सुप्रीम कोर्ट ने केरल की मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की सरकार को कड़ी फटकार लगाते हुए कहा है कि तोड़फोड़ और संपत्ति को नुक़सान पहुँचाना सदन में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता नहीं है और इसलिए सीपीआईएम के छह सदस्यों के ख़िलाफ़ चल रहा मुक़दमा वापस नहीं लिया जा सकता है।
जस्टिस डी. वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस एम. आर. शाह की सुप्रीम कोर्ट बेंच ने एक अहम फ़ैसले में बुधवार को कहा, "सदस्यों का व्यवहार संवैधानिक तौर-तरीकों का उल्लंघन है। इसलिए ये सदस्य संविधान की धारा 194 के तहत विधायकों को मिलने वाले विशेषाधिकार और उससे मिलने वाली इम्युनिटी का दावा नहीं कर सकते।"
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने केरल हाई कोर्ट के 18 मार्च के फ़ैसले को सही ठहराया। इसके पहले संविधान की धारा 321 के तहत मामला वापस लेने की याचिका को मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट ने खारिज कर दिया था। केरल हाई कोर्ट ने इस फ़ैसले पर अपनी मुहर लगा दी थी।
सुप्रीम कोर्ट के खंडपीठ ने कहा, विशेषाधिकार और इम्युनिटी आपराधिक क़ानूनों से छूट पाने के लिए नहीं होते हैं और ऐसा करना नागरिकों के प्रति विश्वासघात है।
क्या कहा सुप्रीम कोर्ट ने?
सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि विधायकों को विशेषाधिकार इसलिए दिया जाता है कि वे लोगों के लिए काम करें, विधानसभा में तोडफ़ोड़ करने का अधिकार नही दिया गया है।
अदालत ने कहा, "विशेषाधिकार विधायकों को आपराधिक कानून से संरक्षण नही देते हैं।"
अदालत ने कहा कि जनता की सेवा में कोई अड़चन न आए, इसके लिए संविधान ने जन प्रतिनिधियों को विशेषाधिकार दिए हैं न कि मनमानी, अनुशासनहीनता और अन्य उच्छृंखलता के लिए।
केरल सरकार ने केरल हाई कोर्ट के फ़ैसले को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। सर्वोच्च न्यायालय ने 15 जुलाई को इस मामले में फ़ैसला सुरक्षित रखा था।
सुनवाई के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने केरल सरकार से पूछा था, "क्या यह जनहित में था या लोक न्याय की सेवा में कि मुकदमों को वापस लेने की माँग की गई जबकि विधायकों ने लोकतंत्र के गर्भगृह को क्षतिग्रस्त कर दिया था?"