पूर्व प्रधानमंत्री पी. वी. नरसिम्हा राव के प्रति तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव (केसीआर) के अचानक उमड़े प्यार और सम्मान ने सभी को चौंका दिया है। विपक्षी पार्टियाँ और कई विश्लेषकों को इसके पीछे सोची-समझी राजनीतिक चाल नज़र आ रही है।
इस चाल की वजह से अब तब नरसिम्हा राव को पूरी तरह से नकारती और नज़रअंदाज़ करती रही कांग्रेस और उनके नाम से भी दूर भागने वाली बीजेपी भी उनकी तारीफ़ करने पर मजबूर हुई हैं।
नरसिम्हा राव की याद में
2020 नरसिम्हा राव का जन्म शताब्दी वर्ष है। इस मौके पर केसीआर ने जिस तरह बड़ी घोषणाएँ की हैं, उसने भुला दिये गये एक दिवंगत नेता को राजनीति के केंद्र में ला खड़ा किया है।केसीआर ने ऐलान किया है कि पीवी के जन्म शताब्दी वर्ष को साल भर मनाया जाएगा। उन्हें श्रद्धांजलि देने के लिए साल भर सरकारी खर्चे पर कार्यक्रम आयोजित किये जाएंगे। उनकी यादों और सेवाओं को हमेशा ताज़ा रखने के लिए एक शानदार स्मारक बनाया जाएगा।
केसीआर ने केंद्र सरकार से पीवी को देश का सर्वोच्च नागरिक सम्मान 'भारतरत्न' देने की माँग कर डाली। पीवी को भारतरत्न दिलवाने के लिए खुद केसीआर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से मिलेंगे।
इस तरह की घोषणाओं ने तेलंगाना में विपक्षी पार्टियों - कांग्रेस, बीजेपी और वामपंथी पार्टियों को पशोपेश में डाल दिया है।
पशोपेश में कांग्रेस!
सबसे ज़्यादा परेशानी कांग्रेसी नेताओं को हुई। जीवन भर कांग्रेस में रहने वाले पीवी के नाम पर जिस तरह केसीआर ने राजनीतिक फ़ायदा उठाने और वाहवाही लूटने की कोशिश की है, उससे कई कांग्रेसियों की नींद उड़ गई है। सूत्रों की मानें तो प्रदेश के कांग्रेसी नेताओं ने हाईकमान से दिशा-निर्देश का अनुरोध किया। दिल्ली से आदेश हुआ कि जिससे राजनीतिक फायदा हो, वह किया जाए।
इसके बाद कांग्रेसी नेता हरकत में आये और पीवी की याद में कार्यक्रम करने लगे। इस पर केसीआर ने एक और शानदार चाल चली। उन्होंने कांग्रेस पर पीवी को नज़रअंदाज़ करने और उनके साथ सही तरह से पेश न आने का आरोप लगाया।
केसीआर ने पीवी को 'तेलंगाना का गौरव' क़रार दिया और उनकी तुलना देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से कर डाली।
क्या करे बीजेपी
विपक्षी कांग्रेस को और भी परेशान करने के मक़सद से केसीआर ने पीवी के नाम पर सभी प्रमुख अख़बारों और न्यूज़ चैनलों को विज्ञापन दे डाले। ज़्यादातर विज्ञापन सरकार की ओर से जारी हुए।राजनीति के जानकारों का कहना है कि केसीआर अच्छी तरह से जानते हैं कि पीवी के मामले में बीजेपी की एक सीमा है और वह उसके बाहर आकर उनकी तारीफ़ नहीं कर सकती।
ब्राह्मण वोट
शुरू में तो कई लोगों को लगा कि केसीआर ब्राह्मण वोटों के लिए पीवी का गुणगान कर रहे हैं, लेकिन जब सभी को यह बात याद आयी कि तेलंगाना में ब्राह्मणों की संख्या कुल जनसंख्या की 3 फ़ीसदी से भी कम है, तो लोगों ने नये दृष्टिकोण से केसीआर की चाल को समझने की कोशिश की।
राजनेताओं को यह समझ आ गया कि केसीआर ने 'तेलंगाना सेंटिमेंट' भुनाने और तेलंगाना से जुड़े हर मुद्दे पर सबसे पहले अपना दावा ठोकने की रणनीति के तहत एक दिवंगत कांग्रेसी नेता को 'अपना' बना लिया।
कांग्रेसियों की दिक्क़त
केसीआर यह भी जानते हैं कि पीवी के मामले में कांग्रेसी भी एक सीमा में बंधे हैं और अगर वे उसके बाहर आकर पीवी को अपना बनाने की कोशिश करेंगे तो वे अपने हाईकमान से दूर हो जाएंगे।कांग्रेस की अध्यक्ष सोनिया गांधी के प्रति पीवी के व्यवहार से सभी वाकिफ़ हैं। सभी कांग्रेसी जानते हैं कि गांधी परिवार पीवी को पसंद नहीं करता।
गांधी परिवार और पीवी के बीच संबंधों के खराब होने का पता उसी समय चल गया था जब पीवी के पार्थिव शरीर को न कांग्रेस मुख्यालय ले जाया गया और न ही उनका अंतिम संस्कार दिल्ली में करवाया गया।
चूंकि पीवी तेलंगाना से सबसे बड़े राजनेता हुए हैं और प्रधानमंत्री जैसे बड़े और ताक़तवर पद पर रहे, केसीआर उन्हें ‘तेलंगाना की शान’ बताते हुए उनके नाम पर भी राजनीतिक फ़ायदा उठाने की कोशिश में हैं।
पहले केसीआर क्यों चुप थे
जब पीवी का निधन हुआ था, केसीआर कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए का हिस्सा थे और मनमोहन सिंह सरकार में मंत्री भी। तब उन्होंने मौके की नज़ाकत को समझते हुए पीवी के सम्बंध में चुप्पी रखना ही बेहतर समझा था।उस समय उन्होंने न तो पीवी को भारतरत्न देने की माँग की थी, न ही उनका अंतिम संस्कार दिल्ली के बजाय हैदराबाद में कराये जाने पर नाराज़गी जाहिर की थी। अब केसीआर के लिए कांग्रेस सहयोगी पार्टी नहीं बल्कि विपक्षी पार्टी है, मौके का पूरा फायदा उठाते हुए वे एक कांग्रेसी नेता के नाम पर अपनी राजनीतिक ज़मीन और भी मजबूत करने में लगे हुए हैं।