कर्नाटक में ईसाई चर्चों पर धर्म परिवर्तन कराने का आरोप और इसके तहत होने वाली गिरफ्तारियां बढ़ती जा रही हैं। ताजा मामला कोप्पल से आया है। दलितों का जबरन धर्मांतरण कराने के आरोप में चर्च के एक पादरी और उसके परिवार के खिलाफ मामला दर्ज किया गया है। उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया है। पुलिस ने पादरी के 17 साल के बेटे पर भी नाबालिग के कथित यौन उत्पीड़न का मामला दर्ज किया है। अक्टूबर से कर्नाटक में नए धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत गिरफ्तारियों का सिलसिला जारी है।
पुलिस ने कोप्पल के आरोपी पादरी और उनकी पत्नी को कोर्ट से न्यायिक हिरासत में भेज दिया गया, जबकि उनके बेटे को बेल्लारी के रिमांड होम में भेज दिया गया।
पुलिस ने बताया कि पादरी सत्यनारायण उर्फ सैमुअल करतागी में ग्रेस प्रार्थना केंद्र चलाते हैं। दलित समुदाय के सदस्यों में से शंकर नामक शख्स ने पुलिस में पादरी के खिलाफ शिकायत दी थी। आरोप है कि पादरी ने कथित तौर पर शंकर का धर्म परिवर्तन कराया था। शंकर ने पुलिस को बताया कि मैंने जब पादरी से बपतिस्मा ले लिया तो उन्होंने हमें ईसाई धर्म के रीति-रिवाजों का पालन करने के लिए कहा और हमें हिंदू देवताओं की पूजा न करने की चेतावनी दी। उन्होंने हमारे घर से हिंदू देवी-देवताओं की तस्वीरें भी जब्त कर लीं और उन्हें एक नहर में फेंक दिया। बाद में उसी जगह उन्होंने बपतिस्मा लिया।
पादरी की पत्नी शिवम्मा सारा पर भी आरोप है कि जब वे लोग काम पर जाते थे तो उनके बच्चों को चर्च ले जाते थे और उन्हें चर्च की गतिविधियों में शामिल करते थे। पीड़ित ने आरोप लगाया कि जब उसने समुदाय के नेताओं को जबरन धर्मांतरण के बारे में बताया तो पादरी ने उसके साथ दुर्व्यवहार किया और पीटा।
इसी बीच एक अन्य व्यक्ति ने पादरी के नाबालिग बेटे पर शादी का झांसा देकर उसकी 16 वर्षीय बेटी से रेप करने का आरोप लगाया। इंस्पेक्टर सिद्धरमैया ने कहा कि पादरी और उनके परिवार पर जबरन धर्मांतरण का आरोप लगने के बाद पीड़िता के परिवार ने रेप की शिकायत दर्ज कराई थी। अब पादरी परिवार के खिलाफ दो अलग-अलग मामले दर्ज किए गए हैं। इन तीनों पर सबसे पहले कर्नाटक धर्म स्वतंत्रता अधिकार संरक्षण अधिनियम की धारा 5 के तहत मामला दर्ज किया गया है। पादरी के नाबालिग लड़के पर यौन अपराधों से बच्चों के संरक्षण (पॉक्सो) अधिनियम की धारा 4,5 और 12 के तहत मामला दर्ज किया गया है। उसे बच्चों के शेल्टर होम में भेजा गया है। पुलिस मामले की आगे जांच कर रही है।
विवाद में कर्नाटक का कानूनः धर्मांतरण के खिलाफ इसी साल मई में लागू किए गए धर्मांतरण विरोधी कानून को लेकर कर्नाटक की बीजेपी सरकार विवादों में है। कर्नाटक 2021 में धर्मांतरण विरोधी कानून का विधेयक लाई थी और पास के होने के बाद मई 2022 में इसे कानून बना दिया गया। तमाम ईसाई संगठन इसका विरोध कर रहे हैं। सुप्रीम कोर्ट में इस कानून को चुनौती दी गई है। कांग्रेस ने भी इसे क्रूर कानून बताते हुए इसकी निन्दा की है।
मई में कर्नाटक में इस कानून के लागू होने के बाद अचानक ही पुलिस के पास धर्मांतरण कराने की शिकायतें आने लगीं। अधिकांश शिकायतें चर्च के खिलाफ आईं। पुलिस ने फौरन धरपकड़ शुरू कर दी। नवंबर में बड़ी कार्रवाई की गई।
अक्टूबर में सैयद मोबीन नामक युवक की गिरफ्तारी नए धर्मांतरण विरोधी कानून के तहत बेंगलुरु से की गई। उस पर एक हिन्दू लड़की का धर्म परिवर्तन कराने का आरोप था।
नवंबर में पुलिस ने कर्नाटक के हुबली शहर में जबरन धर्म परिवर्तन के प्रयास के संबंध में 15 लोगों के खिलाफ मामला दर्ज किया। पुलिस का कहना था कि एक दंपती के बीच झगड़े के बाद इस घटना का पता चला। पति का आरोप है कि उसकी पत्नी उसे ईसाई धर्म अपनाने के लिए मजबूर कर रही है और उसके साथ रहने से इनकार कर रही है।
पुलिस ने कहा कि जब वह शख्स पत्नी का और दबाव नहीं झेल सका तो उसने मामले को समुदाय के नेताओं के सामने रखा। इसके बाद शिक्कलिगारा समुदाय के लोगों ने थाने के सामने धरना दिया और धर्म परिवर्तन रोकने की मांग की। हालांकि इस प्रदर्शन को हिन्दू संगठनों का समर्थन प्राप्त था।
पुलिस को दी गई शिकायत में आरोप लगाया गया कि ईसाई मिशनरी हिन्दू धर्म के शिक्कलिगारा समुदाय को निशाना बना रही है और पूरे समाज को ईसाई बनाने का प्रयास कर रहे हैं।
समुदाय के कुछ लोगों ने आरोप लगाया कि मिशनरी लोगों पर हिंदू धर्म छोड़ने और ईसाई धर्म अपनाने का दबाव बनाने के लिए स्थानीय उपद्रवी मदन बुगुडी की मदद ले रही है। पुलिस ने मदन बुगुडी और 14 अन्य के खिलाफ जबरन धर्मांतरण के संबंध में शिकायत दर्ज की है और मामले की जांच शुरू की है।
नवंबर में ही मांड्या जिले के अन्नूर में पांच लोगों को धर्मांतरण के आरोप में गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस का आरोप है कि ये पांच लोग वहां ऐसे पर्चे बांट रहे थे, जिसमें हिन्दुओं से ईसाई बनने को कहा गया था।
बहरहाल, कर्नाटक के बिशप और ईसाई संगठनों ने आरोप लगाया है कि नए कानून की आड़ में ईसाई मिशनरियों को टारगेट किया जा रहा है। जबकि ईसाई मिशनरी राज्य में शिक्षा और स्वास्थ्य के क्षेत्र में काम कर रही हैं।