झारखंड विधानसभा ने दी आरक्षण 77% तक बढ़ाने की मंजूरी
झारखंड विधानसभा ने शुक्रवार को एक विशेष सत्र के दौरान राज्य में विभिन्न श्रेणियों के लिए आरक्षण को बढ़ाकर 77 प्रतिशत करने वाले विधेयक को अपनी मंजूरी दे दी। विधेयक में प्रस्ताव है कि राज्य संविधान की नौवीं अनुसूची में बदलाव के लिए केंद्र से आग्रह करेगा।
झारखंड में यह फ़ैसला तब लिया गया है जब हाल ही में सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने ईडब्ल्यूएस यानी आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों के लिए 10 फ़ीसदी आरक्षण पर मुहर लगाते हुए 50 फ़ीसदी आरक्षण सीमा पर अपना रुख बदलने का संकेत दिया है। इसके बाद से ही कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या अब आरक्षण के लिए वो पुरानी मांगें फिर से नहीं उठेंगी जिसके लिए कभी भारी हिंसा तक हो चुकी है? कई राज्यों में आरक्षण की ऐसी मांगें की जाती रही हैं, लेकिन 50 फ़ीसदी आरक्षण सीमा का हवाला देते हुए उनकी मांगों को ठुकरा दिया जाता रहा है।
ईडब्ल्यूएस पर सुप्रीम कोर्ट के ताज़ा फ़ैसले के बाद से कयास लगाए जा रहे हैं कि क्या मराठा, जाट, गुर्जर, पाटीदार और कापू आरक्षण की माँग ज़ोर नहीं पकड़ेगी? जिस तरह मराठा आरक्षण के लिए हिंसा की हद तक चले गए थे उसी तरह जाट, गुर्जर, पाटीदार और कापू जाति के लोग भी जब तब आंदोलन करते रहे हैं। जाट और पाटीदार आंदोलन में भी बड़े पैमाने पर हिंसा हुई थी। कई दूसरे राज्यों में दूसरी जातियाँ भी आरक्षण मांगती रही हैं।
इन राज्यों में झारखंड भी शामिल है। इसी झारखंड में एक विशेष सत्र में विधानसभा ने आरक्षण अधिनियम, 2001 में एक संशोधन पारित किया है, जिसमें एसटी, एससी, ईबीसी, ओबीसी और आर्थिक रूप से कमजोर वर्गों यानी ईडब्ल्यूएस के लिए सरकारी नौकरियों में आरक्षण को वर्तमान 60 प्रतिशत से बढ़ाने की बात की गई है। इंडियन एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, प्रस्तावित आरक्षण में अनुसूचित जाति समुदाय के स्थानीय लोगों को 12 प्रतिशत, अनुसूचित जनजातियों को 28 प्रतिशत, अति पिछड़ा वर्ग यानी ईबीसी को 15 प्रतिशत, ओबीसी को 12 प्रतिशत और ईडब्ल्यूएस को 10 फ़ीसदी आरक्षण मिलेगा।
वर्तमान में झारखंड में एसटी को 26 प्रतिशत आरक्षण मिलता है, जबकि एससी को 10 प्रतिशत आरक्षण मिलता है। ओबीसी को वर्तमान में राज्य में 14 प्रतिशत कोटा मिलता है।
कैबिनेट ने कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं। इसमें अधिवास के लिए कट-ऑफ तिथि के रूप में 1932 को मंजूरी देना भी शामिल है। बता दें कि झारखंड में अंग्रेजों के शासन के दौरान वर्ष 1932 में जमीनों का सर्वेक्षण करके खतियान में नाम दर्ज किए गए थे। उसमें जिनके पूर्वजों के नाम हों, उन्हें स्थानीय मानने की नीति बनाने की मांग उठती रही है।
अब हेमंत सरकार ने 1932 के खतियान को स्थानीयता का आधार बनाने को मंजूरी दे दी है। झारखंड की स्थानीयता नीति और आरक्षण के मामलों को अदालतों में चुनौती मिलती रहती है। इसी वजह से कोई नई नीति लागू करना झारखंड सरकार के लिए काफी मुश्किल रहा है।