आंदोलन का एक साल पूरा, बड़ी संख्या में बॉर्डर्स पर पहुंचे किसान
केंद्र सरकार भले ही कृषि क़ानून वापस लिए जाने का एलान कर चुकी है लेकिन किसान अभी भी जोर-शोर से आंदोलन जारी रखे हुए हैं। आज किसान आंदोलन को एक साल का वक़्त पूरा हो गया है। इस मौक़े पर एक बार फिर पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश से किसान बड़ी संख्या में दिल्ली के बॉर्डर्स पर पहुंचे हैं। कृषि क़ानून वापस होने के बाद किसान बेहद जोश में हैं।
किसानों ने अपनी कुछ मांगें सरकार के सामने रखी हैं और कहा है कि इन्हें लेकर वे आंदोलन जारी रखेंगे। किसान आंदोलन की अगुवाई कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा की एक अहम बैठक 27 नवंबर को होने जा रही है। इसमें आंदोलन को लेकर कोई अहम फ़ैसला होने की उम्मीद है।
इस बीच सरकार ने कृषि क़ानूनों को रद्द करने की प्रक्रिया तेज़ कर दी है। कैबिनेट की बैठक में इन क़ानूनों को रद्द किए जाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी गई है। 29 नवंबर से शुरू हो रहे संसद सत्र के पहले ही दिन इन्हें रद्द करने की तैयारी है। किसानों ने भी 29 नवंबर को ट्रैक्टर्स के जरिये दिल्ली चलो का नारा दिया है।
बीते एक साल के दौरान किसान ठंड, गर्मी और भयंकर बरसात से भी नहीं डिगे और खूंटा गाड़कर बैठे रहे। इस दौरान उन्होंने रेल रोको से लेकर भारत बंद तक कई आयोजन किए। ग़ाज़ीपुर बॉर्डर से लेकर टिकरी और सिंघु बॉर्डर पर किसानों का जमावड़ा लगा रहा।
बीजेपी नेताओं का हुआ विरोध
किसान आंदोलन के कारण बीजेपी के नेताओं को जबरदस्त विरोध का सामना करना पड़ा। पंजाब में तो बीजेपी के नेताओं का छोटे-छोटे कार्यक्रम तक करना मुश्किल हो गया था। पश्चिमी उत्तर प्रदेश और हरियाणा में भी कई जगहों पर बीजेपी नेताओं का गांवों में घुसना मुश्किल हो गया था।
टेनी की बर्खास्तगी की मांग
किसान केंद्रीय मंत्री अजय मिश्रा टेनी को मंत्रिमंडल से बर्खास्त करने की मांग पर अड़े हैं। अजय मिश्रा टेनी लखीमपुर खीरी हिंसा मामले के मुख्य अभियुक्त आशीष मिश्रा टेनी के पिता हैं। टेनी को बर्खास्त करने को लेकर कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी वाड्रा ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को खत लिखा था।
किसान नेता राकेश टिकैत ने कहा है कि एमएसपी पर गारंटी क़ानून के बिना बात आगे नहीं बढ़ सकती। उन्होंने कहा कि सरकार को बातचीत कर किसानों की बाक़ी मांगों पर भी फ़ैसला लेना चाहिए।
बीजेपी को इस बात का डर था कि किसान आंदोलन के कारण उसे उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड और पंजाब के चुनाव में बड़ा सियासी घाटा हो सकता है।
संघ की ओर से भी बीजेपी नेतृत्व और मोदी सरकार को किसान आंदोलन के बारे में फ़ीडबैक दिया जा चुका था कि यह भारी पड़ सकता है। ऐसे में मोदी सरकार को किसानों और विपक्ष के राजनीतिक दबाव के आगे झुकते हुए उनकी मांगों को मानना ही पड़ा। अब देखना होगा कि सरकार किसानों की इन बाक़ी मांगों को लेकर क्या रुख अपनाती है।