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कप्पन की रिहाई के लिए केरल जर्नलिस्ट यूनियन ने लड़ी लड़ाई

कप्पन की रिहाई के लिए केरल जर्नलिस्ट यूनियन ने लड़ी लड़ाई

कप्पन का जेल से निकल पाना इतना आसान नहीं था और उनकी रिहाई के लिए केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट ने लगातार लड़ाई लड़ी। 

केरल के पत्रकार सिद्दीक कप्पन को लगभग 2 साल बाद जमानत मिली है। सुप्रीम कोर्ट ने उन्हें जमानत दी है। कप्पन को उत्तर प्रदेश पुलिस ने अक्टूबर, 2020 में दलित युवती के साथ दुष्कर्म और हत्या के मामले में रिपोर्टिंग के लिए हाथरस जाते वक्त गिरफ्तार कर लिया था। उसके बाद से ही वह जेल में थे। कप्पन के साथ ही उनके तीन साथियों को भी पुलिस ने गिरफ्तार किया था। 

लेकिन कप्पन का जेल से निकल पाना इतना आसान नहीं था और उनकी रिहाई के लिए केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट ने लगातार लड़ाई लड़ी है। यूनियन इस कठिन वक्त में उनके परिवार के साथ खड़े रही। 

जब कप्पन को गिरफ्तार किया गया था उस वक्त वह यूनियन की दिल्ली इकाई के सचिव थे। यूनियन ने उनकी गिरफ्तारी को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट में एक बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका दायर की थी। 

यूनियन की दिल्ली इकाई के पूर्व सचिव पीके मणिकंदन ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के निपटारे में 6 महीने का वक्त लगा और जब सुप्रीम कोर्ट इस याचिका पर सुनवाई कर रहा था तो हम निचली अदालत नहीं जा सकते थे।  

उत्तर प्रदेश पुलिस और जेल के अधिकारियों ने जब कप्पन को उनके परिवार और वकील से मिलने की इजाजत नहीं दी तो यूनियन की ओर से इसे सुप्रीम कोर्ट के सामने रखा गया। 

पीके मणिकंदन ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि इसके बाद ही कप्पन को उनके परिवार से मिलने की इजाजत मिल सकी। उन्होंने कहा कि हालांकि तब भी कप्पन की सेहत पर पूरा ध्यान नहीं दिया गया। वह डायबिटीज से पीड़ित हैं और जेल में रहने के दौरान उन्हें अस्पताल में भर्ती कराया गया था। 

यूनियन के उपाध्यक्ष प्रशांत ने द इंडियन एक्सप्रेस से कहा कि जब बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका लंबित थी तो कप्पन को कोरोना हो गया था और उनका स्वास्थ्य खराब होता जा रहा था। इसके बाद सुप्रीम कोर्ट ने उत्तर प्रदेश पुलिस से कहा कि उन्हें एम्स में शिफ्ट किया जाए।

उन्होंने बताया कि बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका के निपटारे के बाद कहा गया कि हमें निचली अदालत का दरवाजा खटखटाना चाहिए और हम मथुरा की एक निचली अदालत में गए। अक्टूबर 2021 में मथुरा की एक निचली अदालत ने कप्पन की जमानत याचिका को खारिज कर दिया। 

प्रशांत ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया कि उत्तर प्रदेश पुलिस कप्पन को लेकर बनाई गई पूरी चार्जशीट भी उन्हें देने के लिए तैयार नहीं थी। इसके लिए उन्होंने मथुरा की अदालत में विशेष याचिका दायर की और मांग की कि यह किसी भी अभियुक्त का मौलिक अधिकार है कि उसे चार्जशीट दी जाए क्योंकि चार्जशीट के आधार पर ही हाई कोर्ट में जमानत याचिका दायर की जा सकती है। 

जनवरी, 2022 में हाई कोर्ट में जमानत याचिका लगाई गई लेकिन हाई कोर्ट ने जमानत याचिका खारिज कर दी और इसके बाद कप्पन के वकील ने सुप्रीम कोर्ट का रुख किया। वहां लंबी लड़ाई के बाद ही कप्पन को जमानत मिल सकी। 

केरल यूनियन ऑफ वर्किंग जर्नलिस्ट केरल के पत्रकारों की संस्था है और केरल में ही इसका मुख्यालय है। कई जगहों पर राज्यों की राजधानियों में भी इससे जुड़े पत्रकार काम कर रहे हैं। निश्चित रूप से अगर इस यूनियन ने कप्पन की रिहाई की लड़ाई को जोरदार ढंग से नहीं लड़ा होता तो कप्पन का जेल के बाहर आ पाना बहुत मुश्किल था। 

मामले की सुनवाई के दौरान सीजेआई यूयू ललित ने पूछा था कि कप्पन को जब हिरासत में लिया गया तो उनके पास से क्या मिला। इस पर उनके वकील महेश जेठमलानी ने कहा था कि कप्पन के पास से आईडी कार्ड और कुछ साहित्य मिला। इस पर सीजेआई ने कहा था कि कप्पन ने हाथरस की पीड़िता की आवाज उठाई, क्या ऐसा करना अपराध था। 

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