राज ठाकरे ने धमकी दी है कि अगर मस्जिदों से लाउडस्पीकर न हटवाए गए, यानी अगर अज़ान का प्रसारण बंद न किया गया तो वे उनके आगे लाउडस्पीकर लगवाकर हनुमान चालीसा का पाठ करवाएँगे।
किसी एक धर्म से जुड़े किसी एक रिवाज़ पर हमला करने के लिए अपने धर्म में नया रिवाज़ शुरू करना 21वीं सदी के हिंदू समाज की विशेषता कही जाएगी। यह धमकी संभवतः राज ठाकरे ने इस भय से दी हो कि हिंदू जनता चारों तरफ राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से जुड़े संगठनों के मुसलमान और ईसाई विरोधी अभियानों की उत्तेजना और कोलाहल में भूल ही न जाए कि उनके जैसा हिंदू-हितैषी जीवित है और वह भी हिंसा में प्रतियोगिता कर सकता है।
चैत्र नवरात्रि आरम्भ हो गई है। यह इससे मालूम हुआ कि उत्तर प्रदेश में माँस की दुकानों को बंद किया जाने लगा। यह सरकारी तौर पर किया जा रहा है।
एक जगह एक सरकारी अधिकारी मुर्गे का माँस बेचने वाली दुकान के सामने धमकी देते दिखलाई पड़ रहे हैं कि अगर दुकान खुली दिखी तो वे बुलडोज़र चलवा देंगे।
किस क़ानून के तहत, किस अधिकार से, यह बतलाना उनके लिए ज़रूरी नहीं। मुसलमान या ईसाई हो तो उसके साथ किसी भी तरह की मनमानी की जा सकती है। यह गुंडे कर सकते हैं और राज्य भी।
हलाल माँस के खिलाफ अभियान
कर्नाटक में जगह-जगह अलग अलग हिंदुत्ववादी संगठन हलाल माँस के खिलाफ अभियान चलाने में जुट गए हैं। वे मुसलमानों की माँस की दुकानों में घुसकर माँग कर रहे हैं कि उन्हें झटका माँस दिया जाए और इसके बहाने उनपर हमला कर रहे हैं। वे हिंदुओं के बीच मुसलमानों की दुकानों का बहिष्कार करने का प्रचार अभियान भी चला रहे हैं। एक बड़ी कंपनी के खिलाफ प्रचार शुरू कर दिया गया है कि चूँकि उसके उत्पादों पर हलाल का प्रमाण पत्र लगा है, उसकी वस्तुएँ हिंदुओं को नहीं खरीदनी चाहिए।
यह आसानी से पता कर लिया गया कि इसका मालिक मुसलमान है। इस जानकारी ने उसके खिलाफ प्रचार में और हिंसक उत्साह भर दिया।
इस अभियान से पहले कर्नाटक में मंदिरों के आसपास मुसलमानों को दुकान लगाने से रोका जाने लगा। सरकार के मंत्रियों ने भी इसका समर्थन किया। कहा गया कि अगर मुसलमान हिजाब के पक्ष में आंदोलन करेंगे तो यह उसकी प्रतिक्रिया है। यह कौन सी तर्क विधि है, यह समझना मुश्किल है।
मुसलमान औरतें हिजाब पहनना चाहती हैं, इससे हिंदुओं को क्यों परेशानी होनी चाहिए? और अगर इससे परेशानी है भी तो मुसलमानों की रोजी रोटी पर हमला करना इसका जवाब कैसे और क्यों है?
करौली में हिंसा
चैत्र नवरात्रि के साथ ‘हिंदू नववर्ष’ का भी आरम्भ हुआ। हमारा नया साल शुरू हुआ है, यह एलान करने के लिए उत्साही हिंदुत्ववादियों ने राजस्थान में करौली में मुसलमानों के मोहल्ले में जाकर मोटरसाइकिल का जुलूस निकाला। उपद्रव होना था, हुआ। अभी घटना का ब्यौरा नहीं मिला है। प्रशासन के तत्पर रहने के कारण यह हिंसा आगे नहीं बढ़ पाई। लेकिन हिंसा तो हुई। आगजनी, लूटमार।
और इसका इल्जाम भी मुसलमानों पर ही लगाया जाएगा। क्यों नहीं वे अपने इलाके से हिंदुओं का, नहीं, हिंदुत्ववादियों का जुलूस निकलने देते, क्यों नहीं वे अपने खिलाफ गाली-गलौज का स्वागत करते? क्या वे शांतिपूर्वक गालियाँ नहीं सुन सकते? क्या यह उनके उत्तेजित हो जाने की वजह हो सकती है? वे इतने संवेदनशील क्यों हैं?
मुसलमानों को बेइज्जत करना, उनपर हिंसा करना: यह अधिकार माना जा रहा है। इसका विरोध करने की, इसका प्रतिरोध करने की इजाजत किसी को नहीं।
इस हिंसा के बाद प्रशासन ने जो परिपत्र जारी किया है, उसमें लिखा है कि भारतीय नव वर्ष पर हिंदू समाज की तरफ से शोभा यात्रा निकाली जा रही थी जिसपर कुछ असामाजिक तत्वों ने हमला किया।
प्रशासन ने यह देखा कि इस ‘शोभा यात्रा’ में मुसलमानों को अपमानित करने वाले गाने बजाए जा रहे थे। इसकी इजाजत ही क्यों दी जानी चाहिए थी?
लेकिन न सिर्फ प्रशासन ने यह होने दिया बल्कि हिंसा के बाद वह जुलूस निकालने वालों को पूरी तरह बरी कर रहा है।
नृत्यांगना को नृत्य से रोका
उधर, केरल में एक मंदिर ने एक गैर हिंदू नृत्यांगना को अपने नृत्य उत्सव में नाचने से मना कर दिया। इस मंदिर का रिश्ता किसी हिन्दुत्ववादी संगठन से नहीं है। बताया जा रहा है कि यह पुराना नियम है। मंदिर में किसी भी कार्य में, वह मरम्मत का ही क्यों न हो,गैर हिंदुओं का प्रवेश निषिद्ध है। इस पर विश्व हिंदू परिषद् की प्रतिक्रिया दिलचस्प थी। चूँकि इस मामले में नृत्यांगना मुसलमान परिवार की हैं लेकिन खुद को नास्तिक कहती हैं, विहिप को लगा कि एक मुसलमान तो हमारी तरफ आ रहा है, एक मुसलमान कम हो रहा है, उसका स्वागत किया जाना चाहिए।
मुसलमानों की संख्या में एक की कमी के उत्साह में वह उनकी नास्तिकता को नज़रअंदाज करने को राजी है!
असल मकसद हिंदुओं की संख्या बढ़ाना है। वह न भी हो क्योंकि यह नृत्यांगना तो किसी धर्म को मानने को तैयार नहीं। लेकिन अगर किसी तरह गैर हिंदुओं की संख्या में कमी आए, यह भी कम संतोष की बात नहीं।
असम में पहले से ही हिंदू, जैन, आदि धार्मिक स्थलों के आसपास 5 किलोमीटर तक माँस की बिक्री मना कर दी गई है। मुख्यमंत्री ने बहुत ही दुष्टतापूर्ण हँसी हँसते हुए कहा कि अरे!उनकी आबादी तो बाकी जगह बहुत ज्यादा है, वहाँ वे माँस खाएँ! वे,यानी मुसलमान! मुसलमानों को किसी तरह की असुविधा हो, परेशानी हो, इससे एक अलग किस्म का आनंद मिलता है!
इसके अलावा यह सवाल भी है कि असम में हिंदू भी माँसाहारी हैं, दूसरा कि क्या यह मान लिया गया है कि हिंदू धार्मिक स्थलों के 5 किलोमीटर के भीतर सिर्फ हिंदू ही रहेंगे? इसकी क्या गारंटी है कि आप मुसलमान बहुल इलाके में एक हिंदू मंदिर नहीं बनाएँगे और फिर इस चालाकी से उन्हें और तबाह करेंगे?
नवरात्रि और रमजान
नवरात्रि के साथ ही रमजान शुरू हुआ है। दोनों में ही श्रद्धालु उपवास करते हैं। दोनों ही अपने उपवास के जरिए खुद को शुद्ध करने का प्रयास करते हैं। यह अवसर आत्मशुद्धि का है। लेकिन हिंदुओं की तरफ से इस अवसर का इस्तेमाल मुसलमानों को ‘शुद्ध’ करने के लिए किया जा रहा है। क्या इससे उनकी देवी प्रसन्न होंगी?
यह बात कई बार की जा चुकी है कि हिंदू की परिभाषा अब बदल गई है। अब हिंदू का मतलब यह होता जा रहा है ऐसा शख्स जो मुसलमानों या ईसाइयों से नफरत करता हो। नवरात्रि में जितना दुर्गा का नाम नहीं लिया जा रहा उतना मुसलमानों को गाली दी जा रही है।
जाहिर है, सारे हिंदू यह नहीं कर रहे हैं, वे शायद इसे पसंद भी नहीं करते लेकिन इसका प्रमाण नहीं है कि उनके धार्मिक अवसरों का यह इस्तेमाल राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के संगठन जो उनके नाम पर कर रहे हैं, उसका वे विरोध कर रहे हों।