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कर्नाटकः चुनाव से 5 महीने पहले SC आरक्षण बढ़ाने का दांव

कर्नाटकः चुनाव से 5 महीने पहले SC आरक्षण बढ़ाने का दांव

कर्नाटक में अनुसूचित जाति का आरक्षण कोटा बढ़ाने के लिए राज्य की बीजेपी सरकार ने आज 13 दिसंबर को एक सबकमेटी बनाने की घोषणा की है। इसके लिए लंबे समय से मांग की जा रही थी। कांग्रेस को आशंका है कि पांच महीने बाद होने वाले चुनाव में राजनीतिक लाभ लेने के लिए ये कदम उठाया गया है। जानिए इस राजनीतिक घटनाक्रम कोः

कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पांच महीना पहले राज्य सरकार ने एससी आरक्षण बढ़ाने की तरफ कदम बढ़ाया है। भले ही इस पर तब तक अमल नहीं हो पाए लेकिन इससे चुनावी लाभ लेने की पूरी तैयारी है।

कर्नाटक में अनुसूचित जातियों (एससी) के लिए आंतरिक आरक्षण बढ़ाने की सिफारिशें करने के लिए पांच सदस्यीय कैबिनेट उपसमिति का गठन 13 दिसंबर को किया गया। 

कानून और संसदीय मामलों के मंत्री जे.सी. मधुस्वामी इस उप समिति के अध्यक्ष हैं। पैनल के अन्य सदस्यों में जल संसाधन मंत्री गोविंद एम. करजोल, मछली पालन मंत्री एस. अंगारा, पशुपालन मंत्री प्रभु चव्हाण और स्वास्थ्य एवं परिवार कल्याण मंत्री के. सुधाकर शामिल हैं। करजोल, अंगारा और चौहान अनुसूचित जाति से हैं। उप समिति बनाने में बीजेपी सरकार ने पूरी रणनीति अपनाई है। 

17 नवंबर को राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में अनुसूचित जातियों के बीच आंतरिक आरक्षण के वर्गीकरण के लिए एक उपसमिति गठित करने का निर्णय लिया था। दरअसल, जस्टिस ए.जे. सदाशिव आयोग ने 2012 में अपनी रिपोर्ट में कहा था कि समान आरक्षण के लिए अनुसूचित जातियों का फिर से वर्गीकरण किया जाए।

हालांकि 2013 और 2018 के बीच कांग्रेस सत्ता में थी, लेकिन उसने उस रिपोर्ट पर निर्णय नहीं लिया। बीजेपी अब उसी बात को मुद्दा बना रही है। अब अगले 5 महीने तक इस मुद्दे के गरम रहने के आसार हैं।

कुछ दिन पहले, पूर्व मुख्यमंत्री सिद्धारमैया ने कहा था, एक बार जब हम सत्ता में वापस आएंगे, तो कांग्रेस सभी को विश्वास में लेगी और केंद्र सरकार को जस्टिस सदाशिव आयोग की रिपोर्ट को लागू करने के लिए एक सिफारिश भेजेगी। लेकिन बीजेपी ने सिद्धरमैया का बयान आने के बाद 13 दिसंबर को उपसमिति बना दी। 

कर्नाटक की बीजेपी सरकार अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण 15% से बढ़ाकर 17% और अनुसूचित जनजातियों के लिए 3% से 7% करने का निर्णय पहले ही ले चुकी है। लेकिन निर्णय लागू नहीं किया गया है। कानून मंत्री जे.सी. मधुस्वामी ने कहा कि चूंकि आरक्षण बढ़ाने पर उसे कानून की कसौटी पर कसा जाएगा, इसलिए सरकार कोई और रास्ता खोजेगी। उम्मीद है, राज्य सरकार दिसंबर में विधानसभा के शीतकालीन सत्र में विधेयक पेश करके या राज्य विधानमंडल द्वारा सर्वसम्मति से प्रस्ताव पारित करने का आग्रह करने जैसे विकल्पों का सहारा लेगी। अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति का आरक्षण बढ़ाने के लिए राज्य सरकार केंद्र सरकार से संवैधानिक संशोधन कानून पास करने को कहेगी।

इंद्रा साहनी मामले में, सुप्रीम कोर्ट ने आरक्षण को 50% पर सीमित कर दिया है, जबकि अभी कर्नाटक में यह 56% है। कुल मिलाकर कर्नाटक सरकार ने एससी आरक्षण बढ़ाने के लिए उपसमिति जरूर बना दी है लेकिन उसे कई आयामों से गुजरना है।  

कर्नाटक सरकार ने तमिलनाडु सरकार की तर्ज पर कानूनी चुनौतियों का मुकाबला करने के लिए संवैधानिक संशोधन के माध्यम से संविधान के अनुसूचित 9 के तहत 50% से अधिक आरक्षण की मांग करने का निर्णय लिया है, जिसने आरक्षण को 69% तक बढ़ा दिया है।

इस तरह कर्नाटक में पूरा मामला राजनीतिक है और इससे राजनीतिक लाभ लेने की मंशा सामने आ रही है। यूपी विधानसभा चुनाव से पहले भी कुछ उपजातियों को एससी कोटे में लाने की पहल की गई थी और लखनऊ से लेकर दिल्ली तक काफी गहमागहमी रही। संजय निषाद जो अब यूपी में मंत्री हैं, उन्होंने इसकी मांग रखी थी। मुद्दे को हवा मिली लेकिन अब सरकार बनने के बाद वो मुद्दा न जाने कहां खो गया, मल्लाह, निषाद, केवट आदि उपजातियों की जो स्थिति पहले थी वो आज भी है।

पता चला है कि कांग्रेस कर्नाटक में आंतरिक आरक्षण के मुद्दे पर बीजेपी को राजनीतिक लाभ मिलने से आशंकित है।

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