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चारा घोटाले के एक और मामले में लालू यादव दोषी करार 

चारा घोटाले के एक और मामले में लालू यादव दोषी करार 

रांची की सीबीआई कोर्ट ने चारा घोटाले से जुड़े डोरंडा कोषागार से निकासी के मामले में फ़ैसला सुनाया है। लालू यादव को अब तक चारा घोटाले से जुड़े पांच मामलों में दोषी करार दिया जा चुका है।

बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री लालू प्रसाद यादव को चारा घोटाले के एक और मामले में दोषी करार दिया गया है। रांची की सीबीआई कोर्ट ने मंगलवार को घोटाले से जुड़े डोरंडा कोषागार से निकासी के मामले में फ़ैसला सुनाया। इस मौक़े पर बड़ी संख्या में लालू व आरजेडी के समर्थक अदालत के बाहर मौजूद थे।

अप्रैल, 2021 में झारखंड उच्च न्यायालय ने लालू यादव को चारा घोटाले में जमानत दी थी। लालू इस मामले में लंबे वक्त तक जेल में रहे थे और कई बार उनकी जमानत याचिकाएं खारिज कर दी गई थीं।

डोरंडा कोषागार से निकासी का मामला 139.35 करोड़ का था। लालू यादव के साथ ही डोरंडा कोषागार से निकासी के मामले से जुड़े 98 अन्य अभियुक्त भी अदालत में मौजूद थे जिनमें से 24 लोगों को दोषमुक्त करार दिया गया जबकि 35 लोगों को 3 साल जेल की सजा सुनाई गई है। इनमें पूर्व सांसद जगदीश शर्मा और पब्लिक अकाउंट्स कमेटी के तत्कालीन चेयरमैन ध्रुव भगत का नाम भी शामिल है। इस मामले में क्या सजा दी जाएगी,अदालत इसका एलान 21 फरवरी को करेगी।

लालू यादव को अब तक चारा घोटाले से जुड़े पांच मामलों में दोषी करार दिया जा चुका है। इनमें चाईबासा कोषागार, देवघर कोषागार और दुमका कोषागार से निकासी मामला भी शामिल है।

क्या है चारा घोटाला?

बिहार में चारा घोटाले का मामला 1985 में पहली बार सामने आया जब नियंत्रक एवं महालेखा परीक्षक (सीएजी) टीएन चतुर्वेदी ने पाया कि बिहार के कोषागार और विभिन्न विभागों से धन निकाला जा रहा है और इसके मासिक हिसाब किताब में देरी हो रही है। साथ ही व्यय की ग़लत रिपोर्टें भी पाई गईं। क़रीब 10 साल बीतने पर यह बड़ा रूप ले चुका था।

लालू प्रसाद के शासनकाल में 1996 में राज्य के वित्त सचिव वीएस दुबे ने सभी ज़िलों के ज़िलाधिकारियों और डिप्टी कमिश्नरों को आदेश दिया कि अतिरिक्त निकासी की जाँच करें। इसी समय डिप्टी कमिश्नर अमित खरे ने चाईबासा के पशुपालन विभाग के कार्यालय पर छापा मारा। 

इस छापेमारी में बड़ी मात्रा में दस्तावेज़ मिले, जिसमें अवैध निकासी और अधिकारियों व आपूर्तिकर्ताओं के बीच साठगांठ का पता चला। 

इसके बाद लालू यादव की सरकार ने अलग-अलग एक सदस्यीय जांच आयोग का गठन किया। पहले आयोग के अध्यक्ष राज्य विकास आयुक्त फूलचंद सिंह थे, जिसका गठन 30 जनवरी, 1996 को किया गया। जब सिंह का नाम भी चार्जशीट में लिया जाने लगा तो इस आयोग को भंग कर दिया गया। दूसरे आयोग का गठन जस्टिस सरवर अली की अध्यक्षता में 10 मार्च, 1996 को किया गया।

इस बीच बीजेपी के तत्कालीन राज्य अध्यक्ष सुशील कुमार मोदी ने पटना उच्च न्यायालय में सीबीआई जांच की मांग करते हुए जनहित याचिका दायर कर दी। न्यायालय ने मामले की सुनवाई करने के बाद मामले को सीबीआई को सौंप दिया। लालू प्रसाद न सिर्फ़ बिहार में प्रभावशाली थे, बल्कि केंद्र में भी किंगमेकर थे। उन्हीं की सहमति से केंद्र में एचडी देवगौड़ा की सरकार बनी थी। देवगौड़ा व लालू प्रसाद के आपसी अहम टकराने लगे थे और कहा जाता है कि लालू के मुँहफट स्वभाव के कारण देवगौड़ा से मतभेद बनने शुरू हुए थे। साथ ही विभिन्न जांच मामलों को लेकर देवगौड़ा के साथ कांग्रेस के सीताराम केसरी और पीवी नरसिम्हाराव में खींचतान चल रही थी। 

लालू प्रसाद ने कवायद की कि सीबीआई के निदेशक पद पर एसएन सिंह की नियुक्ति हो जाए, जिन्हें राव का भी समर्थन हासिल था। आख़िरकार देवगौड़ा ने कर्नाटक कैडर के आईपीएस जोगिंदर सिंह को सीबीआई निदेशक बना दिया। उसके बाद खींचतान इतनी बढ़ी कि कांग्रेस ने देवगौड़ा सरकार से समर्थन वापस ले लिया और उसके बाद इंद्र कुमार गुजराल प्रधानमंत्री बन गए। 

जोगिंदर सिंह ने जब पद से हटाए जाने की संभावना देखी तो उन्होंने चारा घोटाला मामले में आनन फानन में चार्जशीट दाखिल कर दी। जुलाई, 1997 में दाखिल चार्जशीट में लालू प्रसाद एवं उनके पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री जगन्नाथ मिश्र को भी आरोपी बनाया गया।

अनुमानित रूप से चारा घोटाला मामला 900 करोड़ रुपये का माना जाता है। इसमें 64 मामले दर्ज किए गए, जिसमें से 53 याचिकाएं रांची में दायर की गईं। सीबीआई ने 23 जून, 1997 को दाखिल चार्जशीट में लालू प्रसाद और 55 अन्य लोगों को आरोपी बनाया और आईपीसी की धाराओं 420 (धोखाधड़ी) और 120 बी (आपराधिक षड्यंत्र) और भ्रष्टाचार निरोधक अधिनियम की धारा 13 बी में मुक़दमे दर्ज हुए।

सीबीआई न्यायालय ने 5 अप्रैल, 2000 को लालू प्रसाद के साथ उनकी पत्नी राबड़ी देवी को भी सह अभियुक्त बनाया, जो राज्य की तत्कालीन मुख्यमंत्री थीं।

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