प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने हाल की अपनी चुनावी रैलियों में नया नैरेटिव बनाने की कोशिश की कि कांग्रेस ने किस तरह तरह कर्नाटक में मुसलमानों को आरक्षण दिया। मोदी और भाजपा ने कांग्रेस और मुसलमानों को निशाना बनाते हुए दो बड़े आरोप लगाए। पहले तो यह कहा कि कांग्रेस घोषणापत्र में लिखा है कि कांग्रेस सरकार आई तो वो आप लोगों की संपत्तियां, मंगलसूत्र छीनकर मुसलमानों में बांट देगी। इसके बाद उन्होंने आरोप लगाया कि कर्नाटक में मुसलमानों को आरक्षण कांग्रेस सरकार ने दिया। लेकिन मोदी और भाजपा के दोनों आरोप फैक्ट चेक में झूठे और बेबुनियाद पाए गए। ताजा विवाद आरक्षण को लेकर बनाने की बात कही गई है। लेकिन रिकॉर्ड बताते हैं कि मुस्लिम आरक्षण पहली बार 1995 में एचडी देवेगौड़ा की जनता दल सरकार द्वारा लागू किया गया था। दिलचस्प बात यह है कि देवगौड़ा की जेडीएस (जनता दल सेक्युलर) अब भाजपा के नेतृत्व वाले राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) की सहयोगी है। वो कर्नाटक में भाजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ रही है।
मोदी ने तथ्यात्मक झूठ बोला था
मध्य प्रदेश की रैली में पीएम मोदी ने कांग्रेस को "ओबीसी का सबसे बड़ा दुश्मन" करार देते हुए कहा था- "एक बार फिर, कांग्रेस ने पिछले दरवाजे से ओबीसी के साथ सभी मुस्लिम जातियों को शामिल करके कर्नाटक में धार्मिक आधार पर आरक्षण दिया है। इस कदम से ओबीसी समुदाय को आरक्षण के एक महत्वपूर्ण हिस्से से वंचित कर दिया गया है।”
देवगौड़ा और कुमार स्वामी अब जवाब क्यों नहीं देते
सवाल यह है कि क्या पूर्व प्रधान मंत्री देवगौड़ा और उनके बेटे पूर्व सीएम कुमारस्वामी अभी भी मुसलमानों के लिए कोटा के अपने समर्थन पर कायम हैं। हालांकि देवगौड़ा का पूरा कुनबा अब नरेंद्र मोदी की पैरोकारी के लिए कर्नाटक में खड़ा है। इसीलिए विपक्ष सवाल कर रहा है कि "क्या कभी मुसलमानों के लिए आरक्षण लागू करने का दावा करने वाले देवगौड़ा अब भी अपने रुख पर कायम हैं? या क्या वे नरेंद्र मोदी के सामने आत्मसमर्पण कर चुके हैं और अपना पिछला रुख नहीं बदलेंगे? उन्हें राज्य के लोगों को यह स्पष्ट करना चाहिए।" मोदी का बयान आए 48 घंटे गुजर चुके हैं। लेकिन देवगौड़ा खानदान चुप है।
सरकारी रेकॉर्ड के मुताबिक 1995 में, देवगौड़ा सरकार ने कर्नाटक में मुसलमानों को ओबीसी कोटा के भीतर एक विशिष्ट वर्गीकरण, 2बी के तहत चार प्रतिशत आरक्षण दिया। कर्नाटक सरकार के 14 फरवरी, 1995 के एक आदेश में इस बात पर प्रकाश डाला गया कि यह निर्णय चिन्नप्पा रेड्डी आयोग की रिपोर्ट के विचारों का पालन करता है और समग्र आरक्षण को 50 प्रतिशत तक सीमित करने के सुप्रीम कोर्ट के निर्देश का पालन करता है।
रेड्डी आयोग ने मुसलमानों को ओबीसी सूची के तहत कैटेगरी 2 में शामिल करने की सिफारिश की। इस पर कार्रवाई करते हुए, वीरप्पा मोइली के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने 20 अप्रैल और 25 अप्रैल, 1994 के आदेश के माध्यम से मुसलमानों, बौद्धों और अनुसूचित जाति, ईसाई धर्म में धर्मांतरित लोगों के लिए "अधिक पिछड़े" के रूप में पहचानी जाने वाली श्रेणी 2बी में छह प्रतिशत आरक्षण की घोषणा की। मुसलमानों को चार फीसदी आरक्षण दिया गया था, दो फीसदी बौद्धों और एससी के लिए नामित किया गया था जो ईसाई धर्म में आ गए थे। यह आरक्षण 24 अक्टूबर 1994 से लागू होना था। लेकिन यह लागू नहीं हो पाया यानी कांग्रेस को इसे लागू करने का श्रेय नहीं मिल सका। ऐसा क्यों हुआ, जानिएः
कांग्रेस ने जो आरक्षण दिया था। उसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई थी। 9 सितंबर, 1994 को एक अंतरिम आदेश जारी किया गया, जिसमें कर्नाटक सरकार को अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति और ओबीसी सहित कुल आरक्षण को 50 प्रतिशत तक सीमित करने का निर्देश दिया गया और कांग्रेस सरकार के आदेश पर रोक लगा दी गई। वीरप्पा मोइली के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार को राजनीतिक संकट का सामना करना पड़ा और आदेश लागू करने से पहले 11 दिसंबर 1994 को सरकार गिर गई।
11 दिसंबर 1994 को एचडी देवेगौड़ा कर्नाटक के मुख्यमंत्री बने। 14 फरवरी 1995 को उन्होंने पिछली सरकार के कोटा फैसले को सुप्रीम कोर्ट के अंतरिम फैसले के मुताबिक संशोधनों के साथ लागू कर दिया। ईसाई धर्म और बौद्ध धर्म में परिवर्तित होने वाले एससी, जिन्हें पहले 2 बी के तहत वर्गीकृत किया गया था, उन्हें उसी क्रम में क्रमशः श्रेणी 1 और 2 ए में पुनर्वर्गीकृत किया गया था। 2बी कोटा के तहत, शैक्षणिक संस्थानों और राज्य सरकार की नौकरियों में चार प्रतिशत सीटें मुसलमानों के लिए आरक्षित थीं।
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2006 में, जेडीएस और भाजपा की गठबंधन सरकार बनी, जिसके बाद 2008 में बीएस येदियुरप्पा के नेतृत्व में भाजपा सरकार बनी। हालाँकि, दोनों कार्यकालों के दौरान, इस वर्गीकरण में कोई संशोधन नहीं किया गया।
2019 में, जब भाजपा सरकार सत्ता में लौटी, तो मुख्यमंत्री बसवराज बोम्मई ने 27 मार्च, 2023 को ओबीसी के लिए श्रेणियों 3 ए और 3 बी को समाप्त करने का प्रस्ताव रखा। इसके बजाय, वोक्कालिगा और लिंगायत समुदायों के लिए 2 प्रतिशत आरक्षण के साथ नई श्रेणियों 2 सी और 2 डी का सुझाव दिया गया।
बोम्मई प्रशासन ने मुसलमानों के लिए 2बी श्रेणी को खत्म करने और उन्हें आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों (ईडब्ल्यूएस) के लिए 10 प्रतिशत कोटा में शामिल करने का भी प्रस्ताव रखा। हालाँकि, इसे विरोध का सामना करना पड़ा और कानूनी लड़ाई शुरू हो गई, जिसके कारण प्रस्ताव को स्थगित कर दिया गया।
सुप्रीम कोर्ट ने 13 अप्रैल, 2023 को कहा कि मुसलमानों के लिए चार प्रतिशत ओबीसी कोटा खत्म करने का कर्नाटक सरकार का फैसला "पहली नजर में अस्थिर और त्रुटिपूर्ण" है। विवादास्पद सरकारी आदेश पर बोम्मई सरकार ने तब कहा था कि कोई नई नियुक्ति या प्रवेश नहीं किया जाएगा।
फिलहाल सुप्रीम कोर्ट ने पिछड़ा वर्ग समुदाय के लिए आरक्षण में यथास्थिति बरकरार रखते हुए बीजेपी सरकार के फैसले के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी है.
ऐसा नहीं है कि मोदी इन सारे तथ्यों को नहीं जानते होंगे। वे जानते हैं लेकिन जानबूझकर मुसलमानों के नाम पर ओबीसी हिन्दुओं को उत्तेजित कर रहे हैं। चूंकि अब सारे रेकॉर्ड उपलब्ध हैं। सुप्रीम कोर्ट की कार्यवाही और टिप्पणियां सुरक्षित हैं तो मोदी ओबीसी हिन्दुओं को गुमराह नहीं कर सकते। यहां यह बताना जरूरी है कि मोदी उत्तर भारत में मोहम्मद शमी के नाम पर वोट मांगते हैं। लेकिन दक्षिण भारत में वो मुसलमानों और ओबीसी हिन्दुओं में आरक्षण का मुद्दा उठाकर उन्हें एक दूसरे के खिलाफ खड़े करना चाहते हैं। समय आ गया है कि नेताओं की हर बात को तथ्यों की कसौटी पर तौला जाए। किसी के ईमान का कोई भरोसा नहीं।