न्यायाधीशों की नियुक्ति पर सरकार और न्यायपालिका के बीच तो तनातनी चलती ही रही है, हाल में अब संविधान के मूलभूत सिद्धांत को लेकर भी टकराव की स्थिति बनती दिख रही है। सुप्रीम कोर्ट और भारत के मुख्य न्यायाधीश जहाँ संविधान के मूल ढाँचा को बरकरार रखने के पक्ष में तर्क देते रहे हैं, वहीं, अब सरकार की ओर से यह तर्क रखा जाने लगा गया है कि जनता की नुमाइंदा संसद सर्वोच्च है और इसे ही आख़िरकार सब तय करने का अधिकार है। यानी इस तर्क के अनुसार संसद संविधान के हर क़ानून का संशोधन कर सकती है।
कुछ ऐसे ही विचार रखने वाले एक सेवानिवृत्त जज के इंटरव्यू को साझा करते हुए क़ानून मंत्री ने फिर से इस बहस को तेज़ कर दिया है। उन्होंने ट्वीट किया है, 'एक जज की नेक आवाज: भारतीय लोकतंत्र की असली खूबसूरती इसकी सफलता है। जनता अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से स्वयं शासन करती है। चुने हुए प्रतिनिधि लोगों के हितों का प्रतिनिधित्व करते हैं और कानून बनाते हैं। हमारी न्यायपालिका स्वतंत्र है लेकिन हमारा संविधान सर्वोच्च है।'
आगे उन्होंने ट्वीट में कहा है, 'वास्तव में अधिकांश लोग ऐसा ही स्वस्थ विचार रखते हैं। यह केवल वे लोग हैं जो संविधान के प्रावधानों और लोगों के जनादेश की अवहेलना करते हैं, उन्हें लगता है कि वे भारत के संविधान से ऊपर हैं।'
केंद्रीय क़ानून मंत्री किरेण रिजिजू दिल्ली हाई कोर्ट के एक पूर्व न्यायाधीश की टिप्पणियों का हवाला दे रहे थे। दिल्ली के उच्च न्यायालय के रिटायर्ड न्यायाधीश आरएस सोढी ने लॉ स्ट्रीट यू-ट्यूब चैनल के साथ एक साक्षात्कार में कहा, 'सुप्रीम कोर्ट ने पहली बार संविधान का अपहरण कर लिया है। उन्होंने कहा है कि हम खुद न्यायाधीशों को नियुक्त करेंगे। सरकार की इसमें कोई भूमिका नहीं होगी।'
किरेण रिजिजू ने जिस वीडियो को साझा किया है उसमें रिटायर्ड जज ने कहा, 'उच्च न्यायालय सुप्रीम कोर्ट के अधीन नहीं हैं, लेकिन उच्च न्यायालय के न्यायाधीश सुप्रीम कोर्ट की ओर देखना शुरू करते हैं और अधीन हो जाते हैं।'
क़ानून मंत्री का यह बयान न्यायपालिका और सरकार के बीच लंबे समय से चल रहे टकराव में सबसे ताज़ा है।
मूल ढाँचा सिद्धांत मार्गदर्शक: सीजेआई
इस बीच भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ ने संविधान के मूल ढाँचा के सिद्धांत पर जोर दिया है। उन्होंने शनिवार को एक कार्यक्रम में इस सिद्धांत को 'नॉर्थ स्टार' जैसा बताया जो अमूल्य मार्गदर्शन देता है। उन्होंने कहा, 'हमारे संविधान की मूल संरचना, नॉर्थ स्टार की तरह है जो संविधान के व्याख्याकारों और कार्यान्वयन करने वालों को कुछ दिशा देता है।'
सीजेआई ने कहा कि 'हमारे संविधान की मूल संरचना या दर्शन संविधान के वर्चस्व, कानून के शासन, शक्तियों के पृथक्करण, न्यायिक समीक्षा, धर्मनिरपेक्षता, संघवाद, और राष्ट्र की एकता और अखंडता, स्वतंत्रता और व्यक्ति की गरिमा पर आधारित है।'
सीजेआई का यह कथन इसलिए अहम है कि हाल ही में उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने भी न्यायाधीशों की नियुक्ति प्रक्रिया पर सवाल उठाए हैं।
इसी महीने उपराष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने न्यायपालिका की तुलना में विधायिका की शक्तियों का मुद्दा उठाया था। उन्होंने संसद के कामों में सुप्रीम कोर्ट के हस्तक्षेप पर नाराजगी जताई। उन्होंने कहा कि संसद कानून बनाती है और सुप्रीम कोर्ट उसे रद्द कर देता है। उन्होंने पूछा कि क्या संसद द्वारा बनाया गया कानून तभी कानून होगा जब उस पर कोर्ट की मुहर लगेगी।
उपराष्ट्रपति धनखड़ ने 1973 में केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट के फ़ैसले का हवाला देते हुए कहा- 'क्या हम एक लोकतांत्रिक राष्ट्र हैं', इस सवाल का जवाब देना मुश्किल होगा। केशवानंद भारती मामले में सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि संसद के पास संविधान में संशोधन करने का अधिकार है, लेकिन इसकी मूल संरचना में नहीं।
धनखड़ ने कहा कि 1973 में एक बहुत गलत परंपरा शुरू हुई। उन्होंने कहा कि 'केशवानंद भारती केस में सुप्रीम कोर्ट ने मूल संरचना का सिद्धांत दिया कि संसद संविधान संशोधन कर सकती है, लेकिन इसके मूल संरचना को नहीं। कोर्ट को सम्मान के साथ कहना चाहता हूँ कि इससे मैं सहमत नहीं।'
उन्होंने कहा कि संसदीय संप्रभुता और स्वायत्तता से समझौता नहीं होने दिया जा सकता है क्योंकि यह लोकतंत्र के अस्तित्व के लिए सर्वोत्तम है। उन्होंने कहा कि चूंकि विधायिका के पास न्यायिक आदेश लिखने की शक्ति नहीं है, कार्यपालिका और न्यायपालिका के पास भी कानून बनाने का अधिकार नहीं है।
बता दें कि पिछले महीने सुप्रीम कोर्ट कॉलेजियम को लेकर उप राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने कहा था कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग अधिनियम को रद्द करने पर संसद में कोई सवाल नहीं किया गया लेकिन संसद के बनाए कानून को रद्द करना एक गंभीर मुद्दा है। उन्होंने कहा था कि संसद अगर कोई कानून पारित करती है तो वह लोगों की इच्छा को दर्शाती है। उन्होंने तब भारत के मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ की मौजूदगी में सुप्रीम कोर्ट के निर्णय पर सवाल उठाए थे।