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'झारखंड में अब कोई नहीं है देशद्रोही'

'झारखंड में अब कोई नहीं है देशद्रोही'

नागरिकता क़ानून और एनआरसी का विरोध करने वाले जिन 3000 लोगों पर बीजेपी के नेतृत्व वाली रघुबर दास की सरकार में राजद्रोह का केस लगाया गया था उसे अब जेएमएम-कांग्रेस-आरजेडी की हेमंत सोरेन सरकार ने वापस लेने की सिफ़ारिश कर दी है।

नागरिकता क़ानून और एनआरसी का विरोध करने वाले जिन 3000 लोगों पर बीजेपी के नेतृत्व वाली रघुबर दास की सरकार में राजद्रोह का केस लगाया गया था उसे अब जेएमएम-कांग्रेस-आरजेडी की हेमंत सोरेन सरकार ने वापस लेने की सिफ़ारिश कर दी है। यानी उन लोगों पर से राजद्रोह का केस हटाया जाएगा। इसके साथ ही ये केस लगाने वाले अधिकारियों पर कार्रवाई की सिफ़ारिश भी की गई है। बता दें कि हेमंत सोरेन ने अपनी सरकार के पहले ही दिन 2017-18 में पत्थलगड़ी में 10 हज़ार लोगों के ख़िलाफ़ लगाए गए राजद्रोह के मामले को हटाने का आदेश दिया था। उनके ख़िलाफ़ प्रदर्शन करने के मामले में यह केस दर्ज किया गया था।

पूरे देश भर में एनआरसी लागू करने की बात बार-बार कहने के बीच ही केंद्र की बीजेपी सरकार ने नागरिकता क़ानून में संशोधन किया था। विपक्षी दलों ने इसका विरोध किया। देश भर में प्रदर्शन हुए। कई जगहों पर हिंसा भी भड़की। अधिकतर बीजेपी शासित राज्यों में ही हिंसा हुई और प्रदर्शन करने वालों पर अलग-अलग धाराओं में केस दर्ज किया गया। कई जगहों पर प्रदर्शन करने वालों पर राजद्रोह का केस लगाया गया। इस बीच विपक्षी दलों ने तब कहा था कि वे सत्ता में आएँगे तो इनके ख़िलाफ़ मुक़दमों को वापस लिया जाएगा। 

नागरिकता क़ानून के विरोध-प्रदर्शन के बीच ही झारखंड में चुनाव हुए थे। तब प्रधानमंत्री मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने भी नागरिकता क़ानून को मुद्दा बनाया था और ध्रुवीकरण करने की कोशिश की थी। लेकिन जब चुनाव परिणाम आए तो लोगों ने बीजेपी चारों खाने चित हो गई। हेमंत सोरेन के नेतृत्व वाले जेएमएम यानी झारखंड मुक्ति मोर्चा, कांग्रेस और आरजेडी गठबंधन ने बहुमत से सरकार बनाई। और अब हेमंत सोरेन ने उन मुक़दमों पर फ़ैसला ले लिया है।

सोरेन ने ख़ुद इसकी जानकारी ट्विटर पर दी। उन्होंने ट्वीट किया, ‘क़ानून जनता को डराने एवं उनकी आवाज़ दबाने के लिए नहीं बल्कि आम जन-मानस में सुरक्षा का भाव उत्पन्न करने को होता है। मेरे नेतृत्व में चल रही सरकार में क़ानून जनता की आवाज़ को बुलंद करने का कार्य करेगी। धनबाद में 3000 लोगों पर लगाए गए राजद्रोह की धारा को अविलंब निरस्त करने के साथ साथ दोषी अधिकारी के ख़िलाफ़ समुचित करवाई की अनुशंसा कर दी गयी है।' 

उनके ख़िलाफ़ ग़ैर-क़ानूनी रूप से इकट्ठा होने, सरकारी अफ़सरों को अपनी ड्यूटी करने में बाधित करने, सरकारी आदेश को नहीं मानने, मानव जीवन को ख़तरे में डालने, राजद्रोह करने सहित कई धाराओं में केस दर्ज किया गया था। 

एफ़आईआर में मुहम्मद सैयद शहनवाज़, मुहम्मद साजिद ऊर्फ़ शाहिद, हाजी ज़मीर आरिफ़, मुहम्मद सद्दाम, अली अकबर, मुहम्मद नौशाद और मौलाना ग़ुलाम नबी का नाम था। कई ऐसी रिपोर्टें हैं कि उन्होंने ज़िला प्रशासन से कई बार प्रदर्शन की अनुमति माँगी थी, लेकिन उन्होंने कुछ मौखिक आश्वासन दिया था। उन्होंने कहा कि मार्च शांतिपूर्ण था और कोई भी भड़काऊ नारे नहीं लगाए गए थे। अधिकारियों के अनुसार, एफ़आईआर इसलिए दर्ज की गई थी क्योंकि उसके लिए अनुमति नहीं ली गई थी। क़रीब 4000 लोगों ने इस प्रदर्शन में भाग लिया था।

वैसे प्रदर्शन तो सबसे ज़्यादा उत्तर प्रदेश में हुए थे और हिंसा भी ज़्यादा हुई थी। कम से कम 19 लोगों की मौत हो गई है। हिंसक भीड़ को रोक पाने में फ़ेल पुलिस ने कानपुर में 20 हज़ार लोगों और पूरे प्रदेश के अन्य हिस्सों में 4500 से ज़्यादा लोगों पर एफ़आईआर दर्ज की। सहारनपुर में 1500 लोगों पर मुक़दमे दर्ज किए गए। कानपुर में हुई हिंसा में अलग-अलग थानों में कुल 15 रिपोर्ट दर्ज की गई और इसमें 20 हज़ार अज्ञात उपद्रवियों को अभियुक्त बनाया गया। इसी बीच मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने कहा था कि 'जो हिंसा में शामिल थे, उनकी वीडियो और सीसीटीवी फुटेज से पहचान की जा रही है। हम उनसे बदला लेंगे।' उनकी काफ़ी आलोचना भी हुई थी।

बता दें कि नागरिकता क़ानून के ख़िलाफ़ देश भर में प्रदर्शन हो रहे हैं। कई जगहों पर हिंसा भी हुई है। हिंसा की शुरुआत हुई थी। असम में। वहाँ पाँच लोग मारे गए। उत्तर प्रदेश में कई जगहों पर हिंसा में कम से कम 19 लोग मारे गए। दक्षिण भारत में भी कई जगहों पर हिंसा हुई और कम से कम दो लोग मारे गए। दिल्ली के जामिया मिल्लिया इसलामिया विश्वविद्यायल और अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय में भी हिंसा हुई और पुलिस ने बल का प्रयोग किया। इसके बाद देश भर के दूसरे विश्वविद्यालयों में भी ज़बरदस्त विरोध-प्रदर्शन हुए। 

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