ थी, इस बार चंद्रबाबू अकेले हैं।
पीएम बनने के लिए महायज्ञ!
दक्षिण की इन्हीं राजनीतिक परिस्थितियों से भलीभाँति वाक़िफ़ केसीआर ने केंद्र की राजनीति में अपनी ख़ास जगह बनाने की कोशिश तेज़ कर दी है। और तो और, पूजा-पाठ, धार्मिक अनुष्ठानों और ज्योतिष-शास्त्र में विश्वास रखने वाले केसीआर ने अपने फ़ॉर्म हौज़ में 'सहस्त्र महारुद्र चंडी यज्ञ' भी करवाया है। वैसे तो केसीआर के क़रीबी लोग यह कह रहे हैं कि तेलंगाना के विकास और जनता के कल्याण के मक़सद से यह महायज्ञ करवाया गया है, लेकिन सूत्रों का कहना है कि प्रधानमंत्री बनने के लिए तेलंगाना के मुख्यमंत्री ने यह पाँच दिवसीय यज्ञ करवाया है।
इन सब के बीच कुछ राजनीतिक जानकारों का कहना है कि केसीआर के लिए प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुँचना आसान नहीं है। केसीआर के प्रधानमंत्री बनने की संभावना उसी समय बनेगी जब एनडीए या यूपीए को बहुमत नहीं मिलेगा। इतना ही नहीं, चुनाव के बाद अगर यह तय हुआ कि न कांग्रेस के नेतृत्व वाली सरकार बनेगी न बीजेपी के नेतृत्व वाली सरकार, तब किसी क्षेत्रीय पार्टी के नेता का नाम सामने आएगा।
त्रिशंकु लोकसभा होने की स्थिति में ही ग़ैर-बीजेपी और ग़ैर-कांग्रेस वाली सरकार बन सकती है और इस सरकार का मुखिया किसी क्षेत्रीय दल का नेता हो सकता है और ऐसी ही स्थिति में केसीआर अपनी दावेदारी ठोक सकते हैं।
दावेदारी आसान नहीं
केसीआर के लिए प्रधानमंत्री की कुर्सी तक पहुँचने की राह के आसान न होने की एक बड़ी वजह तेलंगाना से केवल 17 लोकसभा सीटों का होना भी है। मान लिया जाय कि केसीआर अपने राजनीतिक दोस्त असदउद्दीन के साथ मिलकर तेलंगाना की सारी 17 लोकसभा सीटें जीत लेते हैं तब भी प्रधानमंत्री पद के कई ऐसे दावेदार होंगे जिनके पास ज़्यादा लोकसभा सीटें होंगी। अगर सर्वे के परिणामों और संकेतों को सही माना जाय तो ममता बनर्जी, मायावती, अखिलेश यादव, स्टालिन, नवीन पटनायक, शरद पवार के पास ज़्यादा लोकसभा सीटें होंगी। इतना ही नहीं, शरद पवार, ममता बनर्जी, मायावती जैसे नेताओं के पास केंद्र की राजनीति का ज़्यादा अनुभव है। इसी वजह से प्रधानमंत्री की रेस में ममता बनर्जी, मायावती, शरद पवार जैसे दिग्गज नेताओं को पछाड़ना केसीआर के लिए बिलकुल आसान नहीं है।
केसीआर के पास जगन रेड्डी हैं
इसी तथ्य के मद्देनज़र केसीआर ने जगन मोहन रेड्डी को अपने पक्ष में ले लिया है। आंध्र से लोकसभा की पच्चीस सीटें हैं और इनमें से जगन की पार्टी को जितनी भी सीटें मिलें केसीआर उन्हें अपने खाते में डाल कार प्रधानमंत्री पद की दावेदारी कर सकते हैं। वैसे भी केसीआर ने तेलंगाना में सत्ता वापसी करते ही ऐलान कर दिया था कि वह केंद्र की राजनीति में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने को तैयार हैं। लेकिन प्रधानमंत्री पद को लेकर उन्होंने कहीं भी, कभी भी अपनी दावेदारी पेश नहीं की है। लेकिन, तेलंगाना के राजनीतिक गलियारे में यह चर्चा भी है कि केसीआर अपने बेटे के. तारक रामा राव (केटीआर) को तेलंगाना का मुख्यमंत्री बनाएँगे और ख़ुद केंद्र की राजनीति करेंगे।