कर्नाटक में तीन उपमुख्यमंत्री बनाए गए हैं। मुख्यमंत्री बी.एस. येदियुरप्पा ने उपमुख्यमंत्री पद के लिए लक्ष्मण सावदी, गोविंद एम करजोल और अश्वथ नारायण के नाम पर मुहर लगाई है। इन तीनों नामों पर काफ़ी पहले से चर्चा चल रही थी। इसको लेकर पार्टी में अंदरूनी कलह की भी ख़बरें आई थीं। बता दें कि लक्ष्मण सावदी न तो विधायक हैं और न ही वह विधान परिषद के सदस्य हैं। इस पर भी पार्टी नेताओं की ओर से आपत्तियाँ आ रही थीं। इसके साथ ही मुख्यमंत्री येदियुरप्पा ने सोमवार को अपने मंत्रियों को विभाग भी बाँट दिए। तीन उपमुख्यमंत्रियों के साथ ही 14 अन्य मंत्रियों के विभागों का बंटवारा कर दिया गया। उपमुख्यमंत्री
मुख्यमंत्री बी. एस. येदियुरप्पा ने अपने पास उन विभागों को रखा है जिन्हें दूसरे मंत्रियों को आवंटित नहीं किया गया है। उपमुख्यमंत्री गोविंद एम करजोल को पब्लिक वर्क्स डिपार्टमेंट और सामाजिक कल्याण विभाग की अतिरिक्त ज़िम्मेदारी दी गई है। उपमुख्यमंत्री अश्वथ नारायण को उच्च शिक्षा, आईटी व बीटी, विज्ञान और तकनीक की ज़िम्मेदारी सौंपी गई है। लक्ष्मण सावदी को ट्रांसपोर्ट विभाग दिया गया है। इसके अलावा 14 अन्य मंत्रियों को भी विभागों का बँटवारा किया गया है।
बेलगावी से लिंगायत नेता लक्ष्मण सावदी, युवा नेता सीएन अश्वथ नारायण और दलित नेता गोविंद एम करजोल के नामों पर चर्चा काफ़ी पहले से चल रही थी। कई वरिष्ठ नेताओं ने इसे चौंकानेवाला क़दम बताया है। बता दें कि येदियुरप्पा सरकार में उपमुख्यमंत्री पद को लेकर काफ़ी हलचल रही है। इन नामों पर मुहर ऐसे समय में लगी है जब मंत्रिमंडल से बाहर किए गए असंतुष्ट वरिष्ठ नेता पहले से ही विरोध के सुर तेज़ किए हुए हैं।
उपमुख्यमंत्री के लिए जो नाम पहले से ही चल रहे थे इस पर पार्टी के कई नेताओं का विरोध है। मीडिया रिपोर्टों में कहा गया था कि पार्टी के वरिष्ठ नेता इस बात से खफा हैं कि जो एक सीट नहीं जीत सके उनको इतनी बड़ी ज़िम्मेदारी कैसे दी जा सकती है। इन तीन नामों की घोषणा होने से पहले कई वरिष्ठ नेताओं ने तो यहाँ तक कह दिया था कि अगर इन अनुभवहीन नेताओं को उपमुख्यमंत्री का पद मिला तो वे मंत्री का पद भी ग्रहण नहीं करेंगे।
बता दें कि कर्नाटक में सरकार बनाने की बीजेपी की हसरत हाल ही में तब पूरी हुई थी जब वह कांग्रेस और जेडीएस के गठबंधन वाले कई विधायकों को तोड़ने में सफल रही थी। जुलाई के आख़िर में येदियुरप्पा सरकार ने कर्नाटक विधानसभा में विश्वास मत हासिल कर लिया था। दें कि कांग्रेस-जेडीएस गठबंधन वाली सरकार विश्वास मत हासिल न कर पाने के कारण गिर गई थी। कर्नाटक की सत्ता पर लंबे समय से बीजेपी की नज़र थी। विधानसभा चुनाव में सबसे ज़्यादा सीटें जीतने के बाद भी वह सरकार बनाने में नाकामयाब रही थी। सरकार बनाने के लिए उसने ‘ऑपरेशन लोटस’ भी चलाया था और कांग्रेस-जेडीएस के विधायकों को तोड़ने की कोशिश की थी। लेकिन आख़िरकार उसे कुमारस्वामी सरकार को गिराने में सफलता मिल गई थी।