लोकसभा चुनाव से पहले कर्नाटक की राजधानी बेंगलुरू में एक अनोखा दृश्य देखने को मिला था। अवसर था पूर्व प्रधानमंत्री एच. डी. देवेगौड़ा के बेटे कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह का। इस समारोह में बीजेपी विरोधी सभी बड़े नेता शामिल हुए थे। दिलचस्प बात तो यह थी कि पुरानी राजनीतिक दुश्मनी भुलाकर कई नेता यहाँ जमा हुए थे। एक मायने में यह नरेंद्र मोदी के ख़िलाफ़ उनके विरोधियों का शक्ति प्रदर्शन था। सोनिया गाँधी, राहुल गाँधी, शरद पवार, चंद्रबाबू नायडू, स्टालिन, मायावती, अखिलेश यादव, तेजस्वी यादव, अजित सिंह, ममता बनर्जी, सीताराम येचुरी, डी. राजा, अरविंद केजरीवाल, हेमंत सोरेन जैसे बड़े नेता कुमारस्वामी के शपथ ग्रहण समारोह में शामिल हुए थे।
2018 में हुए विधानसभा चुनाव में बीजेपी कर्नाटक की 224 सीटों में से 104 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी। 78 सीटों के साथ कांग्रेस दूसरे नंबर पर थी और 37 सीटों के साथ जेडीएस तीसरे नंबर पर। सरकार बनाने के लिए 112 सीटों की ज़रूरत थी। यानी बीजेपी सिर्फ़ 9 सीटों से बहुमत से दूर रह गयी थी। इस चुनाव में सत्ताधारी कांग्रेस की करारी हार हुई थी और ख़ुद मुख्यमंत्री सिद्दारमैया भी एक सीट से चुनाव हार गये थे।
देवेगौड़ा की पार्टी जेडीएस ने भी सिद्दारमैया सरकार/कांग्रेस का पुरजोर विरोध किया था। लेकिन चुनाव परिणाम आने के बाद सारी पुरानी राजनीतिक दुश्मनी भुलाकर कांग्रेस और जेडीएस एक हो गये थे। सबसे बड़ी पार्टी होने के नाते सबसे पहले बीजेपी को सरकार बनाने का न्योता दिया गया। बीजेपी के येदियुरप्पा ने मुख्यमंत्री पद की शपथ भी ली। लेकिन जब उन्हें अहसास हो गया कि उनके पास बहुमत नहीं है तो उन्होंने इस्तीफ़ा दे दिया।
224 सीटों वालीं विधानसभा में सिर्फ़ 37 सीटें जीतने के बावजूद जेडीएस के कुमारस्वामी मुख्यमंत्री बने। बीजेपी को सत्ता में आने से रोकने के लिए कांगेस ने जेडीएस को मुख्यमंत्री की कुर्सी सौंप दी। कांग्रेस के परमेश्वर उपमुख्यमंत्री बने।
लेकिन जिस दिन से कांगेस-जेडीएस गठबंधन की सरकार बनी, तभी से उस पर संकट मंडरा रहा है। बीजेपी ने सरकार गिराने के लिए कई बार ‘ऑपरेशन लोटस’ चलाया लेकिन वह नाकाम रही। कई बार तो कांगेस और जेडीएस के बड़े नेताओं के बीच अनबन की वजह से सरकार पर संकट आया। लेकिन सोनिया गाँधी और देवेगौड़ा के हस्तक्षेप से सरकार बचती गयी।
लोकसभा चुनाव के नतीजे आ जाने के बाद अब सरकार का बचना मुश्किल नहीं नामुमकिन जान पड़ रहा है। कांग्रेस और जेडीएस नेताओं के बीच मतभेद चरम पर हैं। दोनों दलों के नेताओं का एक-दूसरे पर विश्वास भी नहीं रहा है।
लोकसभा चुनाव में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की शर्मनाक हार हुई है। कर्नाटक की 28 लोकसभा सीटों में से कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन सिर्फ़ दो सीटों पर जीत दर्ज कर पाया। एक सीट कांग्रेस ने जीती और एक सीट जेडीएस ने, 25 सीटों पर बीजेपी की जीत हुई। एक सीट पर बीजेपी समर्थित उम्मीदवार की जीत हुई। सबसे बड़ी बात यह रही कि ख़ुद जेडीएस के संस्थापक और पूर्व प्रधानमंत्री देवेगौड़ा चुनाव हार गये। उनके पोते और मुख्यमंत्री कुमारस्वामी के बेटे निखिल कुमारस्वामी भी चुनाव हार गये। देवेगौड़ा और उनके मुख्यमंत्री बेटे को शक है कि कांग्रेस के नेताओं ने उनकी पार्टी के उम्मीदवारों को हराने के लिए काम किया। साथ ही कांग्रेस के कई नेताओं ने परोक्ष रूप से बीजेपी का साथ दिया ताकि चुनाव में देवेगौड़ा और उनके पोतों की हार हो। देवेगौड़ा और कुमारस्वामी को शक यह भी है कि मुख्यमंत्री के बेटे निखिल की हार के लिए कई कांग्रेसी नेताओं ने अपने कार्यकर्ताओं से बीजेपी समर्थित निर्दलीय उम्मीदवार और जानी-मानी फ़िल्म अभिनेत्री सुमलता को वोट देने के लिए कहा था। सुमलता दिवंगत कांग्रेसी नेता और फ़िल्मस्टार अम्बरीश की पत्नी हैं।
वहीं दूसरी तरफ़, कांग्रेस के कद्दावर नेता और पिछली लोकसभा में कांग्रेस संसदीय दल के नेता रहे मल्लिकार्जुन खड़गे, पूर्व केंद्रीय मंत्री वीरप्पा मोइली, मुनियप्पा जैसे बड़े कांग्रेसी नेता भी चुनाव हार गये। कुछ कांग्रेसी नेताओं का कहना है कि कुमारस्वामी सरकार के ख़िलाफ़ जनता की नाराजगी चरम पर है और इसी वजह से लोकसभा चुनाव में कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन की करारी हार हुई है।
राजनीति के जानकारों का कहना है कि करारी हार के बावजूद कुमारवामी सरकार बच जाती अगर चुनाव में देवेगौड़ा और निखिल कुमारस्वामी की हार नहीं होती। ख़ुद मुख्यमंत्री के पिता और बेटे की लोकसभा चुनाव में हार से कुमारस्वामी सरकार का जल्द ही जाना तय है।
सूत्रों के मुताबिक़, कांग्रेस और जेडीएस के कई विधायक बीजेपी के नेता येदियुरप्पा के सीधे संपर्क में हैं। येदियुरप्पा जब कहेंगे, तब ये विधायक बीजेपी के खेमे में आ जाएँगे। बताया जा रहा है कि कांग्रेस के 12 और जेडीएस के 3 विधायक बीजेपी के पाले में आ सकते हैं। फिलहाल कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन के पास 117 विधायक हैं यानी अगर इनके 4 विधायक भी बीजेपी की तरफ़ चले जाते हैं तो सरकार गिर जाएगी। चूंकि मौजूदा विधानसभा का पूरे चार साल का कार्यकाल अभी बाक़ी है, इसलिए बीजेपी फिर से चुनाव नहीं चाहती है।
बीजेपी को इंतजार है कुमारस्वामी सरकार के ख़ुद गिर जाने का। जैसे ही मुख्यमंत्री कुमारस्वामी इस्तीफ़ा देंगे, बीजेपी कर्नाटक में सरकार बनाने का दावा पेश कर देगी।
सरकार बचाने में जुटी कांग्रेस
मौके की नजाकत को समझते हुए कांगेस आलाकमान ने कुमारस्वामी सरकार को बचाने के लिए ग़ुलाम नब़ी आज़ाद और के. सी. वेणुगोपाल को मैदान में उतारा है। दोनों नेताओं को बाग़ियों को मनाने और मंत्रिमंडल का विस्तार कर वरिष्ठ विधायकों की नाराजगी दूर करने की जिम्मेदारी दी गई है। लेकिन कई राजनीतिक जानकार मानते हैं कि सरकार की उल्टी गिनती शुरू हो गयी है और नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री पद पर शपथ लेने के बाद कुमारस्वामी सरकार कभी भी गिर सकती है।
दिलचस्प बात तो यह है कि लोकसभा चुनाव के नतीजे देखने के बाद कर्नाटक में कई विधायक कांग्रेस और जेडीएस से नाता तोड़कर बीजेपी की तरफ़ जाना चाहते हैं। यही हाल दूसरे नेताओं और कार्यकर्ताओं का भी है।
महत्वपूर्ण बात यह भी है कि कांग्रेस और जेडीएस के नेताओं ने हाथ तो मिला लिए थे लेकिन उनके दिल कभी नहीं मिले। यही हाल ज़मीनी स्तर पर दोनों पार्टियों के कार्यकर्ताओं का भी रहा। चूँकि दोनों पार्टियों के नेताओं के बीच अब विश्वास की भी कमी है और विधायकों का अपने ही नेताओं पर से भी विश्वास उठ गया है, ऐसे में कांगेस-जेडीएस गठबंधन सरकार का जाना लगभग तय है।