अगले साल होने वाले चुनाव से पहले कर्नाटक-महाराष्ट्र सीमा विवाद ने काफी तूल पकड़ लिया है। वह भी तब जब दोनों राज्यों में बीजेपी सत्ता में है। केंद्र में भी सत्ता में है। केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने पिछली बैठक में कहा भी था कि कर्नाटक और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों ने दशकों पुराने सीमा विवाद में अपने दावों पर तब तक जोर नहीं देने की सहमति जताई है जब तक कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर फ़ैसला नहीं करता। तो सवाल है कि आख़िर कर्नाटक ने विवादित बेलगावी में विशेष सत्र क्यों बुलाया? क्या अमित शाह की बात उनकी पार्टी के लोग ही नहीं सुन रहे हैं? क्या कोई ऐसी हिमाकत कर सकता है?
यह सवाल इसलिए भी कि विवादित महाराष्ट्र-कर्नाटक सीमा क्षेत्र में क़ानून व्यवस्था लागू करने और शांति स्थापित करने के केंद्र के प्रयासों के बीच कर्नाटक कल बेलगावी में अपने दूसरे विधानसभा भवन में एक प्रतीकात्मक सत्र आयोजित करेगा। रिपोर्टों के अनुसार वह सत्र सुबह 11 बजे 'सुवर्ण विधान सौध' में शुरू होगा, जो बेंगलुरु में विधान सौध की सीट पर आधारित है।
बता दें कि कर्नाटक ने बेलगावी में एक दूसरी विधानसभा बनाई थी। यह एक ऐसा क्षेत्र है जिस पर महाराष्ट्र के साथ सीमा रेखा को लेकर विवाद है। इस मराठी भाषी क्षेत्र पर कर्नाटक के दावों पर जोर देने के लिए साल में एक बार वहाँ एक विधानसभा सत्र आयोजित किया जाता है। इसको 1956 में भाषाई आधार पर राज्यों के पुनर्गठन के दौरान कर्नाटक में शामिल किया गया था।
संजय राउत ने शिवसेना के मुखपत्र सामना में एक लेख में इस बेलगावी को लेकर लिखा है, "मामला सर्वोच्च न्यायालय में जाने के बाद कर्नाटक ने बेलगांव को उपराजधानी घोषित करके वहां विधानसभा की नई इमारत बना डाली। बेलगांव का नाम बदलकर बेलगावी कर दिया। बेलगांव महानगरपालिका से भगवा ध्वज उतार दिया। ये सब तरीका बेहद गंभीर ही था। ‘जैसी थी’ (पहले का फ़ैसला बरकरार रखने) के निर्णय को चुनौती देने वाला और अदालत की परवाह न करने वाला था।"
उन्होंने आगे लिखा है, "70 साल से लंबित इस समस्या पर दोनों मुख्यमंत्रियों और केंद्रीय गृहमंत्री के बीच 15 मिनट तक चर्चा हुई। उन पंद्रह मिनटों के बाद अंतत: तय क्या हुआ? तो स्थिति ‘जैसी थी’ बरकरार रखनी है। 70 वर्षों से स्थिति ‘जैसी थी’ ही है। उस ‘जैसी थी’ स्थिति को बार-बार बदलने का प्रयास कर्नाटक ने किया।"
बेलगावी तत्कालीन बॉम्बे प्रेसीडेंसी का हिस्सा था और कर्नाटक में इसके शामिल होने से महाराष्ट्र परेशान था। इसके बाद शुरू हुआ झगड़ा आज तक जारी है।
ताज़ा मामला तब फिर से उछला जब कुछ दिन पहले महाराष्ट्र से कर्नाटक आ रहे ट्रक को बेलगावी में रोक लिया गया था और उस पर पत्थर फेंके गए थे। इसके बाद से विवाद ने तूल पकड़ा। दोनों राज्यों के नेताओं और मंत्रियों ने भी इसे तूल दिया। मामला देश के गृहमंत्री अमित शाह तक पहुँचा।
अमित शाह ने दोनों राज्यों के मुख्यमंत्रियों के साथ बैठक की लेकिन, उन्होंने कहा कि कर्नाटक और महाराष्ट्र के मुख्यमंत्रियों ने दशकों पुराने सीमा विवाद में अपने दावों पर तब तक जोर नहीं देने की सहमति जताई है जब तक कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर फ़ैसला नहीं करता। यानी मुद्दे का समाधान नहीं निकल पाया, मुद्दे को दबा दिया गया।
तो अब सवाल है कि क्या कर्नाटक में अगले साल होने वाले चुनाव तक इसका समाधान निकल पाएगा? क्या महाराष्ट्र इसको इतनी आसानी से छोड़ देगा? और सवाल यह भी है कि जब मामला सुप्रीम कोर्ट में है तो फिर इस तरह से इस मुद्दे को क्यों उठाया जा रहा है? वह भी अमित शाह के दखल देने के बाद? क्या चुनाव से पहले इसमें राजनीतिक नफा-नुक़सान देखा जा रहा है?