जेएनयू में रविवार रात को हुई हिंसा के बाद कुछ वॉट्सऐस चैट के स्क्रीनशॉट बहुत तेज़ी से वायरल हुए। इन वॉट्सऐस चैट में हिंसा की धमकी दी गई थी और बवाल होने के बाद इस पर ख़ुशी जताई गई थी। अंग्रेजी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (एबीवीपी) के कम से कम 8 पदाधिकारी ऐसे तीन वॉट्सऐप ग्रुप के सक्रिय सदस्य थे जिनमें जेएनयू में हिंसा को लेकर बातें कही गईं थी। इन पदाधिकारियों में जेएनयू के चीफ़ प्रॉक्टर, दिल्ली विश्वविद्यालय के एक टीचर और दो पीएच.डी स्कॉलर भी शामिल हैं।
इन वॉट्सऐस ग्रुप में से एक ग्रुप ‘फ़्रेंड्स ऑफ़ आरएसएस’ भी है जिसका स्क्रीनशॉट ख़ूब वायरल हुआ है। जेएनयू के चीफ़ प्रॉक्टर विवेकानंद सिंह भी इस ग्रुप में हैं। ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने जब विवेकानंद से इस बारे में बात की तो उन्होंने कहा कि उन्हें ग्रुप में हो रही बातचीत के बारे में जानकारी नहीं थी। विवेकानंद सिंह 2004 में एबीवीपी की ओर से अध्यक्ष पद का चुनाव भी लड़ चुके हैं। उन्होंने अख़बार से कहा, ‘मैं ग्रुप का सक्रिय सदस्य नहीं हूं और अब मैंने यह ग्रुप छोड़ दिया है। कई बार ऐसा होता है कि आप किसी वॉट्सऐप ग्रुप में होने के बाद भी उसके मैसेज नहीं देख पाते हैं।’
अब इससे सवाल यह उठता है कि जब विवेकानंद सिंह को इस बात का पता था कि वह ‘फ़्रेंड्स ऑफ़ आरएसएस’ ग्रुप में हैं तो वह इससे पहले ही क्यों नहीं निकल गए। क्योंकि यह अधिकार तो हर वॉट्सऐप यूज़र के पास है कि अगर वह किसी ग्रुप में नहीं रहना चाहता है तो उससे एक्जिट कर सकता है। लेकिन विवेकानंद उस ग्रुप में बने रहे और अब उनके जवाबों से ही कई तरह के सवाल खड़े होते हैं।
एक और दूसरा ग्रुप है जिसका नाम ‘यूनिटी अगेंस्ट लेफ़्ट’ है। अख़बार के मुताबिक़, ‘एबीवीपी के 8 वर्तमान और पूर्व पदाधिकारी इस ग्रुप के एडमिन हैं। इनमें से एक एबीवीपी की जेएनयू इकाई के विभाग संयोजक विजय कुमार भी हैं। विजय कुमार ने अख़बार से कहा, ‘मुझे किसी अनजान नंबर ने ग्रुप में एड कर लिया था और मुझे ग्रुप का एडमिन बना दिया। जब मैंने अपना वॉट्सऐप देखा तो मैंने तुरंत ग्रुप को छोड़ दिया। मुझे अंतरराष्ट्रीय नंबरों से धमकी दी जा रही है।’ कुमार पीएच.डी के फ़ाइनल इयर के छात्र हैं।
विजय कुमार को भी क्या जेएनयू में गुंडागर्दी होने तक इस बात का पता नहीं था कि वह ‘यूनिटी अगेंस्ट लेफ़्ट’ ग्रुप में न सिर्फ़ शामिल हैं बल्कि उस ग्रुप के एडमिन भी हैं। उनके कहने का मतलब है कि जेएनयू में हिंसा होने के बाद ही उन्हें इस बात का पता चला कि वह इस ग्रुप के एडमिन हैं, यह बात गले से नीचे नहीं उतरती।
‘यूनिटी अगेंस्ट लेफ़्ट’ ग्रुप के जो दूसरे एडमिन हैं उनमें मनीष जांगिड़ का भी नाम है। मनीष 2019 में एबीवीपी की ओर से अध्यक्ष पद का चुनाव लड़ चुके हैं और एबीवीपी की जेएनयू इकाई के सचिव भी हैं।
मनीष ने अख़बार से कहा, ‘मेरा फ़ोन टूटने के बाद मुझे ‘यूनिटी अंग्रेस्ट लेफ़्ट’ ग्रुप में शामिल किया गया था। एबीवीपी का ऐसा कोई ग्रुप नहीं है। यह ग्रुप कम्युनिस्टों ने बनाया और हम लोगों को एडमिन बना दिया। मैंने अब तक इस ग्रुप का कोई मैसेज नहीं देखा है। इस ग्रुप में आईसा, एसएफ़आई, एनएसयूआई के लोग शामिल हैं और उन्होंने हमें (एबीवीपी के पदाधिकारियों को) एक लिंक के जरिये इसमें शामिल कर लिया।’
मनीष जांगिड़ के बयान पर भी भरोसा करना नामुमकिन है। फ़ोन टूटने के बाद उन्हें ग्रुप में शामिल करने की बात पर कोई कैसे भरोसा कर सकता है। फिर वह कहते हैं कि एबीवीपी के लोगों को ग्रुप का एडमिन बना दिया गया और उन्होंने इस ग्रुप का कोई मैसेज नहीं देखा है। जांगिड़ के पास यह विकल्प था कि वह उस ग्रुप से बाहर निकल सकते थे लेकिन उन्होंने भी ऐसा नहीं किया।
इसके अलावा एबीवीपी की दिल्ली की छात्रा इकाई की संयोजक वेलेंटिना ब्रह्मा भी इस ग्रुप की एडमिन हैं। ब्रह्मा ने कहा, ‘मुझे शाम को 5.30 बजे पता चला कि उन्हें ग्रुप में शामिल किया गया है। मैंने मैसेज नहीं देखे थे। लेकिन मैंने देखा कि इस ग्रुप के एडमिन एबीवीपी के हैं, इसलिए सोचा कि यह हमारे ही संगठन का ग्रुप है। लेकिन कुछ देर बाद जब मैंने मैसेज देखे तो मुझे लगा कि इस ग्रुप को वामपंथियों ने हाइजैक कर लिया है। फिर मैंने लोगों को इससे हटाना शुरू किया। लेकिन किसी ने मुझे ही एडमिन से हटा दिया। एडमिन ही दूसरे एडमिन को हटा सकता है। इसलिए यह साफ़ है कि ग्रुप पर कब्जा कर लिया गया था।’
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ के मुताबिक़, एक और ग्रुप ‘लेफ़्ट टेरर डाउन डाउन’ में भी इस दौरान कुछ ऐसा ही दिखा। इस ग्रुप का नाम तीन बार बदला गया। पहले इसका नाम ‘संघी गुंडे मुर्दाबाद’ और फिर ‘एबीवीपी छी छी’ किया गया। लेकिन बाद में फिर पहले वाला नाम कर दिया गया।
एबीवीपी के पदाधिकारियों के पास एक जैसा ही जवाब है कि उन्हें पता ही नहीं था कि वे ऐसे किसी ग्रुप के सदस्य हैं या उन्होंने उस ग्रुप के मैसेज नहीं देखे थे। या उनका यह कहना है कि उन्हें अनजान नंबर ने ग्रुप में एड करके एडमिन बना दिया या उनके ग्रुप पर कब्जा कर लिया। वॉट्सऐप यूज़ करने वाला कोई भी शख़्स इन बातों पर भरोसा नहीं कर सकता क्योंकि इतना हर किसी को पता होता है कि वह किस ग्रुप में है या नहीं है, अगर उसे यह नहीं भी पता हो कि ग्रुप में क्या बातचीत हो रही है। हर वॉट्सऐप यूज़र किसी भी ग्रुप से मनचाहे समय में निकल सकता है लेकिन एबीवीपी के अधिकांश पदाधिकारियों ने ऐसा नहीं किया। ऐसे में हिंसा होने के बाद इन ग्रुपों के जिस तरह के स्क्रीनशॉट वायरल हुए हैं, उससे सवाल खड़े होने लाजिमी हैं।