कर्नाटक में आखिरी दौर का चुनाव कई उतार-चढ़ाव देख रहा है। पीएम मोदी और गृह मंत्री अमित शाह के रोड शो के मद्देनजर बीजेपी ने जीत के तमाम दावे कर दिए लेकिन अमित शाह के वायरल वीडियो ने बीजेपी का मोह भंग कर दिया है। रही सही कसर लिंगायत संगठनों के सक्रिय होने और कांग्रेस के पक्ष में बयान देने से पूरी हो गई है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी का आज विजयनगर में रोड शो था, जिसमें जनता की भागीदारी बड़े पैमाने पर देखी गई। इसके मुकाबले पीएम मोदी और अमित शाह के रोड सरकारी तंत्र की उपलब्धि बनकर रह गए।
लिंगायत फोरम ने 6 मई को एक बयान जारी किया। जिसमें कांग्रेस पार्टी को अपना समर्थन देने की घोषणा की है। फोरम ने कांग्रेस को अपना समर्थन देते हुए एक आधिकारिक पत्र जारी किया है, जिसे राज्य के महत्वपूर्ण लिंगायत बहुल क्षेत्रों में पार्टी को बढ़त मिलने के रूप में देखा जा रहा है।
इस करिश्मे को पूर्व सीएम और बीजेपी छोड़कर कांग्रेस में आए प्रमुख लिंगायत नेता जगदीश शेट्टार ने अंजाम दिया। उन्होंने कांग्रेस के लिए समर्थन मांगने के लिए हुबली में लिंगायत समुदाय के संतों से मुलाकात की। शेट्टार भाजपा के प्रमुख नेताओं में से रहे हैं लेकिन बीजेपी के राष्ट्रीय नेतृत्व ने उनका टिकट ऐन वक्त पर काट दिया। शेट्टार को कांग्रेस ने फौरन गले लगा लिया। भाजपा ने ऐसा ही पूर्व डिप्टी सीएम लक्ष्मण सावदी के साथ भी किया। वो भी टिकट कटने के बाद कांग्रेस में शामिल हुए थे। शेट्टार और सावदी दोनों ही येदियुरप्पा के खास थे लेकिन भाजपा आलाकमान ने इसकी चिन्ता नहीं की। संयोग से दोनों ही लिंगायत हैं। लिंगायत समुदाय ने इसे अपनी प्रतिष्ठा से जोड़ लिया। यही वजह है कि जब शेट्टार लिंगायत मठों में समर्थन मांगने पहुंचे तो हर जगह से उन्हें समर्थन मिला। लेकिन लिंगायत फोरम ने जिस तरह बयान और वीडियो जारी कर कांग्रेस को समर्थन दिया, उसने कांग्रेस कार्यकर्ताओं का हौसला बढ़ा दिया है।
जगदीश शेट्टार - राहुल गांधी की मुलाकात
कहां कहां है असर
लिंगायत वोट परंपरागत रूप से राज्य में चुनावी नतीजों में प्रमुख भूमिका निभाते रहे हैं। चुनाव दर चुनाव इस समुदाय का झुकाव भाजपा के पक्ष में रहा है और राज्य के कई लिंगायत बहुल क्षेत्रों को भगवा गढ़ माना जाता है। लेकिन कर्नाटक वीरशैव लिंगायत फोरम द्वारा कांग्रेस को अपना समर्थन देने के साथ ही राज्य में राजनीतिक समीकरण महत्वपूर्ण बदलाव से गुजर सकते हैं।लिंगायत बड़े पैमाने पर उत्तरी कर्नाटक में, बेलगावी, धारवाड़ और गडग जिलों में केंद्रित हैं। बागलकोट, बीजापुर, गुलबर्गा, बीदर और रायचूर में भी उनकी अच्छी खासी मौजूदगी है। वे बड़ी संख्या में दक्षिण कर्नाटक, विशेष रूप से बैंगलोर, मैसूर और मांड्या के विशाल इलाकों में रहते हैं। समुदाय को राज्य में एक प्रमुख जनसांख्यिकीय के रूप में देखा जाता है, उनकी मतदान प्राथमिकताएं अक्सर चुनाव परिणामों को प्रभावित करती हैं।
लिंगायत पर हर पार्टी की नजर क्योंः कांग्रेस, भाजपा और जेडीएस द्वारा चुने गए उम्मीदवारों में से लगभग 45% वोक्कालिगा या लिंगायत समुदाय से हैं। लिंगायत समुदाय से भाजपा के उम्मीदवारों की संख्या (68) सबसे अधिक है, जेडीएस जिसका नेतृत्व एचडी देवेगौड़ा के परिवार के इर्द-गिर्द है, वोक्कालिगा उम्मीदवारों का वर्चस्व है। उसने 43 प्रत्याशी उतारे हैं। कांग्रेस ने 46 लिंगायत मैदान में उतारे हैं।
2023 में प्रत्याशियों को टिकट देने का पैटर्न 2018 की तरह ही है। यह लगातार दूसरा चुनाव है जब बीजेपी ने एक भी मुस्लिम या ईसाई समुदाय से उम्मीदवार नहीं उतारा है। इस बार जेडीएस ने सबसे ज्यादा 22 और कांग्रेस ने 15 मुस्लिम प्रत्याशी उतारे हैं। इस गणित का सीधा असर यह हो रहा है कि मुस्लिम और ईसाई वोट जो इस चुनाव में ठीकठाक फैक्टर है, भाजपा से दूर है। दूसरी तरफ भाजपा बजरंग बली, द केरला स्टोरी के अलावा पीएम मोदी से सारी उम्मीद लगाए बैठी है। यानी भाजपा की कुल उम्मीद ध्रुवीकरण है।
2018 के चुनाव विश्लेषण में जो बात सामने आई थी, उसमें यह था कि भाजपा और कांग्रेस ने जहां जहां कई सीटों पर एक ही समुदाय के प्रत्याशी खड़े किए थे, उसमें मुकाबला उन दोनों का ही था। जेडीएस कहीं नहीं ठहर पाई थी। जहां-जहां कांग्रेस और जेडीएस ने एक ही समुदाय के लोगों को टिकट दिया था, वहां कांग्रेस बाजी मार ले गई थी। यानी 2018 में कुल मिलाकर कांग्रेस बेहतर स्थिति में थी। क्या ऐसा इस बार होगा। इस बार लोग किसी भी पार्टी को एकजुट होकर वोट कर सकते हैं। इस स्थिति में स्पष्ट बहुमत मिलेगा। जिसमें से कांग्रेस होगी या फिर भाजपा होगी।
224 सीटों वाले विधानसभा चुनाव 10 मई को एक ही चरण में होने हैं, और परिणाम 13 मई को घोषित किए जाएंगे। कांग्रेस पार्टी लिंगायत बहुल क्षेत्रों में महत्वपूर्ण लाभ और वीरशैव के समर्थन की उम्मीद कर रही है।