‘टाइगर’ जयराम ने बीजेपी-आजसू को दिया गहरा ज़ख्म?
विधानसभा चुनाव के नतीजों को लेकर लगातार दो दिनों तक झारखंड में बीजेपी की अलग- अलग स्तर पर उम्मीदवारों और नेताओं के साथ हुई समीक्षा बैठक में हार के कई कारण उभर कर सामने आए, उनमें झारखंड लोकतांत्रिक क्रांतिकारी मोर्चा (जेएलकेएम) के उम्मीदवारों को मिले वोट चर्चा के केंद्र में रहे। वैसे, जेएलकेएम के संस्थापक और अध्यक्ष, 29 साल के जयराम कुमार महतो ने डुमरी की सीट सत्तारूढ़ जेएमएम से जीती है, लेकिन उनके उम्मीदवारों ने एक दर्जन से अधिक सीटों पर बीजेपी और खासकर उसकी सहयोगी आजसू पार्टी को गहरा ज़ख्म दिया है।
हरियाणा के बाद महाराष्ट्र की जीत, जहां झारखंड में भाजपा के ज़ख्म पर मरहम लगाने का काम भी करे, पर आजसू पार्टी सन्निपात में है। इस हार से उबरना उसके लिए आसान नहीं है। इस चुनाव में आजसू के तीनों विधायकों की हार हुई है। पूछा जा सकता है कि एनडीए और इंडिया ब्लॉक के बीच टसल में जयराम कुमार महतो ने कैसे दखल डाला और किन समीकरणों के दम पर वे एनडीए के लिए परेशानी का सबब बने।
एमए पास जयराम कुमार महतो के तेवर के चलते उनके युवा समर्थक ‘टाइगर जयराम’ और गांवों- कस्बों में बड़े बुजुर्ग उन्हें प्यार, स्नेह से ‘झारखंड का लड़का’ (सन ऑफ झारखंड) के नाम से जानते- पुकारते हैं। पहली बार विधानसभा चुनाव में उतरे जेएलकेएम ने 71 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे। इनमें अधिकतर उम्मीदवार युवा और निहायत साधारण परिवारों से थे। 6 प्रतिशत से ज्यादा वोट शेयर के साथ पार्टी को लगभग 10.92 लाख वोट मिले हैं। जयराम ने कोयलांचल में डुमरी की सीट पर जेएमएम की उम्मीदवार और तब हेमंत सोरेन सरकार में मंत्री रहीं बेबी देवी को 10,945 वोटों से हराया है। डुमरी को जेएमएम का अभेद्य क़िला के तौर पर माना जाता रहा है।
नतीजे सामने आने के बाद कई मौक़े पर एनडीए के नेता कहते रहे हैं कि जेएलकेएम ने वोट काटा, सेंधमारी की और इससे जेएमएम को फायदा पहुंचा, लेकिन जयराम और उनके समर्थक इन आलोचनाओं से इत्तेफाक नहीं रखते। हाल ही में जयराम ने अपने एक बयान में कहा था, “60 और 70 हजार वोट हासिल करना किसी का वोट काटना या सेंध लगाना नहीं बल्कि दमदार प्रदर्शन करना होता है। जेएलकेएम को लगभग 11 लाख लोगों का मिला समर्थन बड़े दल और बड़े नेता होने का दंभ भरने वालों को परेशान कर रहा है।” चुनाव के दौरान उन्होंने यह भी कहा था कि इंडिया ब्लॉक या एनडीए में शामिल दल अकेले- अकेले चुनाव लड़कर उनसे आजमा लें।
कैसे बीजेपी को सेटबैक में डाला
कोयलांचल में ही जयराम महतो डुमरी के अलावा बेरमो सीट से भी चुनाव लड़े थे। बेरमो में उन्हें 60,871 वोट मिले और वे दूसरे नंबर पर रहे। कांग्रेस के कुमार जयमंगल ने यह सीट बचा ली। बीजेपी ने पूर्व सांसद रवींद्र कुमार पांडेय को मैदान में उतारा था, जो तीसरे नंबर पर रहे।
उधर, प्रतिष्ठित सीटों में शुमार चंदनकियारी (अनुसचित जाति के लिए रिजर्व) के नतीजे ने सबका ध्यान खींचा। जेएमएम के उमाकांत रजक ने बीजेपी के हाई-प्रोफाइल विधानसभा में नेता प्रतिपक्ष रहे अमर कुमार बाउरी को यहां शिकस्त दी है। 2014 और 2019 में बाउरी ने यहां से जीत दर्ज की थी। लेकिन इस बार बाउरी तीसरे नंबर पर जा टिके। जेएलकेएम उम्मीदवार अर्जुन रजवार 56,294 वोट लाकर न सिर्फ दूसरे नंबर पर रहे बल्कि समीकरणों को भी प्रभावित किया। इनके अलावा निरसा, बोकारो, सिंदरी, टुंडी, खरसावां, खिजरी, कांके में बीजेपी और तमाड़ में जेडीयू की हार और इंडिया ब्लॉक की जीत में जेएलकेएम उम्मीदवारों के मिले वोट ने असर डाला है।
बीजेपी की समीक्षा बैठकों में पार्टी के राष्ट्रीय संगठन महामंत्री बीएल संतोष ने हारे उम्मीदवारों और प्रमुख नेताओं से बिंदुवार सब कुछ समझने की कोशिशें की हैं। साथ ही कई निर्देश दिए हैं। इस रायशुमारी में कई उम्मीदवारों का दर्द छलका है कि पार्टी में भितरघात का उन्हें सामना करना पड़ा। इनके अलावा हेमंत सोरेन सरकार की मुख्यमंत्री मंईयां सम्मान योजना का काट पार्टी नहीं निकाल सकी।
रविवार को बैठक ख़त्म होने के बाद बीजेपी के प्रदेश अध्यक्ष रवींद्र राय ने मीडिया से कहा, “पार्टी चुनाव में सफलता और असफलता को सामान्य रूप से देखती है। झारखंड में पार्टी की विश्वसनीयता में कोई कमी नहीं आई है। वोट भी बढ़े हैं। वोटों के ध्रुवीकरण को रोकने और मुद्दों को जनता तक सही ढंग से नहीं पहुंचाने के कारण रिजल्ट प्रभावित हुए हैं।“
प्रदेश स्तरीय समीक्षा बैठक के बाद भाजपा के आलाकमान को रिपोर्ट सौंपी जाएगी। 3 दिसंबर को नई दिल्ली में केंद्रीय स्तर पर भी समीक्षा संभावित है। 68 सीटों पर लड़ी बीजेपी ने 33.18 प्रतिशत वोट शेयर के साथ 21 सीटों पर जीत हासिल की है।
10 सीटों पर चुनाव लड़ी बीजेपी की सहयोगी आजसू को 3.54 प्रतिशत वोट शेयर के साथ सिर्फ एक सीट पर जीत मिली है। बीजेपी के घटक दलों- जेडीयू और एलजेपी ने भी एक-एक सीट जीती है। दूसरी तरफ़ 44.33 प्रतिशत वोट शेयर के साथ इंडिया ब्लॉक ने 56 सीटों पर जीत हासिल की है। अकेले जेएमएम 34 सीटों पर जीत हासिल कर सबसे बड़े दल के तौर पर भी उभरा है।
इधर, 2019 में हेमंत सोरेन के सत्ता पर काबिज होने का एक बड़ा असर आदिवासी राजनीति पर देखने को मिला है। इसके बाद लगातार आदिवासियों ने हेमंत सोरेन को सर्वमान्य नेता मानते हुए उनके प्रति भरोसा दिखाया है। आदिवासियों के लिए रिजर्व 28 में से 27 सीटों पर जेएमएम और कांग्रेस को जीत मिली है। जबकि बीजेपी के खाते में सिर्फ एक सीट है। आदिवासियों के अलावा मुस्लिम, दलित वर्ग का बड़ा वोट भी जेएमएम गठबंधन के साथ इंटैक्ट रहा है। वोटों के इन समीकरणों के कारण जेएलकेएम, इंडिया ब्लॉक को बड़ा नुकसान नहीं पहुंचा सका है।
कुर्मियों के बीच दमदार बनकर उभरे जयराम
चुनावी नतीजे पर गौर करने से साफ पता चलता है कि जेएलकेएम ने कुर्मी बहुल इलाके में मजबूत प्रदर्शन के साथ बीजेपी और आजसू को झकझोर कर रख दिया है। राज्य में कुर्मियों की लगभग 15 प्रतिशत आबादी है। छोटानागपुर, कोयलांचल, कोल्हान में कम से कम 20 सीटों पर कुर्मी वोटर अहम फैक्टर माने जाते हैं। बीजेपी की सहयोगी आजसू पार्टी की इस वोट बैंक पर पकड़ रही है, लेकिन इस बार कुर्मी वोटरों के बीच जयराम महतो लोकप्रिय बनकर उभरे हैं। हालांकि जेएलकेएम के नेता ये दावे करते रहे हैं कि कुर्मी के अलावा दूसरे वर्गों का भी उन्हें चुनावों में साथ मिलता रहा है।
वैसे, लोकसभा चुनावों में ही जयराम महतो और उनके उम्मीदवारों को मिले वोट ने संकेत दे दिए थे कि झारखंड के यह ‘लड़का’ विधानसभा चुनाव में दखल डालने के लिए तैयार है। लोकसभा चुनाव में जयराम ने आठ लोकसभा क्षेत्रों में उम्मीदवार खड़े किए और 8.2 लाख से अधिक वोट हासिल किए।
गिरिडीह संसदीय क्षेत्र से चुनाव लड़ जयराम महतो 3.47 लाख वोट पाकर तीसरे नंबर पर रहे, लेकिन इस सीट के दो विधानसभा क्षेत्र- गोमिया और डुमरी में उन्होंने सबसे ज्यादा वोट हासिल किए।
झारखंडी भाषा खतियानी संघर्ष समिति के बैनर तले जयराम महतो ने भाषा, संस्कृति की रक्षा, युवाओं के रोजगार, 1932 के खतियान आधारित स्थानीय नीति, पलायन, विस्थापन, प्रतियोगिता परीक्षाओं में कथित तौर पर धांधली और गड़बड़ियों के खिलाफ युवाओं को लामबंद करने के लिए ढाई साल सक्रिय रहे। तल्ख तेवर के कारण सुर्खियों में रहे टाइगर जयराम की लोकप्रियता में एक बड़ा योगदान युवाओं का एक बड़ा हुजूम साथ चलने और सोशल मीडिया पर उनके वीडियो का है, जहां उनके बहुत सारे फॉलोअर्स हैं। वीडियो में वे राजनीतिक जागरूकता, “राजनीतिक नेताओं द्वारा अर्जित धन”, पलायन, विस्थापन, गरीबी, नौकरी और रोजगार को लेकर हक अधिकार के बारे में बात करते हैं।
आजसू ने कैसे खोयी जमीन और कितने गहरे हैं ज़ख्म
2019 में अलग-अलग चुनाव लड़ने वाली बीजेपी को 25 और आजसू को 2 सीटों पर जीत मिली थी। बाद में आजसू ने रामगढ़ सीट पर उपचुनाव जीता। 2019 में दोनों दलों को मिले वोटों को लेकर एनडीए के गलियारे में अक्सर इसकी चर्चा होती रही कि भाजपा- आजसू साथ मिलकर चुनाव लड़ती तो और 13 सीटों पर उन्हें जीत मिलती।
विधानसभा चुनाव में आजसू प्रमुख सुदेश कुमार महतो के साथ अनुकूल गठजोड़ कर बीजेपी आश्वस्त थी कि कुर्मी वोटरों के समीकरण को सुदेश महतो साध लेंगे और गठबंधन की नाव को मंजिल तक पहुंचाएंगे। बीजेपी ने आजसू के लिए 10 सीटें छोड़ीं। लेकिन पार्टी को सिर्फ एक मांडू की सीट पर कांग्रेस और जेएलकेएम से कड़ी टक्कर के बीच 231 वोटों से जीत मिली। मांडू में भी जेएलकेएम के उम्मीदवार बिहारी महतो ने 71,276 वोट लाकर आजसू और कांग्रेस को परेशान किए रखा।
इधर, सिल्ली में आजसू के प्रमुख सुदेश महतो जेएमएम के अमित कुमार से 23,867 वोटों से हार गए। यहां जेएलकेएम के उम्मीदवार देवेंद्र नाथ महतो को 41,129 वोट मिले। हालांकि लोकसभा चुनाव में ही रांची सीट से लड़े देवेंद्रनाथ महतो ने सिल्ली में लगभग 49 हजार वोट हासिल कर संकेत दे दिया था कि आजसू के लिए आगे राह कठिन हो सकती है। इधर अमित कुमार की जेएमएम में वापसी के साथ चुनाव मैदान में उतरने से पिच कड़ा हो गया। बनते- बिगड़ते समीकरणों और चुनावी फिजां को सुदेश कुमार महतो भांप नहीं पाए। सिल्ली की हार को उनके लिए बड़े झटके के तौर पर देखा जा रहा है।
गोमिया और रामगढ़ की सीट पर आजसू के विधायकों और उम्मीदवार क्रमशः लंबोदर महतो तथा सुनिता चौधरी को हार का सामना करना पड़ा है। अलबत्ता गोमिया में जेएलकेएम की पूजा महतो ने 59077 वोट हासिल कर लंबोदर महतो को तीसरे नंबर पर धकेल दिया। इधर, रामगढ़ में सुनिता चौधरी 83028 वोट हासिल कर कांग्रेस की ममता देवी से कड़ी टक्कर में हार गईं। यहाँ भी जेएलकेएम के एक युवा चेहरे पनेश्वर महतो ने 70,979 वोट लाकर समीकरणों को प्रभावित किया। इसी तरह ईचागढ़, डुमरी, जुगसलाई में भी आजसू उम्मीदवारों की राह में जेएलकेएम ने मुश्किलें खड़ी कीं। पार्टी की हुई करारी हार से आजसू प्रमुख की पकड़ और चुनावी रणनीति पर सवाल खड़े होने लगे हैं। बीजेपी के अंदरखाने भी आजसू के साथ गठबंधन खटकने लगा है।