संसद के क़ानून को मानने से इनकार नहीं कर सकते राज्य: सिब्बल
कांग्रेस शासित पंजाब ने भले ही विधानसभा में नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पास कर दिया हो लेकिन कांग्रेस के ही वरिष्ठ नेता कपिल सिब्बल ने कहा है कि नागरिकता क़ानून को लागू करने से राज्य सरकारें इनकार नहीं कर सकती हैं। उनके इस बयान का कांग्रेस के ही एक अन्य वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद ने भी समर्थन किया है। उन्होंने भी कहा कि यदि सुप्रीम कोर्ट दखल नहीं देता है तो केंद्र की बीजेपी सरकार द्वारा संसद से पास कराए इस क़ानून को राज्य सरकारों को पालन करना होगा। इन नेताओं का बयान ऐसे समय में आया है जब देश भर में इस क़ानून के ख़िलाफ़ विरोध-प्रदर्शन हो रहे हैं और कांग्रेस भी इसका ज़बरदस्त विरोध कर रही है।
कांग्रेस शासित पंजाब की विधानसभा में नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पास करने से पहले वामदलों द्वारा शासित केरल में भी इस क़ानून के ख़िलाफ़ ऐसा ही प्रस्ताव पारित किया गया है। कपिल सिब्बल का यह बयान शनिवार को उसी केरल के कोझिकोड में आया है। उन्होंने कहा कि किसी राज्य सरकार का यह कहना मुश्किल है कि वह संसद द्वारा पास क़ानून को लागू नहीं करेगी। हालाँकि बाद में रविवार को कपिल सिब्बल ने इस पर सफ़ाई दी और अपने बयान का मतलब विस्तार से बताया।
सिब्बल ने ट्वीट कर नागरिकता क़ानून को असंवैधानिक बताया। उन्होंने ट्वीट में लिखा, ‘मुझे लगता है कि सीएए असंवैधानिक है। प्रत्येक राज्य की विधानसभाओं के पास प्रस्ताव पास करने और इसको (नागरिकता क़ानून) वापस लेने की माँग करने का संवैधानिक अधिकार है। जब एक क़ानून सुप्रीम कोर्ट द्वारा संवैधानिक घोषित कर दिया जाता है तो इसका विरोध करना मुश्किल हो जाएगा। संघर्ष अवश्य जारी रहना चाहिए!’
I believe the CAA is unconstitutional
— Kapil Sibal (@KapilSibal) January 19, 2020
Every State Assembly has the constitutional right to pass a resolution and seek it’s withdrawal
When and if the law is declared to be constitutional by the Supreme Court then it will be problematic to oppose it
The fight must go on !
सिब्बल की यह सफ़ाई तब आई जब केरल में दिए उनके बयान पर हंगामा मच गया। दरअसल, उन्होंने तब बयान ही ऐसा दिया था। सिब्बल शनिवार को कोझीकोड में केरल लिटरेचर फ़ेस्टिवल में शामिल होने पहुँचे थे। तब उन्होंने कहा था, ‘राज्य केंद्र सरकार को एक संदेश भेज रहे हैं कि वे नागरिकता क़ानून, राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर (एनआरसी) और राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर से नाख़ुश हैं। लेकिन एनआरसी राष्ट्रीय जनसंख्या रजिस्टर पर आधारित है और इसे एक स्थानीय रजिस्ट्रार द्वारा लागू किया जाना है, जो राज्य स्तर के अधिकारियों द्वारा नियुक्त किया जाता है।’
उन्होंने कहा, ‘मूल रूप से जो कहा जा रहा है कि हम राज्य स्तर के अधिकारियों को भारतीय संघ के साथ सहयोग करने की अनुमति नहीं देंगे... व्यावहारिक रूप से मुझे नहीं लगता कि यह संभव है। यह एक धुँधला क्षेत्र है।’
उन्होंने कहा, ‘संवैधानिक रूप से किसी भी सरकार के लिए यह कहना मुश्किल होगा कि मैं संसद द्वारा पारित एक क़ानून का पालन नहीं करूँगा।’
सलमान खुर्शीद भी क्यों आए समर्थन में?
इस संदर्भ में जब पूर्व केंद्रीय मंत्री और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता सलमान खुर्शीद से कपिल सिब्बल के बयान पर पूछा गया तो उन्होंने कहा कि 'यदि सुप्रीम कोर्ट दखल नहीं देता है तो यह क़ानून की किताब में रहेगा। यदि यह क़ानून की किताब में है तो आपको पालन करना होगा, अन्यथा इसके कुछ परिणाम होंगे।'
उन्होंने यह भी कहा, ‘जहाँ तक इस (सीएए) क़ानून का संबंध है, यह एक ऐसा मामला है जहाँ राज्य सरकारों का केंद्र के साथ बहुत गंभीर मतभेद है। इसलिए, हम शीर्ष अदालत द्वारा किए गए अंतिम घोषणा का इंतज़ार करेंगे। आख़िरकार उच्चतम (न्यायालय) तय करेगा और तब तक सब कुछ कहा, किया गया, नहीं किया गया, प्रोविज़न और अस्थायी है।’
पंजाब सरकार के प्रस्ताव में भी कहा गया है कि नागरिकता क़ानून संविधान के अनुच्छेद 14 का भी उल्लंघन है, जो सभी व्यक्तियों को क़ानूनों की समानता और समान सुरक्षा के अधिकार की गारंटी देता है। बता दें कि नागरिकता क़ानून में प्रावधान है कि पाकिस्तान, अफ़ग़ानिस्तान और बाँग्लादेश के हिंदू, सिख, पारसी, जैन, बौद्ध और ईसाई धर्म के लोगों को भारत की नागरिकता दी जाएगी, जबकि मुसलिमों को इससे बाहर रखा गया है।
इसको लेकर पहले केरल ने नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ प्रस्ताव पास कर दिया है। केरल की पिनरई विजयन सरकार ने इस क़ानून को ग़ैर-क़ानून घोषित करने के लिए सुप्रीम कोर्ट में भी याचिका लगाई है।
केरल और पंजाब दो ही राज्य नहीं हैं जो नागरिकता क़ानून, एनआरसी और एनपीआर का विरोध कर रहे हैं। विपक्षी दलों वाली अधिकतर राज्य सरकारें इसके विरोध में हैं। कांग्रेस शासित छत्तीसगढ़ सरकार भी एनपीआर के ख़िलाफ़ ऐसे ही क़दम उठाने पर विचार कर रही है। ममता बनर्जी के नेतृत्व वाली पश्चिम बंगाल सरकार पहले ही इन मुद्दों पर केंद्र सरकार से दो-दो हाथ करने के मूड में है। राजस्थान, मध्य प्रदेश और झारखंड की सरकारें भी इसका विरोध कर रही हैं। बीजेपी के सहयोग से बिहार में सरकार चला रहे नीतीश कुमार भी अब एनआरसी के साथ ही नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ तीखे तेवर दिखा रहे हैं।