केरल में कोरोना संक्रमण से निपटने के लिए जो काम किया जा रहा है उसकी आलोचना की जानी चाहिए या तारीफ़? वामपंथी पार्टियों द्वारा शासित केरल में कोरोना संक्रमण के जितने मामले आ रहे हैं और इसको लेकर बीजेपी शासित केंद्र की ओर से जिस तरह रिपोर्टें जारी की जा रही हैं उससे इस सवाल का जवाब देना ज़्यादा मुश्किल नहीं होगा।
लेकिन वास्तव में क्या केरल में बेहद बुरे हालात हैं? क्या वहाँ दूसरे राज्यों की अपेक्षा ख़राब ढंग से निपटा जा रहा है? केंद्र सरकार के ही आँकड़े केरल की जो वास्तविक तसवीर पेश करते हैं वह बेहद अलग है।
केरल की व्यवस्था क्या है और विशेषज्ञ क्यों उसकी तारीफ़ें कर रहे हैं यह जानने से पहले यह यह जान लें कि मौजूदा स्थिति क्या है। राज्य में मंगलवार को 23 हज़ार से भी ज़्यादा संक्रमण के मामले आए और 148 लोगों की मौत हुई। अब तक 34.49 लाख संक्रमण के मामले आए हैं और 17 हज़ार 103 लोगों की मौत हुई है। राज्य में अब सक्रिए मामलों की संख्या भी 1.7 लाख से ज़्यादा है। राज्य में पिछले हफ़्ते औसत रूप से 17-20 हज़ार संक्रमण के मामले हर रोज़ आए। जबकि देश में पिछले हफ़्ते हर रोज़ औसत रूप से संक्रमण के मामले क़रीब 42 हज़ार आए।
यही वे आँकड़े हैं जिसको केंद्र की ओर से ऐसे पेश किया जा रहा है जैसे केरल में हालात बेहद ख़राब हैं और इसके लिए कोई न कोई ज़िम्मेदार है। संक्रमण के आँकड़े चेताने वाले ज़रूर हैं, लेकिन अक़्सर सुर्खियाँ बन रही हैं कि केंद्रीय टीमें भेजी जा रही हैं। यह बताया जा रहा है कि किन हालातों की वजह से संक्रमण के मामले बढ़ रहे हैं।
केरल में कभी सोशल डिस्टेंसिंग जैसे कोरोना प्रोटोकॉल के उल्लंघन तो कभी कोरोना मरीजों की निगरानी में लापरवाही और टीकाकरण की कमी को इस विस्फोट का सबसे बड़ा कारण बताया जा रहा है। लेकिन क्या वास्तव में ऐसा है कि केरल में सबसे ख़राब व्यवस्था है या कुछ और वजह है?
क्या हो यदि केरल में संक्रमण के मामलों की जितनी सटीक रिपोर्टिंग हो रही है उतनी किसी और राज्य में नहीं हो रही हो?
सीरो सर्वे में यही बात सामने आई है। सीरो सर्वे में उन लोगों की जाँच की जाती है जिन्हें कोरोना की जाँच नहीं की गई है कि उनको कभी कोरोना हुआ था या नहीं। इस सर्वे में पता चला कि केरल में यह पॉजिटिविटी दर 44 फ़ीसदी थी जबकि पूरे देश में क़रीब 68 % थी। इससे पता चलता है कि केरल कोरोना संक्रमण को रोकने में किसी भी दूसरे राज्यों की तुलना में अधिक सफल रहा है। यह एक उपलब्धि है। खासकर तब जब केरल में जनसंख्या घनत्व काफ़ी ज़्यादा है और यह इस मामले में दूसरे स्थान पर है और लगभग 50% शहरी आबादी है।
केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय बार-बार जोर दे रहा है कि केरल में टीकाकरण तेज़ी से किया जाए। लेकिन इस मामले में केरल काफ़ी आगे है। इसने भी अपनी वयस्क आबादी के लगभग 23% को पूरी तरह से टीका लगा दिया है, जो राष्ट्रीय औसत 11% से दोगुना है। उत्तर प्रदेश और बिहार जैसे राज्यों में तो टीकाकरण और भी कम है। केरल में 53% लोगों को कम से कम एक खुराक लगाई जा चुकी है जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह आँकड़ा सिर्फ़ 39% है।
अन्य राज्यों के साथ केरल में भी संक्रमण के मामले ज़्यादा रहे हैं। केरल में अनुपातिक रूप से ज़्यादा बुजुर्ग आबादी और 20 में से एक व्यक्ति मधुमेह के रोगी होने के बावजूद इसकी मज़बूत स्वास्थ्य प्रणाली बहुत कम मृत्यु दर सुनिश्चित करने में सक्षम थी। राष्ट्रीय स्तर पर 1.3 से अधिक की तुलना में केरल में मृत्यु दर सिर्फ़ 0.5 है।
राज्य में संक्रमण के मामले की रिपोर्ट ज़्यादा होने, 20 हज़ार से ज़्यादा केस आने और सक्रिय मामले 1.7 लाख से ज़्यादा होने के बावजूद कोविड के लिए आईसीयू बेड और वेंटिलेटर अभी भी 40% ऑक्यूपेंसी पर हैं, जबकि कुल कोविड बेड ऑक्यूपेंसी लगभग 57% पर है।
केरल में पिछले साल अक्टूबर में और फिर इस साल मई में दो बार संक्रमण के मामले चरम पर थे, लेकिन स्वास्थ्य प्रणाली की इस हद तक हालत नहीं थी कि लोगों को बिस्तर या ऑक्सीजन नहीं मिल सके और नदियों में लाशें तैरती मिलें। फिर केरल निशाने पर क्यों है?