जेएनयू हिंसा में जैसे-जैसे नयी जानकारियाँ आ रही हैं, वे पुलिस के रवैये और इस मामले में उसकी भूमिका पर संदेह को बढ़ा रही हैं। चाहे वह हिंसा के दिन पुलिस के रवैये का मामला हो या फिर जाँच में लीपापोती करने का। अब जेएनयू हिंसा का सबसे ज़्यादा शिकार हुए साबरमती हॉस्टल के दो वार्डनों के बयान पुलिस के रवैये पर सवाल खड़े करते हैं। दोनों वार्डनों का कहना है कि उन्होंने जेएनयू कैंपस में पाँच जनवरी को शाम चार ही हाथों में लाठी और रॉड लिए नकाबपोशों की भीड़ को देखा था और उसी समय उन्होंने पुलिस और जेएनयू सुरक्षा कर्मियों को इसकी सूचना दे दी थी। इसके बावजूद चार घंटे तक कोई सहायता नहीं मिली।
होस्टल के वार्डन से हाथों में लाठी और रॉड लिए नकाबपोशों की भीड़ के बारे में जानकारी मिलने के बाद भी पुलिस का नहीं पहुँचना क्या सवाल खड़े नहीं करता है? उन वार्डनों को हिंसा की आशंका हो रही थी तो फिर पुलिस इसे क्यों नहीं सूँघ पाई? जेएनयू में तब दर्जनों नक़ाबपोश लोगों ने कैंपस में छात्रों और अध्यापकों पर हमला कर दिया था। इसमें विश्वविद्यालय की छात्र संघ अध्यक्ष आइशी घोष गंभीर रूप से घायल हो गईं थीं। इस हमले में घायल कम से कम 34 लोगों को हॉस्पिटल में भर्ती कराया गया था। तब हिंसा के दौरान पुलिस के रवैये को लेकर सवाल खड़े किए गए थे। कहा जा रहा था कि पुलिस चाहती तो इस हिंसा को रोक सकती थी लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
तो क्या पुलिस ने जानबूझकर तुरंत कार्रवाई नहीं की? कार्रवाई में देरी क्यों की गई? राजधानी में ही पुलिस हिंसा की सूचना पर चार घंटे तक नहीं पहुँचे, यह कैसे संभव हो सकता है?
इस घटना पर दो वार्डनों ने भी एक रिपोर्ट दी है। 'द इंडियन एक्सप्रेस' के अनुसार, छह जनवरी की तारीख़ में दर्ज घटना की एक रिपोर्ट में मेस वार्डन डॉ. स्नेहा और सैनिटेशन वार्डन डॉ. राज यादव ने कहा है कि रात आठ बजे तक कोई भी अधिक सुरक्षा या पुलिस नहीं आई, इस मामले की जाँच की जाए। स्नेहा घटना के पहले, घटना के दौरान और उसके बाद भी मौजूद थीं, जबकि यादव आठ बजे पहुँचे।
अख़बार की रिपोर्ट के अनुसार, स्नेहा ने कहा कि क्योंकि वरिष्ठ वार्डन रामावतार मीणा और वार्डन (रिक्रिएशन) प्रकाश चंद्र साहू पहले इस्तीफ़ा दे चुके थे इसलिए घटना की रिपोर्ट पर उनके हस्ताक्षर नहीं थे। हालाँकि इन दोनों के इस्तीफ़े पर कुलपति एम. जगदीश कुमार ने कहा है कि छात्रों के दबाव में दोनों ने इस्तीफ़ा दिया है और उनके इस्तीफ़े स्वीकार नहीं किए गए हैं।
स्नेहा का कहना है कि जेएनयू द्वारा जाँच के लिए गठित की गई इंटर्नल कमिटी द्वारा अभी तक उन्हें नहीं बुलाया गया है। मुख्य सुरक्षा अधिकारी नवीन यादव ने इस मामले पर कुछ भी कहने से इनकार कर दिया।
वार्डन स्नेहा और यादव रिपोर्ट में लिखते हैं कि 5 जनवरी को शाम 4 से 8 बजे के बीच उन्होंने विभिन्न अधिकारियों से संपर्क किया। रिपोर्ट में कहा गया है, “क़रीब 4 बजे स्नेहा ने ‘40-50 लोगों की भीड़ को छात्रावास परिसर से बाहर निकलते हुए देखा, उनके चेहरे पर नकाब थे। ...परिसर में खड़े लोगों ने बताया कि भीड़ कुछ छात्रों की तलाश कर रही थी और जब उन्हें उनके कमरे में नहीं पाया तो भीड़ आख़िर में छात्रावास से बाहर चली गई। भीड़ लाठी, लोहे की छड़ आदि से लैस थी। 100 नंबर पर पुलिस की मदद के लिए तुरंत डायल किया गया। अब तक, कोई हिंसा नहीं हुई थी।”
स्नेहा ने कहा कि उन्होंने भीड़ को हॉस्टल के मुख्य द्वार के बाहर और ताप्ती हॉस्टल की ओर बढ़ते हुए देखा था। रिपोर्ट में कहा गया है, “इसके बाद क़रीब 4:30 बजे, अन्य दो वार्डन डॉ. रामावतार मीणा (वरिष्ठ वार्डन) और डॉ. प्रकाश साहू (रिक्रिएशन वार्डन), छात्रावास के कार्यालय में आए और मदद के लिए पुलिस नंबर पर कॉल करना शुरू कर दिया। जैसा कि स्थिति गंभीर थी तीन वार्डन के साथ एक तत्काल आपातकालीन बैठक शाम 5:30 बजे की गई।”
वार्डन कहते हैं कि पीसीआर को फ़ोन करने के अलावा उन्होंने मुख्य सुरक्षा अधिकारी को एक पत्र भेजकर अतिरिक्त सुरक्षा की माँग की और गार्डों को सतर्कता बरतने के लिए कहा।
स्नेहा कहती हैं कि जब उन्होंने पहली बार भीड़ को देखा था उसके तीन घंटे बाद नकाबपोश पुरुष और महिलाएँ लौटीं, अब उनकी संख्या काफ़ी ज़्यादा बढ़ गई थी।
रिपोर्ट के अनुसार, ‘शाम 7 बजे के आसपास फिर से भीड़ (क़रीब 150 लोग, लड़के और लड़कियाँ दोनों, चेहरे ढँके हुए, हाथों में लाठी और लोहे की रॉड लिए) हॉस्टल परिसर में दाखिल हुई। भीड़ ने लड़कियों के साथ-साथ लड़कों के विंग में भी प्रवेश किया। रिपोर्ट में कहा गया है कि भीड़ ने कई छात्रों पर हमला किया और उनके कमरों में भी बर्बरतापूर्वक तोड़फोड़ की।
‘एसिड भी लेकर आई थी भीड़’
वार्डनों का कहना है कि लड़कों के विंग में 18 कमरों और उसमें रहने वालों पर हमला किया गया, जिसमें एक नेत्रहीन छात्र भी शामिल था, जबकि छात्रावास के मुख्य द्वार और मेस के दरवाज़ों के कांच "नष्ट" कर दिए गए थे। लड़कियों के विंग में नुक़सान नहीं हुआ। रिपोर्ट में कहा गया है कि अन्य छात्रावासों की क़रीब 20 छात्राओं ने सुरक्षा के लिए साबरमती हॉस्टल के बगल में स्थित वार्डन स्नेहा के आवास पर शरण ली।
रिपोर्ट में कहा गया है, ‘हॉस्टल के छात्रों ने शिकायत की है कि भीड़ अपने साथ एसिड और काली मिर्च स्प्रे भी लेकर आई थी।’
होस्टल वार्डन ने की जाँच की माँग
क़रीब साढ़े सात बजे साहू द्वारा वार्डन यादव को सूचना दी गई। इस बीच वरिष्ठ वार्डन मीणा ने फ़ोन कर स्नेहा को कार्यकारी वरिष्ठ वार्डन का चार्ज दिया। रिपोर्ट में कहा गया है कि उन्होंने ऐसा इसलिए किया क्योंकि साहू पर भीड़ ने हमला कर दिया था और वह किसी तरह कैंपस से बच निकले थे। 8 बजे जब तक यादव पहुँचे तब तब पुलिस और एंबुलेंस को कई बार फ़ोन किया जा चुका था। उन्होंने यह भी कहा कि डीन को भी इस बारे में जानकारी दी गई।
रिपोर्ट में कहा गया है कि इस घटना की गंभीरता को देखते हुए होस्टल वार्डन जाँच की माँग करते हैं...।
बता दें कि इस मामले में पहले ही रिपोर्ट आ चुकी है कि जब नक़ाबपोश गुंडे जेएनयू में हॉस्टलों के भीतर उत्पात मचा रहे थे तो पुलिस को बवाल की सूचना देने के लिए कैंपस के अंदर से 23 बार कॉल की गईं। दोपहर 2.30 बजे से लगभग 4 घंटे तक पुलिस को कॉल की जाती रही। पुलिस को यह कॉल लगभग तब तक की जाती रहीं जब तक रात 7.45 बजे जेएनयू के रजिस्ट्रार प्रमोद कुमार ने पुलिस को आधिकारिक रूप से कैंपस के अंदर तैनात करने का पत्र नहीं भेजा।
पुलिस के रवैये पर सवाल इसलिए भी उठ रहा है कि नक़ाबपोश गुंडे कैंपस में घुसे, एक हॉस्टल से दूसरे हॉस्टल में हंगामा करते रहे, छात्रों का सिर फोड़ा, हाथ-पैर तोड़े, सार्वजनिक संपत्ति को नुक़सान पहुँचाया और दिल्ली पुलिस कहती है कि उसके पास इस घटना के सबूत नहीं है क्योंकि सीसीटीवी फ़ुटेज डैमेज हो गयी हैं। ऐसे में पुलिस की निष्पक्ष कार्रवाई पर कैसे भरोसा होगा!