वक्फ बोर्ड पर बनी संयुक्त संसदीय समिति फिर विवादों में है। समिति के चेयरमैन जगदंबिका पाल ने शुक्रवार को 10 विपक्षी सांसदों को एक दिन के लिए निलंबित कर दिया। मोदी सरकार ने संसद में वक्फ संशोधन विधेयक पेश किया था। बहस के बाद सरकार ने इस पर जेपीसी बनाई थी। लेकिन जेपीसी इस तरीके से व्यवहार कर रही है कि आये दिन विवाद हो रहा है। ताजा आरोप है कि उसने जेपीसी बैठक का दिन बदल करके उसका एजेंडा भी बदल दिया।
निलंबित सांसदों में टीएमसी के कल्याण बनर्जी, मोहम्मद जावेद (कांग्रेस), ए. राजा (डीएमके), असदुद्दीन ओवैसी (एआईएमआईएम), नसीर हुसैन (कांग्रेस), मोहिबुल्लाह (समाजवादी पार्टी), एम. अब्दुल्ला (डीएमके), अरविंद सावंत (शिवसेना यूबीटी), नदीम उल हक (टीएमसी) और इमरान मसूद (कांग्रेस) शामिल हैं।
निलंबित सांसदों ने आरोप लगाया कि बैठक में अघोषित इमरजेंसी जैसा माहौल रहता है। शुक्रवार को भी कमेटी के चेयरमैन ने किसी सदस्य की बात नहीं सुनी। टीएमसी सांसद कल्याण बनर्जी ने कहा, "जेपीसी बैठक एक अघोषित इमरजेंसी की तरह चलाई जा रही है...अध्यक्ष किसी की नहीं सुनते...कमेटी में सदस्य के तौर पर शामिल भाजपा सांसद सोचते हैं कि वे ही उप प्रधानमंत्री और उप गृहमंत्री हैं।"
कल्याण बनर्जी ने कहा, "सब पूरी तरह से दिखावा है। हमें बताया गया था कि 24 और 25 जनवरी को बैठक होगी। अब, आज (शुक्रवार) की बैठक के लिए, एजेंडे को ही बदल दिया गया है।" जेपीसी में विपक्षी सदस्यों का इस बात पर जबरदस्त ऐतराज है कि बिना पूर्व सूचना एजेंडा बदल दिया जाता है। शुक्रवार को भी यही हुआ। करीब 11 बजे सदस्य जब बैठक के लिए पहुंचे तो उन्हें बताया गया कि बैठक का एजेंडा बदल गया है। विपक्षी सदस्यों ने कहा कि नए एजेंडे और मसौदे में प्रस्तावित बदलाव पर उन्हें रिसर्च करने का समय ही नहीं दिया गया। इस घटनाक्रम से सरकार की मंशा को समझा जा सकता है। वो तमाम प्रस्तावों में मनमाना बदलाव करके इस विवादित विधेयक को पास कराना चाहते हैं।
वक्फ जेपीसी के चेयरमैन ने जम्मू-कश्मीर से एक प्रतिनिधिमंडल को उसके विचार सुनने के लिए बुलाया था। जिसका नेतृत्व धार्मिक प्रमुख मीरवाइज उमर फारूक कर रहे थे। विपक्षी नेताओं का आरोप है कि बीजेपी दिल्ली चुनाव 2025 को साम्प्रदायिक रुख देने के लिए वक्फ संशोधन बिल पर जेपीसी रिपोर्ट जल्द संसद में पेश करना चाहती है।
लखनऊ में बैठक के बाद जेपीसी अध्यक्ष जगदंबिका पाल ने कहा था कि जेपीसी की आखिरी बैठक 24 जनवरी को होगी। कहा जा रहा है कि जेपीसी आगामी बजट सत्र 2025 में अपनी 500 पन्नों की रिपोर्ट सौंपने की तैयारी में है। अब तक, जेपीसी ने कई राज्यों के दौरे के अलावा दिल्ली में 34 बैठकें की हैं, जहां 24 से अधिक स्टेकहोल्डर्स को बुलाया गया था। देशभर से 20 से अधिक वक्फ बोर्ड समिति के समक्ष पेश हुए।
पिछले साल अगस्त में, विपक्ष की आपत्तियों के बाद केंद्र सरकार ने विधेयक को आगे की जांच के लिए जेपीसी को भेज दिया था। समिति के 21 लोकसभा और 10 राज्यसभा सदस्यों में से 13 विपक्षी दलों से हैं। जिसमें नौ लोकसभा से और चार राज्यसभा से हैं।
वक्फ की जमीनों का नेरेटिव क्यों बनाया जा रहा हैः तमाम राज्यों खासकर यूपी में वक्फ जेपीसी बैठकों के दौरान बीजेपी पूरा एक नेरेटिव तैयार कर रही है। लखनऊ में दो दिन पहले हुई बैठक के दौरान यूपी की बीजेपी सरकार ने जो नजरिया पेश किया, उसे मीडिया में खूब उछाला गया। सरकार ने जेपीसी को बताया कि राज्य में 78 फीसदी वक्फ की जमीनें सरकारी की हैं। यहां तक कि उसने लखनऊ में ऐतिहासिक छोटे और बड़े इमामबाड़े, अयोध्या में बेगल के महल को भी सरकारी प्रॉपर्टी बता दी। जबकि ये सारी ऐतिहासिक प्रॉपर्टी ब्रिटिश कॉल से ही वक्फ संपत्तियां रही हैं, जिनकी देखरेख भारतीय पूरातत्व सर्वेक्षण करता है।
यूपी में योगी आदित्यनाथ की सरकार विधानसभा में पिछले दिनों नजूल संपत्तियों को लेकर विधेयक लाई थी। लेकिन भाजपा के विधायकों, मंत्रियों, खुद प्रदेश अध्यक्ष ने योगी सरकार के उस विधेयक का विरोध कर दिया। जानते हैं क्यों। क्योंकि नजूल संपत्तियों पर लखनऊ समेत सभी शहरों में विशाल शॉपिंग कॉम्पलेक्स बने हुए हैं, मॉल बने हुए हैं, दुकानें बनी हुई हैं। वो किन लोगों की हैं। उनका पैसा किनके पास आ रहा है। लेकिन योगी सरकार ने ऐसा क्यों किया। इसलिए कि अधिकांश नजूल संपत्तियों के मालिक भी पुराने समय या देश की आजादी के बाद ज्यादातर मुस्लिम परिवार ही थे। उन लोगों ने सस्ते दामों पर उन संपत्तियों को हिन्दुओं को किराये पर दे दिया। अब हिन्दू अधिकांश नजूल संपत्तियों के मालिक हैं या कब्जेदार हैं। नगर निगमों में ऐसी संपत्तियों को अपने रसूख से अपने नाम चढ़वा लिया गया है।
अभी सरकार का इरादा यही है कि वक्फ बोर्ड संशोधन बिल को कानून के जरिये लाया जाय। इसके बाद जो मुस्लिम परिवार अपनी ही वक्फ संपत्तियों की देखरेख कर रहे हैं, उन्हें उजाड़ दिया जाए। क्योंकि बिल में इस बात का प्रावधान है कि जिला मजिस्ट्रेट (डीएम) किसी भी वक्फ संपत्ति को सरकार घोषित कर सकता है। इंतजार कीजिए अगर यह कानून बनकर आया तो देश में बड़े पैमाने पर बुलडोजर चल रहे होंगे।
सरकार वक्फ संशोधन विधेयक आखिर किस हड़बड़ी में पास कराना चाहती है। जबकि केंद्रीय वक्फ बोर्ड हो या राज्यों के वक्फ बोर्ड वो सरकार के ही अधीन काम करते हैं। लेकिन जिस तरह वैष्णव देवी मंदिर बोर्ड, अयोध्या राम मंदिर ट्रस्ट, सोमनाथ प्रबंध समिति के अलावा असंख्य हिन्दू मंदिरों के कामकाज हिन्दुओं के हवाले हैं, ताकि वहां ठीक से काम होता रहे। वही स्थिति वक्फ बोर्ड की भी है। लेकिन सरकार को सिर्फ वक्फ बोर्डों में करप्शन दिखा। बोर्ड में मुस्लिमों को इसलिए रखा गया वे अपना काम सुचारु रूप से चलाएं।
सरकार की ऐसी कौन सी संस्था नहीं है जहां भ्रष्टाचार नहीं है, जहां जमीनों की लूटमार नहीं है। जिला कलेक्टरों के घर से करोड़ों का कैश क्यों बरामद होता है। भाजपा शासित राज्यों में इन चीजों को दुरुस्त कर अगर वक्फ कानून में संशोधन किया जाता तो आज सरकार की जयजयकार हो रही होती। लेकिन झूठे नेरेटिव गढ़कर समाज में दो धर्म के लोगों को लड़ाना हो तो फिर वक्फ कानून में बेसिरपैर के संशोधन की जरूरत पड़ती है।
(इस रिपोर्ट का संपादन यूसुफ किरमानी ने किया)