सरोद उस्ताद अमजद अली ख़ान की दुर्गा क्यों रोयी?

04:36 pm Jan 23, 2025 | शैलेश

उस्ताद अमजद अली ख़ान ने सरोद पर राग दुर्गा सुनाने के पहले एक मार्मिक टिपण्णी की। वैसे तो राग दुर्गा, शृंगार रस और रोमांटिक प्रेम का राग है,लेकिन उन्होंने कहा कि दुर्गा कभी कभी रोती भी है और वो शुद्ध राग दुर्गा से पहले  दुर्गा के रोदन को सुर देंगे। आम तौर पर कलाकार मंच से राजनीतिक टिपण्णी नहीं करते। लेकिन उस्ताद ने डोनाल्ड ट्रम्प को अमेरिकी राष्ट्रपति बनने पर इस बात के लिए बधाई दी कि उन्होंने महिलाओं से बलात्कार करने वालों को मौत की सजा देने का कानून बनाने की घोषणा की है। 

उस्ताद ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से अनुरोध किया कि ब्लात्कारियों को फाँसी देने का क़ानून भारत में भी बनायें।कोलकाता के आर जी कार अस्पताल में एक महिला डाक्टर से बलात्कार और हत्या करने वाले दोषी को अदालत ने हाल में सिर्फ़ आजीवन कारावास की सजा सुनायी। उसे फाँसी की सजा नहीं दी गयी। संभवतः ख़ान इस बात से मर्माहित हो गए थे। लेकिन उन्होंने इस घटना का जिक्र नहीं किया। 

उन्होंने कहा कि महिलाओं को उनका सम्मान अब तक नहीं मिला है। औरत बच्चे को जन्म देती है, लेकिन बच्चे के नाम के साथ उसका नाम कहीं नहीं लिखा जाता है। बच्चे के साथ सिर्फ पिता का नाम जोड़ा जाता है। उस्ताद ख़ान की ये टिप्पणी महिला अधिकार पर बहस को एक नया आयाम देता है। 

तार से दर्द की झंकार 

उस्ताद ख़ान ने सरोद के तारों को छेड़ा तो जैसे औरत का दर्द बह निकला। पारंपरिक राग दुर्गा में दर्द के लिए जगह नहीं है। उस्ताद की ये अपनी अनोखी रचना थी। उसकी धुन दर्शकों के दिलों में उतर गयी। राग दुर्गा हिंदी फ़िल्म संगीतकारों का भी एक प्रिय धुन है। आशा भोसले का गया “फ़िल्म गीत गया पत्थरों ने” का टाइटिल गीत इसी राग पर आधारित है। “होगा तुमसे प्यारा कौन”, (जमाने को दिखाना है) और “वृंदावन के कृष्ण कन्हैया” (मिस मेरी) जैसे लोकप्रिय गीत इसी राग पर आधारित हैं। 

बाद में शुद्ध राग दुर्गा में उस्ताद के अविस्मरणीय वादन ने दर्शकों के दिल के तार तार को झंकृत कर दिया। उस्ताद ने राग तिलक कमोद से वादन की शुरुआत की और राग बिहारी में वसंत की आहट की झलक भी दिखला दी। आख़िर में राग “चारू केसी” में संतूर और तबला की बेजोड़ जुगल बंदी पेश की। तबला उस्ताद ज़ाकिर हुसैन के दो शिष्यों आदित्य कल्याणपुर और अमित कवथेकर ने संगत में एहसास दिलाया कि तबला पर उनकी जादूगरी अब भी जीवित है। 

उस्ताद ज़ाकिर हुसैन की हाल ही में असमय मृत्यु हो गयी। तबला बातें करता है, वो संतूर के सवालों का जवाब देता है। ज़ाकिर हुसैन ने तबला से संवाद की अनोखी शैली शुरू की थी। उनके शिष्यों ने इस परंपरा को बरक़रार रखा है। 

अवसर था पंडित सी आर व्यास जन्म शताब्दी का। दिल्ली के कमानी हाल में दर्शकों की भीड़ ये साबित कर रही थी कि व्हाट्स एप और रील पर फैले फूहड़ नाच गाना के दौर में भी गंभीर संगीत की दीवानगी कम नहीं हुई है। कार्यक्रम की शुरुआत सी आर व्यास के बेटे सुहास व्यास के गायन से हुई। सुहास के सुरों में सी आर व्यास की गूंज बरकरार है। उन्होंने सी आर व्यास की तीन रचनाओं को पेश किया।