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केरल: यूडीएफ की जीत का दारोमदार राहुल पर

केरल: यूडीएफ की जीत का दारोमदार राहुल पर

केरल में मुक़ाबला मार्क्सवादियों के नेतृत्व वाले लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) और कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) के बीच है। 

केरल में बीजेपी ने अपनी पूरी ताक़त झोंक दी है, लेकिन मुक़ाबला मार्क्सवादियों के नेतृत्व वाले लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (एलडीएफ) और कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट (यूडीएफ) के बीच है। और तो और, मुक़ाबला दो नेताओं के बीच आकर सिमट जाता है। यहां मुक़ाबला मार्क्सवादी नेता और केरल के मुख्यमंत्री पिनराई विजयन और कांग्रेस के नेता राहुल गांधी के बीच है। 

कांग्रेस में नेताओं के बीच मचे आपसी घमासान, गुटबाज़ी की वजह से राहुल गांधी ने कमान अपने हाथों में थामी हुई है। सभी नेताओं और गुटों को ख़ुश और संतुष्ट रखने के मक़सद से राहुल गांधी ख़ुद प्रचार में सबसे आगे हैं। राहुल ही केरल में कांग्रेस के 'पोस्टर ब्वॉय' हैं। 

सीधे तौर पर किसी भी नेता को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार न घोषित करने के पीछे का कारण भी कांग्रेस में बगावत की संभावनाओं को ख़त्म करना है। वैसे तो केरल में कांग्रेसी नेताओं के अलग-अलग गुट हैं, लेकिन दो बड़े गुटों की वजह से कांग्रेस आलाकमान फूँक-फूँक कर क़दम रख रहा है। 

चांडी-चेन्निथला के गुट

पूर्व मुख्यमंत्री ओमन चांडी और पूर्व गृह मंत्री रमेश चेन्निथला के अपने-अपने तगड़े गुट हैं। दोनों मुख्यमंत्री पद के दावेदार हैं। दोनों एक-दूसरे से आगे बढ़ने की कोशिश में राजनीति चालें चलते रहते हैं। एक समय जो शीत-युद्ध दो दिग्गज कांग्रेसी नेताओं- करुणाकरन और ए। के। एंटनी के बीच था, ठीक उसी तरह की लड़ाई ओमन चांडी और रमेश चेन्निथला के बीच है। 

ज़्यादातर ईसाई और मुसलमान नेता ओमन चांडी के साथ हैं और ज़्यादातर हिन्दू नेता रमेश चेन्निथला के साथ। वैसे तो ओमन चांडी कांग्रेस की चुनाव अभियान और प्रबंधन समिति के मुखिया हैं और रमेश चेन्निथला विधानसभा में कांग्रेस के नेता, लेकिन राहुल गांधी ही हर मोर्चे पर कांग्रेस का नेतृत्व कर रहे हैं। 

राहुल गांधी के लिए अन्य राज्यों की तुलना में केरल सबसे ज़्यादा मायने रखता है, क्योंकि वे यहाँ की वायनाड लोकसभा सीट से सांसद हैं। पिछले लोकसभा चुनाव में राहुल गांधी ने अमेठी और वायनाड सीट से चुनाव लड़ा था। वे अमेठी से हार गये और वायनाड से जीत गये थे।

निकाय चुनाव में वाम मोर्चा आगे 

राहुल गांधी के केरल से चुनाव लड़ने का असर प्रदेश की राजनीति में साफ़ दिखाई दिया था। 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस और उसकी सहयोगी पार्टियों ने केरल की 21 में 20 लोकसभा सीटें जीतीं। उस समय ऐसा लगा कि विधानसभा चुनाव में कांग्रेस की ही जीत होगी। लेकिन मुख्यमंत्री पिनराई विजयन के नेतृत्व वाले वाम मोर्चा ने स्थानीय निकाय चुनावों में शानदार जीत हासिल की और कांग्रेस की उम्मीदों पर पानी फेर दिया। 

राहुल गांधी ने स्थानीय निकाय चुनाव को स्थानीय नेताओं के भरोसे छोड़ दिया था और तब गुटबाज़ी की वजह कांग्रेस को भारी नुकसान हुआ। सूत्रों का कहना है कि इसलिए राहुल गांधी ने इस बार ख़ुद हर मोर्चे पर आगे रहने और कांग्रेस की सत्ता में वापसी की कोशिश करने का फैसला लिया। 

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प्रयोग कर रहे राहुल

राहुल गांधी ने केरल के लोगों का विश्वास जीतने में जीजान लगा दी है। पारंपरिक तरीके से चुनाव-प्रचार करने के साथ-साथ वे तरह-तरह के नये प्रयोग भी कर रहे हैं। मछुआरों के साथ समुद्र में नाव पर जाना और समुद्र में छलांग लगाकर तैरना, युवाओं और महिलाओं से सीधे संपर्क साधना, गरीबों के साथ भोजन करना, युवाओं के साथ खेलना, ये सब नये प्रयोगों का हिस्सा है।

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युवाओं-महिलाओं को दी तरजीह

उधर, वाम मोर्चा का सारा दारोमदार मुख्यमंत्री विजयन पर है। विजयन वामपंथी दलों के सर्वमान्य नेता बनकर उभरे हैं। लोकसभा चुनाव में वाम मोर्चा की करारी शिकस्त के बावजूद स्थानीय निकाय चुनाव में वाम मोर्चा ने शानदार जीत दर्ज़ की है। नयी रणनीति के तहत काम करते हुए विजयन ने ग्राम पंचायत स्तर से लेकर ज़िला पंचायत स्तर तक युवाओं और महिलाओं को तवज्जो दी। युवाओं और महिलाओं ने बड़ी संख्या में सीटें दिलायीं। विधानसभा चुनाव के लिए भी विजयन ने अपना भरोसा युवाओं और महिलाओं पर जताया है। कुछ वरिष्ठ नेताओं का टिकट काटकर भी युवाओं को आगे बढ़ाया है। 

मौजूदा समय में विजयन केरल के सबसे ताकतवर और लोकप्रिय नेता हैं। 'संकटमोचक' वाली छवि की वजह से इस विधानसभा चुनाव में वे दूसरे सभी नेताओं से आगे नज़र आते हैं। मूसलाधार बारिश की वजह से आयी बाढ़ हो या समुद्र में आया चक्रवाती तूफान, निपाह हो या कोरोना वायरस, विजयन की सरकार ने जिस तरह से लोगों की जान बचाने की कोशिश की, उसकी दुनियाभर में तारीफ हुई। 

विजयन पर लगे आरोप

सबरीमला के अय्यप्पा स्वामी मंदिर में महिलाओं के प्रवेश को लेकर उठे राजनीतिक तूफान से भी विजयन ने केरल को बचाया। सांप्रदायिक सद्भावना कायम रखी। विजयन पर सोना तस्करी मामले में शामिल होने, भ्रष्टाचार और अनियमितताएँ करने वाले नेताओं और अधिकारियों को बचाने के आरोप हैं। लेकिन इन आरोपों को राजनीतिक साज़िश का हिस्सा करार देते हुए उन्होंने विपक्ष पर तीखे हमले किये। 

बड़ी बात यहां यह है कि विजयन पिछड़ी जाति 'एझावा' से हैं और इस वजह से वे दलितों, पिछड़ी जाति के लोगों में काफी लोकप्रिय हैं। एझावा जाति के ज़्यादातर लोग कृषि मजदूर या ताड़ीतासक हैं। केरल में इस जाति के लोगों की आबादी क़रीब बीस फ़ीसदी है। 

छोटे और मझले किसान, कृषि मजदूर और सामान्य मजदूर विजयन को अपने सबसे लोकप्रिय नेता के रूप में देखते हैं। राहुल गांधी की चुनौती ऐसे कद्दावर नेता को सत्ता से बाहर करने की है। वैसे तो बीजेपी ने केरल में अपनी सारी ताक़त लगायी है, लेकिन वह कुछ ख़ास करती नज़र नहीं आ रही है।

'मेट्रो मैन' श्रीधरन के बीजेपी में आने के बावजूद उसका जनाधार नहीं बढ़ा है। राजनीति और चुनाव को सांप्रदायिक रंग देने की बीजेपी की कोशिश भी नाकाम रही है।

सत्ता परिवर्तन होगा?

यही वजह है कि पिछले कई दशकों की तरह की इस बार भी मुक़ाबला वामपंथियों और कांग्रेस के बीच ही है। कांग्रेस का सारा दारोमदार राहुल गांधी पर है तो वामपंथियों का विश्वास विजयन पर क़ायम है। इतिहास बताता है कि केरल में हर पाँच साल बाद सत्ता परिवर्तन होता है और सरकार बदलती है। 

वाम मोर्चा की सरकार के बाद कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूनाइटेड डेमोक्रेटिक फ्रंट की सरकार बनती है, फिर उल्टा होता है। पिछले कई दशकों से केरल के मतदाताओं ने किसी भी पार्टी को दुबारा मौका नहीं दिया और सरकार बदल दी। लेकिन इस बार कई लोगों को लगता है कि नया इतिहास लिखा जाएगा। 

राहुल गांधी के सामने चुनौती इतिहास बदलने से रोकने की है, यानी सत्ता परिवर्तन करवाने और कांग्रेस की सरकार बनवाने की है। कांग्रेस के कार्यकर्ता और ज़्यादातर नेता भी राहुल गांधी के भरोसे ही हैं। इन कार्यकर्ताओं को गुटबाज़ी में मशरूफ़ नेताओं से कोई ख़ास उम्मीद नहीं है। 

लेकिन जिस तरह की लोकप्रियता विजयन ने मुख्यमंत्री के तौर पर हासिल की है, उससे राहुल गांधी के लिए चुनौती कठोर और बड़ी है। जानकार कहते हैं कि अगर राहुल गांधी केरल में कांग्रेस को नहीं जिता पाये तो शायद कांग्रेस में ही उनके खिलाफ़ आवाज़ और मुखर होगी।

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