हिजाब पर प्रतिबंध का पूर्ववर्ती बीजेपी सरकार का फ़ैसला पलटेगा। कर्नाटक के मुख्यमंत्री के सिद्धारमैया ने इसकी घोषणा की है। उन्होंने शुक्रवार को कहा कि उन्होंने राज्य में हिजाब पर प्रतिबंध के आदेश को वापस लेने का निर्देश दिया है। इसको बसवराज बोम्मई के नेतृत्व वाली पिछली भाजपा सरकार द्वारा लगाया गया था।
सिद्धारमैया ने ट्वीट कर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नारे 'सबका साथ, सबका विकास' को फर्जी करार देते हुए आरोप लगाया कि भाजपा लोगों और समाज को कपड़े, वेशभूषा और जाति के आधार पर बाँटने का काम कर रही है। उन्होंने आगे कहा कि उन्होंने हिजाब प्रतिबंध आदेश को वापस लेने का निर्देश दिया है।
पिछले साल फरवरी में मुस्लिम छात्राओं को हिजाब पहनने से रोकने वाले राज्य शिक्षा संस्थानों के फ़ैसले को मान्य करते हुए कर्नाटक की तत्कालीन भाजपा सरकार ने कहा था कि समानता, अखंडता और सार्वजनिक कानून व्यवस्था को बिगाड़ने वाले कपड़े नहीं पहनने चाहिए। राज्य सरकार के अनुसार, कक्षाओं में हिजाब पहनने पर प्रतिबंध संविधान द्वारा दी गई धार्मिक स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन नहीं है।
प्रतिबंध के कारण राज्य में बड़े पैमाने पर विरोध प्रदर्शन हुआ और कई छात्र आदेश के खिलाफ कर्नाटक उच्च न्यायालय में चले गए। अदालत ने पिछले साल मार्च में प्रतिबंध को बरकरार रखा था और उन याचिकाओं को खारिज कर दिया था जिसमें कहा गया था कि हिजाब पहनना इस्लाम की ज़रूरी धार्मिक प्रथा नहीं है।
लेकिन इस साल जब कर्नाटक में कांग्रेस की नयी सरकार आई तो इसने कहा था कि वह एमनेस्टी इंडिया द्वारा शैक्षणिक संस्थानों में हिजाब पर से प्रतिबंध हटाने की मांग किए जाने के मामले पर विचार करेगी। 10 मई को होने वाले विधानसभा चुनाव के प्रचार के दौरान उपमुख्यमंत्री डी.के. शिवकुमार ने जोरदार ढंग से कहा था कि राज्य में पार्टी के सत्ता में आने के बाद पिछली भाजपा सरकार द्वारा हिजाब पर प्रतिबंध और सांप्रदायिक आधार पर बनाए गए सभी कानूनों को वापस ले लिया जाएगा।
यह विवाद 2021 के दिसंबर महीने में तब शुरू हुआ था जब उडुपी के एक स्कूल की छात्राओं ने शिक्षकों के अनुरोध के बावजूद स्कार्फ हटाने और उसका इस्तेमाल बंद करने से इनकार कर दिया था।
दक्षिणपंथी संगठनों से जुड़े कार्यकर्ताओं ने हिजाब के विरोध में भगवा गमछा पहनकर स्कूल जाना शुरू कर दिया था।
उडुपी प्री-यूनिवर्सिटी गर्ल्स कॉलेज की छह छात्राओं द्वारा शुरू किया गया हिजाब विवाद पिछले साल राज्य में एक संकट बन गया था। हिजाब के बिना कक्षाओं में जाने से इनकार करने वाले छात्रों का अभी भी कहना है कि वे सर्वोच्च न्यायालय के अंतिम फ़ैसले का इंतज़ार करेंगे।
इस मुद्दे ने सांप्रदायिक रंग ले लिया था और इसके परिणामस्वरूप राज्य में बदले की भावना से हत्याएँ हुईं। इसने संकट के चरम पर वैश्विक आतंकवादी संगठन अल-कायदा का ध्यान खींचा था। यह आरोप लगाया जाता है कि सत्तारूढ़ भाजपा ने इस मुद्दे का इस्तेमाल अपने हिंदुत्व एजेंडे को आगे बढ़ाने के लिए किया, जिससे छात्र समुदाय को बाँटा जा सके।
हिजाब का यह विवाद तब उछला था जब बीजेपी के नेतृत्व वाली राज्य सरकार द्वारा एक आदेश जारी किया गया था। उस आदेश में कहा गया था कि स्कूलों और कॉलेजों में ड्रेस कोड अनिवार्य है और हिजाब पहनने के लिए कोई अपवाद नहीं छोड़ा जा सकता है। छात्राओं ने जब इस मुद्दे को अदालत की चौखट तक घसीटा तो कर्नाटक हाईकोर्ट ने भी इसे बरकरार रखा था। बाद में, मुस्लिम छात्रों ने इस आदेश का सुप्रीम कोर्ट में विरोध किया और शीर्ष अदालत का अंतिम फ़ैसला आने तक कक्षाओं में भाग लेने से इनकार कर दिया। मामला फिलहाल शीर्ष अदालत में लंबित है।