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जोशीमठ ही नहीं कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग में भी आई घरों में दरारें

जोशीमठ ही नहीं कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग में भी आई घरों में दरारें

कर्णप्रयाग के बहुगुणा नगर में 50 से ज्यादा घरों में चौड़ी दरारें आ चुकी हैं और बड़ी संख्या में लोग अपने घरों को छोड़ कर जा चुके हैं। कर्णप्रयाग के लोग भी घरों में दरारें आने के लिए एनटीपीसी के द्वारा किए जा रहे निर्माण कार्य को जिम्मेदार ठहराते हैं। 

उत्तराखंड के सिर्फ जोशीमठ में ही मकानों में दरारें नहीं आ रही हैं बल्कि ऐसे ही हालात कर्णप्रयाग में भी हैं और रुद्रप्रयाग जिले के मरोड़ा गांव में भी कई घरों में दरारें आ गई हैं। इन जगहों पर भी लोग जोशीमठ की ही तरह अपने भविष्य को लेकर चिंतित हैं। जोशीमठ और कर्णप्रयाग चमोली जिले में पड़ते हैं। कर्णप्रयाग में लगभग 50 हजार लोग रहते हैं। 

कर्णप्रयाग के बहुगुणा नगर में 50 से ज्यादा घरों में चौड़ी दरारें आ चुकी हैं और बड़ी संख्या में लोग अपने घरों को छोड़ कर जा चुके हैं। कर्णप्रयाग जोशीमठ से 80 किलोमीटर दूर है। यहां के लोग भी घरों में दरारें आने के लिए एनटीपीसी के द्वारा किए जा रहे निर्माण कार्य को जिम्मेदार ठहराते हैं। 

हालांकि एनटीपीसी ने इससे इनकार किया है कि उसके द्वारा किए जा रहे निर्माण कार्य से जोशीमठ या दूसरी जगह पर दरारें आई हैं। 

बता दें कि जोशीमठ के लोगों का कहना है कि एनटीपीसी की सुरंग ने पूरी जमीन को खोखला कर दिया है और दूसरी ओर बाईपास सड़क के लिए की जा रही खुदाई ने जोशीमठ की बुनियाद को हिला दिया है।

हालांकि लगातार दरारें आने के बाद जोशीमठ में एनटीपीसी और चार धाम ऑल वैदर रोड के सभी निर्माण कार्यों पर रोक लगा दी गई है। इसके अलावा एशिया के सबसे बड़े औली रोपवे का भी निर्माण कार्य रोक दिया गया है। क्योंकि यहां भी जमीन में कुछ दरारें देखने को मिली हैं। 

कर्णप्रयाग की नगर पालिका ने उत्तराखंड के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी से मदद करने की अपील की है। कर्णप्रयाग के ऊपरी बाजार वार्ड में रहने वाले 30 परिवार भी खतरे की जद में हैं और सभी राज्य सरकार से मदद की गुहार लगा रहे हैं। 

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रुद्रप्रयाग जिले के मरोड़ा गांव में भी कई घरों में दरारें आ गई हैं। इस गांव के नीचे ऋषिकेश-कर्णप्रयाग रेल लाइन का काम चल रहा है। यहां कुछ परिवारों को रेलवे की ओर से मुआवजा मिला है और वे इस जगह को छोड़ कर जा चुके हैं लेकिन अभी बड़ी संख्या में ऐसे परिवार भी हैं जिन्हें मुआवजा नहीं मिला है और वे लोग गांव में ही रुके हुए हैं। यहां के लोगों का कहना है कि रेल लाइन के निर्माण की वजह से ही उनके घरों में दरारें आ रही हैं। 

घर के कभी भी गिरने की सूरत में कई लोगों ने मकान खाली कर दिया है और वे किराए में रहने के लिए कहीं दूर चले गए हैं। स्थानीय लोगों का साफ कहना है कि इसके लिए पूरी तरह रेल लाइन का निर्माण कार्य जिम्मेदार है। लेकिन लोगों के सामने मुश्किल यह है कि वे अपना घर छोड़कर कहां जाएं। इसके साथ ही मवेशियों की भी चिंता है क्योंकि गांव में लोगों ने मवेशी पाले हुए थे। 

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स्थानीय लोगों का कहना है कि उनके पास इतना पैसा नहीं है कि वह किसी दूसरी जगह मकान बना सकें। उन्होंने सरकार से उचित मुआवजा देने की मांग की है। प्रशासन ने मरोड़ा गांव के जिन घरों में दरारें आई हैं वहां रहने वाले लोगों को दूसरी जगह शिफ्ट कर दिया है। 

बेतरतीब और अनियोजित विकास 

जोशीमठ, कर्णप्रयाग और रूद्रप्रयाग में जिस तरह के हालात बने हैं उसे लेकर उत्तराखंड के दूसरे जिलों के पर्वतीय शहरों में भी चिंताएं लगातार बढ़ती जा रही हैं क्योंकि उत्तराखंड बनने के बाद से ही पहाड़ों में बेतरतीब और अनियोजित विकास हुआ है और बीते कुछ सालों में लगातार आपदाएं आती रही हैं।

जोशीमठ के प्रकरण से सबक लेते हुए उत्तराखंड सरकार ने सभी जिलों से जोशीमठ जैसे संवेदनशील स्थलों के संबंध में रिपोर्ट मांगी है। नैनीताल जिले में भी जमीन के धंसने की समस्या लगातार बढ़ती जा रही है। 

जोशीमठ के स्थानीय लोग बेतरतीब विकास कार्यों के खिलाफ आवाज उठाते रहे लेकिन सरकारों ने उनकी मांग पर ध्यान नहीं दिया। लगातार हालात बिगड़ने के बाद सरकारें हरकत में आई और सोशल मीडिया पर विरोध के बाद निर्माण कार्यों पर रोक लगाई। 

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