कर्नाटक: टीपू सुल्तान का ‘टाइगर ऑफ मैसूर’ टाइटल किताबों से हटेगा

01:20 pm Mar 31, 2022 | सत्य ब्यूरो

कर्नाटक की बीजेपी सरकार राज्य में पढ़ाई जाने वाली किताबों से टीपू सुल्तान के टाइगर ऑफ मैसूर टाइटल को हटाने जा रही है। कर्नाटक के शिक्षा मंत्री बीसी नागेश ने कहा है कि टीपू सुल्तान पर लिखे चैप्टर्स को किताबों से हटाने की कोई योजना नहीं है लेकिन कल्पनाओं पर आधारित संदर्भों को हटाया जाएगा। 

शिक्षा मंत्री ने कहा कि अगर टाइगर ऑफ मैसूर टाइटल को लेकर कोई सुबूत किसी के पास है तो इसे बरकरार रखा जाएगा लेकिन टीपू सुल्तान के महिमामंडन वाला हिस्सा हटा दिया जाएगा।

कर्नाटक में कुछ दिन पहले एक कमेटी ने किताबों में बदलाव को लेकर कुछ सिफारिशें दी थी। ये सिफारिशें विशेषकर टीपू सुल्तान के संदर्भ में थीं।

हिंदूवादी संगठन और बीजेपी के नेता टीपू सुल्तान के खिलाफ लगातार आवाज उठाते रहे हैं। हिंदू संगठनों का कहना है कि टीपू सुल्तान ने बड़े पैमाने पर हिंदुओं का धर्मांतरण कराया था। कर्नाटक के अलावा आंध्र प्रदेश और महाराष्ट्र में भी टीपू सुल्तान को लेकर विवाद हो चुका है। लेकिन यहां यह जानना जरूरी होगा कि टीपू सुल्तान को लेकर बीजेपी नेताओं का पहले रुख क्या था और अब उनके रुख में बदलाव क्यों आ गया है।

श्रंगेरी मठ का पुनर्निर्माण

इतिहास में ऐसे ढेरों उदाहरण हैं, जो ये साबित करते हैं कि टीपू सुल्तान ने हिंदुओं की मदद की। उनके मंदिरों का जीर्णोद्धार करवाया। उसके दरबार में लगभग सारे उच्च अधिकारी हिंदू ब्राह्मण थे। इसका सबसे बड़ा उदाहरण है श्रंगेरी के मठ का पुनर्निर्माण।

श्रंगेरी के मठ की हिंदू धर्म में बड़ी मान्यता है। आदि शंकराचार्य ने 800 वीं शताब्दी में जिन चार हिंदू पीठों की स्थापना की थी, श्रंगेरी का मठ उसमें से एक था। 1790 के आसपास मराठा सेना ने इस मठ को तहस-नहस कर दिया था। मूर्ति को तोड़ दिया था और सारा चढ़ावा लूट लिया था।

मठ के स्वामी को भागकर उडुपी में शरण लेनी पड़ी थी। स्वामी सच्चिदानंद भारती तृतीय ने तब मैसूर के राजा टीपू सुल्तान से मदद की गुहार लगायी थी। दोनों के बीच तक़रीबन तीस चिट्ठियों का आदान-प्रदान हुआ था। ये पत्र आज भी श्रंगेरी मठ के संग्रहालय में सुरक्षित हैं।

टीपू ने एक चिट्ठी में स्वामी सच्चिदानंद भारती तृतीय को लिखकर जवाब भेजा था कि जिन लोगों ने इस पवित्र स्थान के साथ पाप किया है उन्हें जल्दी ही उनके कुकर्मों की सजा मिलेगी। गुरुओं के साथ विश्वासघात का नतीजा यह होगा कि उनका पूरा परिवार बर्बाद हो जायेगा। टीपू सुल्तान ने श्रंगेरी मठ का पुनर्निर्माण कराया था। 

येदियुरप्पा ने पहनी थी टीपू पगड़ी

इतिहास से इतर अगर देखें तो भी साफ़ दिखता है कि बीजेपी के नेताओं का कुछ साल पहले तक टीपू को देखने का नज़रिया अलग था। निवर्तमान मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने जब बीजेपी छोड़ी थी तो वह टीपू के स्मारक पर श्रद्धा सुमन चढ़ाने गये थे। टीपू एक ख़ास तरीक़े की पगड़ी पहनता था और तलवार रखता था। येदिरप्पा ने ऐसी ही पगड़ी पहनी थी और तलवार भी रखी थी। 

शेट्टार ने भी की थी तारीफ़

इतना ही नहीं, बीजेपी के एक और पूर्व मुख्यमंत्री जगदीश शेट्टार की भी ऐसी तसवीरें हैं जिनमें वह टीपू की पगड़ी पहने नज़र आते हैं। शेट्टार ने तो टीपू की भूरि-भूरि प्रशंसा भी की थी। 

‘क्रूसेडर फ़ॉर चेंज’ नाम की एक पत्रिका में शेट्टार ने लिखा था- “आधुनिक राज्य के उनके विचार, राजकाज चलाने का उनका तरीक़ा, उनकी सैनिक दक्षता, सुधार को लेकर उनका उत्साह, उन्हें एक ऐसे नायक के तौर पर स्थापित करता है जो अपने समय से बहुत आगे था...और इतिहास में उन्होंने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी है।’’

राष्ट्रपति भी मुरीद

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने 2017 में कर्नाटक विधानसभा के संयुक्त सत्र में टीपू की जी भरकर तारीफ़ की थी। उन्होंने कहा था, “अंग्रेज़ों से लड़ते हुए वह वीरगति को प्राप्त हुए। वह विकास कार्यों में भी अग्रणी थे। साथ ही युद्ध में मैसूर राकेट के इस्तेमाल में भी उनका कोई सानी नहीं था।” 

बीजेपी के नेताओं ने कोविंद के भाषण पर लीपोपोती करने की कोशिश की थी। बीजेपी की तरफ़ से कहा गया था कि वह कांग्रेस सरकार का लिखा हुआ भाषण पढ़ रहे थे। जबकि तत्कालीन मुख्यमंत्री सिद्धारमैय्या ने इसके जवाब में कहा था कि कोविंद ने अपना लिखा भाषण पढ़ा था।

धार्मिक ध्रुवीकरण की कोशिश

बीजेपी नेताओं के रूख में टीपू सुल्तान को लेकर बदलाव क्यों आ गया, अगर इस सवाल का जवाब ढूंढें तो कर्नाटक में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव की ओर नजर जाती है। राजनीतिक विश्लेषकों के मुताबिक, बीजेपी टीपू सुल्तान के खिलाफ माहौल बनाकर राज्य में धार्मिक आधार पर ध्रुवीकरण कराना चाहती है। वरना एक वक्त में टीपू सुल्तान की तारीफ में कसीदे पढ़ने वाले बीजेपी के नेता अब उसकी मुखालफत पर क्यों उतर आए हैं, इसका जवाब बीजेपी के नेताओं को ही देना चाहिए।