भारतीय घरों में समान लिंग में शादी (Same Sex Marriage), होमोसेक्सुएलिटी पर बात करने को लेकर आज भी एक लक्ष्मण रेखा खिंची हुई है, जिस पर लोग बात नहीं करना चाहते हैं। लेकिन ऐसे ही पसोपेश के बीच आरएसएस के सरसंघ चालक मोहन भागवत ने एलजीबीटी (Lesbian, Gay, Bisexual, Transgender) समुदाय से हमदर्दी जताते हुए कहा कि इन्हें भी समाज का हिस्सा माना जाना चाहिए। इन्हें भी स्पेस मिलना चाहिए। आरएसएस का एलजीबीटी पर इससे स्पष्ट स्टैंड कभी सामने नहीं आया था। भागवत का बयान ऐसे समय आया है जब भारत सरकार समान लिंग के विवाह को अनुमति देने को तैयार नहीं है और सुप्रीम कोर्ट ने 20 दिनों में भारत सरकार से इस पर जवाब मांगा है। आरएसएस प्रमुख के बयान के बाद भारत सरकार के रुख में बदलाव आ सकता है। इस रिपोर्ट में हम आरएसएस प्रमुख के एलजीबीटी बयान और भारतीय अदालतों में इस पर क्या चल रहा है, इस पर बात करेंगे।
मोहन भागवत ने क्या कहा है
मोहन भागवत ने पांचजन्य और ऑर्गनाइजर को दिए गए एक ंलंबे चौड़े इंटरव्यू में तमाम मुद्दों पर बात की है। एलजीबीटी समुदाय के मुद्दे पर भी उन्होंने अपनी राय रखी है। संघ प्रमुख भागवत ने कहा कि एलजीबीटी को भी समाज का हिस्सा माना जाए, उन्हें भी उचित स्पेस दिया जाए। उन्हें वही सम्मान मिलना चाहिए जो बाकी समुदायों को मिलता रहा है।
भागवत ने कहा - विभिन्न यौन प्राथमिकताएँ बायोलॉजिकल थीं। यह मुद्दा भारत के लिए नया नहीं था। एलजीबीटीक्यू भी बायोलॉजिकल है, यह जीवन जीने का एक तरीका है। उन्होंने आगे कहा-
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हम चाहते हैं कि एलजीबीटीक्यू का अपना स्थान हो और उन्हें यह महसूस हो कि वे भी समाज का हिस्सा हैं। यह इतना आसान मुद्दा है। हमें इसे बढ़ावा देना होगा। हमें उनके विचारों को बढ़ावा देना होगा। इसे हल करने के अन्य सभी तरीके व्यर्थ होंगे। ऐसे मामलों में आरएसएस अपनी परंपराओं पर आधारित ज्ञान पर निर्भर है। (इस मामले में आरएसएस की वो परंपराएं क्या थीं, यह बात मोहन भागवत ने उस इंटरव्यू में साफ नहीं किया)
- मोहन भागवत, संघ प्रमुख, ऑर्गनाइजर में 10 जनवरी 2023
मोहन भागवत ने महाभारत के किरदारों का उदाहरण देकर समलैंगिकता पर अपनी बात रखी है।
आरएसएस प्रमुख मोहन भागवत ने बताया कि कैसे हिंदू समाज में हमेशा समलैंगिक लोगों के लिए जगह थी। उन्होंने महाभारत के उदाहरण से बताया कि जरासंध के दो सेनापति थे, हंस और दिम्भक। जब भगवान कृष्ण ने यह अफवाह फैलाई कि दिम्भक की मृत्यु हो गई है, तो हंस ने आत्महत्या कर ली। दोनों सेनापति इतने करीब थे। ऐसा नहीं है कि ये लोग हमारे देश में कभी मौजूद नहीं थे। ऐसी प्रवृत्ति के लोग जब से मनुष्य सभ्यता अस्तित्व में हैं, तब से हमेशा रहे हैं।
2016 से संघ का रुख बदला
होमोसेक्सुएलिटी को लेकर आरएसएस की विचारधारा में मार्च 2016 से बदलाव आया है। संघ विचारक दत्तात्रेय होसबोले ने इस सिलसिले में पहला बयान दिया था। उन्होंने कहा था कि समलैंगिकता कोई अपराध नहीं है। एक ही लिंग में सेक्स से अगर अन्य लोगों का जीवन नहीं प्रभावित होता है तो समलैंगिकता के लिए सजा नहीं दी जानी चाहिए। होसबोले के शब्द थे - Sexual preference is private and personal. यहां यह बताना जरूरी है कि उस समय तक समलैंगिकता पर दस साल की सजा थी, जिसे सितंबर 2018 के फैसले में सुप्रीम कोर्ट ने गैर अपराध घोषित कर दिया था।
2019 में आरएसएस ने समलैंगिकता पर अपना पक्ष और भी मजबूती से रखा। अक्टूबर 2019 में संघ की छात्र शाखा अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के राष्ट्रीय संगठन सचिव सुनील आम्बेकर ने एक किताब लिखी। जिसका शीर्षक था - 21वीं सदी के लिए आरएसएस का रोडमैप। सुनील आम्बेकर इस किताब में बताया गया था 21वीं सदी में तमाम मुद्दों पर संघ किस तरह आगे बढ़ने वाला है और उसका रुख क्या रहेगा। इस किताब में एक चैप्टर है - परिवार और नए उभरते आधुनिक संबंध (मॉर्डन रिलेशनशिप)। यह चैप्टर दत्तात्रेय होसबोले के उसी विचार से शुरू होता है, जो उन्होंने 2016 में दिया था। चैप्टर में उस कोट को लिखा गया है, जिसका जिक्र मैं ऊपर इस रिपोर्ट में कर चुका हूं।
हालांकि आरएसएस अभी भी उहापोह में है। आरएसएस प्रचार प्रमुख अरुण कुमार के एक बयान को दक्षिणपंथी विचारधारा का प्रचार करने वाले मीडिया ने प्रकाशित किया था, जिसमें अरुण कुमार ने फरमाया था कि आरएसएस का पुराना स्टैंड यही है कि समलैंगिक विवाह और समलैंगिक संबंध प्राकृतिक (नेचुरल) नहीं हैं। इसलिए संघ ऐसे संबंधों को मान्यता नहीं देता है। हालांकि अरुण कुमार के बयान से पहले सुप्रीम कोर्ट का फैसला और दत्तात्रेय होसबोले का बयान आ चुका था। अरुण कुमार के बयान से साफ है कि संघ कहीं न कहीं पसोपेश में है, जबकि 2019 में आई संघ की किताब समलैंगिकता का खुलकर समर्थन कर रही है। बहरहाल, समलैंगिकता को लेकर चर्च और इस्लाम खिलाफ रहे हैं। वेटिकन से इसके बारे में बयान तक जारी किए गए हैं कि समान लिंग सेक्स अप्राकृतिक है। इस्लाम भी इसके खिलाफ है और वहां तो ऐसा करने पर सजा भी निर्धारित है।
होमोसेक्सुएलिटी और अदालत
होमोसेक्सुएलिटी को भारत में अपराध माना जाता रहा है लेकिन 6 सितंबर 2018 को पांच जजों की सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने होमोसेक्सुएलिटी को लीगल यानी कानूनी दर्ज दे दिया, उसे अपराध की परिभाषा से बाहर कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने आईपीसी की धारा 377 की जिस उपधारा के तहत होमोसेक्सुएलिटी को अपराध माना गया था, उसे खारिज कर दिया। लेकिन इसके बावजूद सेम सेक्स मैरिज (समान लिंग में शादी) को मान्यता नहीं मिल सकी। अदालत में फिर से याचिकाएं दायर हुईं। सुप्रीम कोर्ट ने समान लिंग विवाह के मामलों को तमाम राज्यों के हाईकोर्ट को सुनवाई के लिए ट्रांसफर कर दिया। इसके अलावा सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र की मोदी सरकार से 20 दिनों के अंदर इस पर अपना स्टैंड साफ करने को कहा है।
होमोसेक्सुएलिटी पर फैसले के पांच साल बाद भी समलैंगिक विवाह भारत में वैवाहिक कानूनों के तहत रजिस्टर्ड नहीं किए जा रहे हैं और न ही समलैंगिक जोड़े को एक परिवार की इकाई के रूप में सरकारी लाभ मिल रहा है। लेकिन कोर्ट के रुख से लग रहा है कि वो इसे कानूनी दर्जा दिलाएगा। संघ प्रमुख का बयान आने के बाद शायद सरकार भी अब इसे मान्यता दे दे। यानी कानूनी रूप से रजिस्टर्ड करने का आदेश दे दे।
होमोसेक्सुएलिटी को लेकर भारत में अफवाहों का बाजार अतीत में गर्म रहा है। अफवाहों की चपेट में नेता और उनके राजनीतिक दल और संगठन भी आए। कई मामले अखबारों की सुर्खिया तक बने। माउथ पब्लिसिटी के जरिए होमोसेक्सुएलिटी को लेकर तमाम राजनीतिक नेताओं के बारे में तमाम तरह की अफवाहें आज भी कायम हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने जबसे होमोसेक्सुएलिटी को अपराध की सीमा से बाहर किया है, तब से इसे लेकर अफवाहें तो कम हुईं हैं लेकिन लोगों की सोच में बहुत ज्यादा परिवर्तन नहीं आया है। भारतीय घरों में लोग आज भी इस पर बातचीत से कतराते हैं। अगर किसी घर में ट्रांसजेंडर बच्चा होता है तो उसे छिपाया जाता है। उसकी जबरन दूसरे जेंडर तक से शादी कर दी गई और बाद में उसके बुरे नतीजे सामने आए।
अदालतों का रुख एलजीबीटी समुदाय के समर्थन में बहुत खुलकर सामने आ रहा है। भारत के मौजूदा चीफ जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ को इस समुदाय के लोग अपना समर्थक मानते हैं। सुप्रीम कोर्ट की जिस बेंच ने होमोसेक्सुएलिटी को गैर अपराध घोषित किया था, उस बेंच की अगुआई उस समय जस्टिस चंद्रचूड़ ने ही की थी।
वरिष्ठ वकील और एलजीबीटी एक्टिविस्ट सौरभ कृपाल
जाने-माने वरिष्ठ वकील सौरभ किरपाल का नाम जब हाईकोर्ट के जज के रूप में सुप्रीम कोर्ट कॉलिजियम ने भेजा तो लोग चौंक गए। सौरभ कृपाल एलजीबीटी समुदाय के बहुत बड़े एक्टिविस्ट हैं। वो खुलकर बता चुके हैं कि वो समलैंगिक (Gay) हैं। नवंबर 2022 में सौरभ किरपाल ने एनडीटीवी को दिए गए इंटरव्यू में आरोप लगाया था कि केंद्र सरकार इसलिए उनके नाम की बतौर हाईकोर्ट जज इसलिए नहीं मंजूरी दे रही है, क्योंकि वो एलजीबीटी एक्टिविस्ट और गे हैं।
देखना है कि भारत में जिस तरह से एलजीबीटी के पक्ष में संस्थागत विचार सामने आ रहे हैं, उसे भारत की जनता कैसे लेगी, खासकर जब लोग इस पर खुलकर बोलने से कतराते हैं। वक्त इसे तय करेगा। एलजीबीटी ग्रुप और सरकारी आंकड़ों के मुताबिक भारत में करीब 22 लाख लोग एलजीबीटी समुदाय के हैं। ये वो संख्या है, जिसके लोगों ने खुद बताया है। लेकिन एलजीबीटी ग्रुप्स का कहना है कि यह संख्या 22 लाख से ज्यादा है।