हिंदी फ़िल्म ‘सिंघम’ का एक मशहूर डायलॉग है। ‘पुलिस अगर चाहे तो किसी चोर की भी हिम्मत नहीं कि मंदिर से जूते भी चोरी कर सके।’ हमारे यहाँ पुलिस शायद ही कभी ऐसा चाहती है। वो फिर चोरी हो, दंगा हो, या फिर विकास दुबे जैसे गैंगस्टर का मामला। ऐसे में गुजरात के सूरत में हाल ही में बनी एक घटना एक सुखद अपवाद है। यही वजह है कि सोशल मीडिया से लेकर मेनस्ट्रीम मीडिया में हर जगह उसकी चर्चा है।
बात कुछ यूँ है। कोरोना के इस अनलॉक- 2 के दौर में, रात दस बजे कर्फ्यू लग जाने के आधे घंटे बाद, सूरत की एक सड़क पर निकली एक कार में सवार चार लड़कों को पुलिस बंदोबस्त में खड़ी एक एलआरडी सदस्या ने रोका। एलआरडी यानी लोक रक्षक दल। जो गुजरात में बेरोज़गार युवाओं को रोज़गार देने के लिए और पुलिस में नयी भर्ती न करनी पड़े इसलिए पुलिस की सहायता में बनाया गया है। जो हायरार्की में पुलिस कॉन्स्टेबल से भी नीचे आता है, और मामूली-सी तनख्वाह में वो लोग पुलिस की ड्यूटी करते हैं। वो पुलिस नहीं है, पर उनको पुलिस की ख़ाकी वर्दी मिलती है और एक डंडा भी।
इस कहानी की नायिका सुनीता यादव इसी तरह लोक रक्षक दल की सदस्या हैं जो उस दिन सूरत में रात की ड्यूटी पर थीं। कर्फ्यू भंग के लिये सुनीता ने एक कार को रोका तो लड़कों ने रौब झाड़ने के लिए अपने एक दोस्त – गुजरात के स्वास्थ्य राज्य मंत्री किशोर कानाणी के बेटे प्रकाश को मौक़े पर बुलाया।
असली कहानी अब शुरू हुई। मंत्री का बेटा प्रकाश अपने पिता की कार लेकर तुरंत ही मौक़े पर आ गया और अपने देश में मंत्रियों के बेटे जिस तरह पुलिस पर रौब झाड़ते हैं ऐसे ही अपने दोस्तों को छुड़वाने के लिए कहने लगा। पर आज मामला उलटा हो गया। सुनीता ने मानो मंत्री के बेटे को रिमांड पर ही ले लिया। पहला सवाल- आप कर्फ्यू में किसकी परमिशन से बाहर निकले दूसरा सवाल- आपकी कार पर ‘एमएलए गुजरात’ लिखा हुआ है, क्या आप एमएलए हैं, अगर नहीं, तो आप एमएलए लिखी कार कैसे चला सकते हैं
मंत्री के बेटे के लिये भी ये अनोखा अनुभव था। उसने सोचा ही नहीं था कि अपने पिताजी के होम टाउन में कोई पुलिसवाला या वाली उसको इस तरह डाँट सकता है। वो हड़बड़ा गया। उसने अपना परिचय देते हुए कहा कि वो गुजरात के स्वास्थ्य राज्य मंत्री किशोर कानाणी का बेटा प्रकाश है। सुनीता को मानो उससे कोई फर्क ही नहीं पड़ा। उसने कहा कि कार आपके पिताजी की है। वो कार में हैं नहीं तो आप ‘एमएलए गुजरात’ लिखी हुई कार कैसे चला सकते हैं पहले कार से ये ‘एमएलए गुजरात’ की नेम प्लेट हटाइए। सुनीता ने बाक़ायदा मंत्री के बेटे से वो नेम प्लेट हटवाई और लड़का इतना हड़बड़ा गया कि उसने ख़ुद वो नेम प्लेट हटाई भी।
सुनीता की ज़ुबान और दिमाग़ सुप्रीम कोर्ट के किसी सीनियर वकील की तरह तेज़ और तार्किक है। उसका आत्म विश्वास और हिम्मत किसी आईपीएस अफ़सर से कम नहीं है। हाँ, यह बात अलग है कि हमारे यहाँ आईपीएस अफ़सर भी कभी किसी मंत्री या उनके बेटों से इस तरह बात करने की हिम्मत नहीं करते।
अब जो हुआ, वो इससे पहले शायद कभी भी नहीं हुआ था। सुनीता ने मंत्री के बेटे से कहा कि आप कर्फ्यू में बिना इजाज़त बाहर निकले हैं, क्या आपके पिताजी को पता है, बात कराइये उनसे। और मंत्रीजी का बेटा मानो सुनीता से हिप्नोटाईज़ हो गया हो और उसने अपने पिता को मोबाइल फ़ोन लगाया और स्पीकर फ़ोन पर मंत्रीजी की सुनीता से बात कराई। उस दिन मंत्रीजी की भी रात ख़राब थी कि उन्होंने कॉन्स्टेबल से भी नीचे दर्जे वाली पुलिस (जो क़ायदे से पुलिस ही नहीं) से फ़ोन पर बात की। अब बेटे के बाद पिताजी की बारी थी, सुनीता की डाँट सुनने की। सुनीता ने मंत्रीजी को बड़े अदब से ऐसे ही डाँटा जैसे उनके बेटे को – ‘आप मंत्री हैं, आपकी ज़िम्मेदारी है, कि आपका बेटा मास्क पहने – कर्फ्यू में बाहर ना निकले। वो ‘एमएलए गुजरात’ लिखी हुई कार कैसे चला सकता है’ पाँचवीं तक ही पढ़े गुजरात के स्वास्थ्य मंत्री ने ऐसी बातें ना कभी सुनी थीं, ना कभी सोची थी। उनका दिमाग़ फटा और मुँह से निकल गया– ‘मेरा बेटा है, कुछ भी कर सकता है।’ सुनीता फिर भी रुकी नहीं, उन्होंने कहा, ‘आपकी ज़िम्मेदारी बनती है, उसे रोकें।’ मंत्रीजी उवाच– ‘तुमसे जो क़ानूनी कार्रवाई हो सके कर लो।’ बात ख़तम।
खैर, मंत्रीजी से बातचीत ख़तम हुई। सुनीता की बात ख़तम नहीं हुई। लड़कों की रिमांड चालू थी, उसे धमकी मिली कि गंभीर परिणाम भुगतने पड़ेंगे। उसने कहा, ‘तुम्हारे बाप की नौकर नहीं हूँ।’
मामला उसके वरिष्ठ अधिकारी तक पहुँचा। सुनीता ने उनको भी खरी-खरी सुना दी। तब उसे ऑर्डर देकर वहाँ से हटा दिया गया। तब जाकर मंत्रीजी के बेटे की मुक्ति हुई। बाद में सुनीता ने ग़ुस्से में आकर इस्तीफ़ा दे दिया, कहा- ‘ऐसी नौकरी करनी ही नहीं।’
सुनीता ने इस्तीफ़ा तो दे दिया पर हार नहीं मानी। उन्होंने सबको सबक़ सिखाने की ठान ली थी। बड़ी स्मार्टली उन्होंने पूरी की पूरी घटना और मोबाइल पर हुई सभी बातचीत अपने साथी से मोबाइल पर रिकॉर्ड करवा ली थी, जो उसने सोशल मीडिया पर वायरल कर दी।
और बात जंगल में आग की तरह ना सिर्फ़ गुजरात में बल्कि देश और परदेश में भी फैल गई। उसमें गुजरात सरकार का इतना रायता फैला कि मुख्यमंत्री को अपने मंत्री को डाँटना पड़ा। भले ही सुनीता की तरह नहीं, ज़रा हलके से। पर वायरल वीडियो और मीडिया रिपोर्टिंग से दबाव इतना बढ़ा कि आख़िर मंत्री के बेटे और उनके दोस्तों पर सूरत पुलिस को कर्फ्यू भंग के मामले में बाक़ायदा एफ़आईआर दर्ज करनी पड़ी। यह भी देश में पहली बार हुआ।
फ़िलहाल, साढ़े छह करोड़ गुजराती दो खेमों में बँट गए हैं। एक खेमा सुनीता की तारीफ़ करते नहीं थकता और उसकी तुलना किरण बेदी से कर रहा है जिन्होंने एक जमाने में दिल्ली में ग़लत तरीक़े से पार्क प्रधानमंत्री इंदिरा गाँधी की कार को उठा यानी टो कर लिया था। तो दूसरा खेमा जो स्वाभाविक ही बीजेपी का खेमा है सोशल मीडिया से सुनीता की पुरानी तसवीरें खंगाल कर उसे ‘आप’ पार्टी के एक कार्यकर्ता की दोस्त साबित करने में लगा है।
इस बीच सुनीता यादव नेशनल न्यूज़ चैनलों पर बड़े बड़े एंकर्स को ख़ास इंटरव्यू देने में व्यस्त हैं। एक जमाने में एनसीसी कैडेट रही सुनीता यादव का सपना अब आईपीएस अफ़सर बनना है। पर सबसे बड़ा सवाल - लोक रक्षा दल में रह कर मंत्री और अपने अधिकारियों से भी सींग लड़ाने वाली लेडी सिंघम आईपीएस अफ़सर बनकर ये जज़्बा बरकरार रख पाएँगी