ईडी ने भूमि घोटाले की जांच से जुड़े कथित मनी लॉन्ड्रिंग मामले में झारखंड मुक्ति मोर्चा नेता और सीएम हेमंत सोरेन को जमानत देने के झारखंड HC के आदेश को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है। ईडी के एक सूत्र ने कहा कि एजेंसी अपनी कानूनी टीम के साथ चर्चा के बाद सुप्रीम कोर्ट पहुंची।
सोरेन सरकार के एक सूत्र ने कहा, “हम सबसे खराब स्थिति का सामना करने को तैयार हैं और इस मुद्दे से निपटने के लिए हमारे पास सही रणनीतियां हैं। यदि सुप्रीम कोर्ट जमानत आदेश रद्द कर देता है, तो भी यह हमारे लिए जीत की स्थिति होगी। 28 जून को उन्हें जमानत देते हुए, हाईकोर्ट ने कहा था कि "विश्वास करने के कारण मौजूद हैं" कि सोरेन पीएमएलए अपराध के लिए "दोषी नहीं" थे, जिस पर उन पर आरोप लगाया गया था।
जेल से रिहा होने के बाद हेमंत सोरेन ने 4 जुलाई की शाम को झारखंड के 13वें मुख्यमंत्री के रूप में शपथ ली थी। राज्यपाल सीपी राधाकृष्णन ने उन्हें सरकार बनाने के लिए आमंत्रित किया था। सोरेन क़रीब पांच महीने जेल में बिताने के बाद जमानत पर रिहा हुए थे।जमानत देते हुए कोर्ट ने कहा कि किसी भी रजिस्टर या राजस्व रिकॉर्ड में भूमि के कथित अवैध अधिग्रहण में सोरेन की प्रत्यक्ष संलिप्तता का कोई सबूत नहीं है।
हाईकोर्ट में सिंगल बेंच के जस्टिस रोंगोन मुखोपाध्याय ने कहा कि प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) का यह दावा कि उसकी समय पर कार्रवाई ने सोरेन और अन्य आरोपियों को अवैध रूप से जमीन हासिल करने से रोक दिया, अस्पष्ट है। क्योंकि अन्य गवाहों ने कहा है कि सोरेन ने पहले ही जमीन हासिल कर ली थी।
हाईकोर्ट ने अपने आदेश में कहा था- ईडी का यह दावा कि उसकी समय पर कार्रवाई ने रिकॉर्ड में जालसाजी और हेरफेर करके भूमि के अवैध अधिग्रहण को रोक दिया था, एक अस्पष्ट बयान प्रतीत होता है। जब इस आरोप की पृष्ठभूमि में विचार किया गया तो पता चला कि भूमि पहले ही अधिग्रहित की जा चुकी थी और याचिकाकर्ता के पास थी। वह भी वर्ष 2010 के बाद से मौजूद थी। अदालत ने कहा ईडी जिस समय के इस मामले की जांच कर रही है, उस अवधि के दौरान सोरेन झारखंड में सत्ता में नहीं थे। कोर्ट ने कहा, "उस जमीन से कथित विस्थापितों के पास अपनी शिकायत के निवारण के लिए अधिकारियों के पास न जाने का कोई कारण नहीं था। अगर याचिकाकर्ता ने उस जमीन का अधिग्रहण किया था और उस पर कब्जा किया था जब याचिकाकर्ता सत्ता में नहीं था।"
किसी भी रजिस्टर या राजस्व रिकॉर्ड में उक्त भूमि के अधिग्रहण और कब्जे में हेमंत सोरेन की प्रत्यक्ष भागीदारी का कोई सबूत नहीं है। इसके अलावा, इस तरह के कथित अधिग्रहण से पीड़ित किसी ने भी इस तथ्य के बावजूद शिकायत दर्ज करने के लिए पुलिस से संपर्क नहीं किया था।
हेमंत सोरेन के मामले में यह आरोप शामिल था कि तीन लोगों ने 1985 में कुछ जमीन खरीदी थी। लेकिन सोरेन और अन्य ने जमीन पर कब्जा करने के लिए 2009-10 में उन्हें जबरन बेदखल कर दिया था। आगे यह भी आरोप लगाया गया कि बेदखल किए गए व्यक्तियों की शिकायतों पर पुलिस ने ध्यान नहीं दिया था। ईडी ने पूरा मामला इसी आधार पर तैयार किया था।
लेकिन अदालत के फैसले में साफ कहा गया कि जिस समय की बात ईडी कर रही है तो उस समय हेमंत सोरेन सत्ता में ही नहीं थे। याचिकाकर्ता पुलिस के पास भी नहीं पहुंचे, यह तथ्य भी बिल्कुल साफ है। झारखंड मुक्ति मोर्चा नेता पर ईडी ने फर्जी लेनदेन और जाली दस्तावेजों के जरिए रिकॉर्ड में हेरफेर करने और रांची में करोड़ों रुपये की 8.86 एकड़ जमीन हासिल करने का आरोप लगाया था।
विपक्षी दल अब तक कई बार केंद्र की मोदी सरकार पर आरोप लगा चुकी है कि सीबीआई, ईडी, इनकमटैक्स आदि केंद्रीय एजेंसियों का इस्तेमाल अपना राजनीतिक मकसद साधने के लिए पिछले दस वर्षों से किया जा रहा है। इसी के तहत चुनी हुई सरकार के दो मुख्यमंत्रियों हेमंत सोरेन और अरविन्द केजरीवाल को गिरफ्तार किया गया। जिन मामलों में दोनों गिरफ्तार हुए, अभी उनकी जांच तक पूरी नहीं हुई है। दिल्ली सरकार के डिप्टी सीएम, एक अन्य मंत्री और सांसद को भी इसी तरह गिरफ्तार किया गया। जांच एजेंसियों के इस्तेमाल का मामला संसद में उठ चुका है और विपक्षी दल संसद परिसर में प्रदर्शन भी कर चुके हैं।