कमलनाथ सरकार का संकट बढ़ा, विधायकों के बाद मंत्रियों के सुर भी हुए बाग़ी
मध्य प्रदेश की कमलनाथ सरकार पर छाये संकट के बादल अभी छंटे नहीं हैं। बीजेपी की कथित कैद से छह विधायकों को मुक्त करा लेने का दावा करने वाली मध्य प्रदेश कांग्रेस और उसकी सरकार आपस में ही शह-मात और ब्लेकमैलिंग के ‘खेल’ में उलझे हुए नज़र आ रहे हैं। इसके अलावा चार ‘लापता’ विधायकों ने भी कांग्रेस की धड़कनें बढ़ा रखी हैं।
मध्य प्रदेश में कमलनाथ सरकार पिछले चार-पांच दिनों से ‘संकट’ में है। कांग्रेस का दावा है कि बीजेपी उसकी सरकार को अस्थिर करने के प्रयासों में जुटी हुई है। मंगलवार को दिल्ली में हाई-वोल्टेज पाॅलीटिकल ड्रामा हुआ था। कांग्रेस के विधायकों समेत नाथ सरकार का समर्थन कर रहे कुल दस विधायक दिल्ली में बीजेपी से ‘गलबहियां’ करते पाये गये थे।
दिल्ली और फिर हरियाणा पहुंचे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह एवं कमलनाथ सरकार में मंत्री जीतू पटवारी एवं जयवर्धन सिंह ने कुछ विधायकों को बीजेपी के कथित चुंगल से मुक्त करा लिया था। इधर, भोपाल से लेकर दिल्ली और अन्य ठिकानों पर तलाशी के बावजूद चार विधायकों का पता नहीं चला है। बुधवार देर रात तक इनके बीजेपी के ही कब्जे में होने की सूचनाएं चलती रहीं थीं। इनमें कांग्रेस, सपा और निर्दलीय विधायकों के होने की ख़बरें हैं।
कांग्रेस ने दिल्ली से जिन विधायकों को बीजेपी के कथित कब्जे से छुड़ाकर भोपाल ले आने का दावा ठोका था, उनमें से किसी ने भी बीजेपी द्वारा उन्हें जबरिया दिल्ली ले जाये जाने संबंधी ख़बरों का समर्थन नहीं किया।
मुरैना से कांग्रेस के विधायक ऐंदल सिंह कंसाना का कहना था उनकी बहू बीमार थी और उसे लेकर वह दिल्ली गए हुए थे। कंसाना ने बीजेपी द्वारा जबरिया या लालच देकर ले जाये जाने संबंधी अपनी ही पार्टी के नेताओं के दावों को सिरे से नकार दिया था। उधर, बसपा की विधायक रामबाई और उनके पति भी बुधवार को दोहराते रहे कि उनकी बिटिया की तबीयत ख़राब थी और उसे लेकर रामबाई दिल्ली गईं थीं।
बसपा के एक और विधायक संजीव सिंह ने कहा कि वह चंबल का पानी पीते हैं, भिंड से आते हैं और उन्हें जबरिया कोई ले जा सके, इतनी हिम्मत किसी की नहीं हैं। विधायक ने कहा कि वह कांग्रेस के साथ थे और आगे भी रहेंगे। कुल मिलाकर बंधक बनाये गये किसी भी विधायक ने बीजेपी पर खुलकर हमला नहीं बोला।
गुटों में बंटी है कांग्रेस
पूरे राजनीतिक घटनाक्रम पर कांग्रेस गुटों में बंटी नज़र आयी। पूर्व केंद्रीय मंत्री ज्योतिरादित्य सिंधिया ने मंगलवार को हॉर्स ट्रेडिंग संबंधी ख़बरों को लेकर कहा था कि उन्हें इस बारे में कोई जानकारी नहीं है। कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और राज्यसभा सदस्य विवेक तन्खा के सुर बुधवार को बेहद तीख़े रहे। उन्होंने कहा, ‘प्रदेश कांग्रेस के पास पूर्णकालिक अध्यक्ष होता तो विधायकों के टूटने जैसी स्थिति नहीं बनती।’ यहां बता दें कि कमलनाथ मुख्यमंत्री होने के साथ ही पीसीसी के अध्यक्ष भी हैं।
निर्दलीय विधायक और नाथ सरकार में मंत्री प्रदीप जायसवाल गुड्डा के सुर भी बुधवार को बेहद तीखे नज़र आये। उन्होंने मीडिया से बातचीत में दो टूक कहा, ‘जब तक कमलनाथ सीएम हैं, तभी तक मैं कांग्रेस के साथ हूं।’ जायसवाल संकेतों में यह कहने से भी नहीं चूके कि हालात बदले तो वह भी पाला बदलने में गुरेज नहीं करेंगे।
दिग्विजय सिंह से बुरी तरह खार खाने वाले दिवंगत कांग्रेसी नेता जमुना देवी के भतीजे और कमलनाथ सरकार में वन मंत्री उमंग सिंघार के एक ट्वीट ने आग में घी का काम किया। सिंघार ने बुधवार को ट्वीट कर संकेतों में कहा, ‘राज्यसभा में जाने के लिए कांग्रेस में कुश्ती चल रही है।’
सिंधिया समर्थक मंत्रियों ने साधी चुप्पी
कमलनाथ सरकार को गिराने के लिए चल रहे कथित खेल को लेकर ज्योतिरादित्य सिंधिया समर्थकों की ओर से अभी तक कोई प्रतिक्रिया नहीं आयी है। मामूली बातों पर खुलकर बयानीबाज़ी करने वाले सिंधिया समर्थक सभी मंत्री कमलनाथ सरकार पर मंडरा रहे संकट के गहरे बादलों के बीच चुप्पी साधे बैठे हैं।
तूफान से पहले का सन्नाटा
राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह ‘तूफान से पहले के सन्नाटे’ जैसा दृश्य बन रहा है। कांग्रेस में लंबे समय से सबकुछ ठीक नहीं है। कमलनाथ की सरकार बनने के बाद से कांग्रेस और सरकार का समर्थन करने वाले विधायकों की खुलेआम नाराजगी के दृश्य बनते रहे हैं। ताजा घटनाक्रम ने आपसी खाई को और बढ़ा दिया है।
तमाम हालातों के बावजूद कांग्रेस का एकजुट ना हो पाना खुद कांग्रेस के लिए अच्छा संकेत नहीं माना जा रहा है। 16 मार्च से मध्य प्रदेश विधानसभा का बजट सत्र आरंभ होने जा रहा है। बजट सत्र में सरकार की विधानसभा के फ्लोर पर कई बार परीक्षा होती है। इसके अलावा मध्य प्रदेश में रिक्त हुईं राज्यसभा की कुल तीन सीटों के लिए चुनाव भी होना हैं। नंबर गेम की वजह से फिल्म उलझी हुई है। वोटिंग की नौबत आने की स्थिति में दो सीटें पाने के लिए कांग्रेस को मौजूदा विधायकों को साधकर रखने के अलावा भी ज़रूरी नंबर गेम के लिए जोड़तोड़ करनी पड़ेगी।
विधायकों की संख्या के हिसाब से बीजेपी को एक सीट मिलनी तय है, जबकि वोटिंग की स्थिति में दूसरी सीट हासिल करने के लिए बीजेपी को भी आधा दर्जन के लगभग विरोधी खेमे के विधायकों को साधना होगा। ऐसे हालातों में राज्यसभा का चुनाव बेहद दिलचस्प और कांटे का होना तय माना जा रहा है।