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यूएन, ईयू के मानवाधिकार प्रतिनिधियों ने स्टैन स्वामी की मृत्यु को 'भयानक' बताया

यूएन, ईयू के मानवाधिकार प्रतिनिधियों ने स्टैन स्वामी की मृत्यु को 'भयानक' बताया

झारखंड के मानवाधिकार कार्यकर्ता स्टैन स्वामी का निधन पुलिस हिरासत में हो गया है। उन्हें एलगार परिषद से जुड़े होने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था और उन पर आतंक-निरोधी क़ानून लगाए गए थे।

संयुक्त राष्ट्र और यूरोपीय संघ के मानवाधिकार प्रतिनिधियों ने झारखंड के मानवाधिकार कार्यकर्ता फ़ादर स्टैन स्वामी की पुलिस हिरासत में मौत को 'भयानक' व 'त्रासद' बताया है और उन्हें जेल में रखे जाने को 'अक्षम्य' क़रार दिया है। 

यूरोपीय संघ के मानवाधिकार विशेष प्रतिनिधि एमन गिलमोर और संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार स्पेशल रिपोर्टेयर मेरी लॉलोर ने ट्वीट कर जेसुइट पादरी की मौत पर दुख जताया है।

संयुक्त राष्ट्र की मानवाधिकार स्पेशल रिपोर्टेयर ने ट्वीट किया, 'भारत से भयानक समाचार है। मानवाधिकार कार्यकर्ता व जेसुइट पादरी फ़ादर स्टैन स्वामी की मौत हिरासत में हुई है, वे नौ महीनों से जेल में थे और उन्हें आतंकवाद के झूठे मामले में गिरफ़्तार किया गया था।' 

इसके पहले जनवरी में स्विटज़रलैंड स्थित संयुक्त राष्ट्र मानवाधिकार कार्यालय ने स्टैन स्वामी की गिरफ़्तारी पर चिंत जताई थी। मेरी लॉलोर ने भी स्टैन स्वामी के जेल में रखे जाने पर चिंता जताई थी और उन्हें रिहा करने की माँग की थी। 

झारखंड के मानवाधिकार कार्यकर्ता स्टैन स्वामी का निधन सोमवार को पुलिस हिरासत में हो गया। उन्हें एलगार परिषद से जुड़े होने के आरोप में गिरफ़्तार किया गया था और उन पर आतंक-निरोधी क़ानून लगाए गए थे।

उन्हें महाराष्ट्र के तलोजा जेल में रखा गया था और बंबई हाई कोर्ट के निर्देश पर मुंबई के होली हॉस्पिटल में उनका इलाज किया जा रहा था। वे वेंटीलेटर पर थे और उनकी ज़मानत की याचिकाओं को खारिज कर दिया गया था। 

झारखंड में काम करने वाले 84 साल के इस जेसुइट पादरी ने पिछले सप्ताह ही ज़मानत की याचिका दायर की थी और उन पर यूएपीए लगाने के फ़ैसले को चुनौती दी थी।

राहुल गांधी ने जताया शोक

कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने ट्वीट कर जेसुइट पादरी की मृत्यु पर शोक जताया और कहा कि 'फ़ादर स्टैन स्वामी न्याय व मानवीय व्यवहार के हक़दार थे।' 

'केंद्र सरकार ज़िम्मेदार'

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने राज्य के इस मानवाधिकार कार्यकर्ता की मृत्यु के लिए केंद्र सरकार को ज़िम्मेदार ठहराया। उन्होंने कहा कि इस पूर्ण हृदयहीनता और समय पर दवा व दूसरी स्वास्थ्य सुविधाएं मुहैया नहीं कराने के लिए केंद्र सरकार उत्तरदायी है।

एनएचआरसी का नोटिस

स्टैन स्वामी की मृत्यु पर चिंतित होना और सवाल उठाना इसलिए भी स्वाभाविक है कि राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने बीते दिनों उनके स्वास्थ्य की गंभीर स्थिति की शिकायतों को देखते हुए महाराष्ट्र सरकार के मुख्य सचिव को नोटिस जारी था। इसमें यह भी कहा गया था कि ज़िंदगी बचाने वाले उपाए करने और आधारभूत मानवाधिकार की सुरक्षा की जाए। 

बयान में कहा गया था कि इससे पहले, आयोग को 16 मई, 2021 को एक शिकायत मिली थी कि स्वामी को कोरोना अवधि के दौरान चिकित्सा सुविधा से वंचित किया जा रहा था। यह भी आरोप लगाया गया था कि उन्हें टीका नहीं लगाया गया था और जेल अस्पताल में उचित चिकित्सा देखभाल नहीं थी। 

जेल में क्यों थे स्वामी?

स्टैन स्वामी लंबे समय से पार्किंसन बीमारी से पीड़ित थे। उनके ख़िलाफ़ यूएपीए के मामले की जाँच एनआईए कर रही थी। एनआईए ने उन्हें महाराष्ट्र के भीमा कोरेगाँव मामले में अभियुक्त बनाया था। 

एल्गार परिषद का मामला 31 दिसंबर, 2017 को पुणे के एक सम्मेलन में कथित रूप से भड़काऊ भाषणों से जुड़ा है। पुलिस का दावा है कि इसमें भड़काऊ भाषण के अगले दिन ही भीमा-कोरेगाँव युद्ध स्मारक के पास हिंसा हुई। पुलिस ने दावा किया है कि सम्मेलन कथित माओवादी लिंक वाले लोगों द्वारा आयोजित किया गया था।

हर साल 1 जनवरी को दलित समुदाय के लोग भीमा कोरेगाँव में जमा होते हैं और वे वहाँ बनाये गए 'विजय स्तम्भ' के सामने अपना सम्मान प्रकट करते हैं। 2018 को 200वीं वर्षगाँठ थी लिहाज़ा बड़े पैमाने पर लोग जुटे थे।

इस दौरान हिंसा हो गई थी। इसी हिंसा के मामले में कार्रवाई की गई और इस मामले में जुड़े होने को लेकर जन कवि वर वर राव, सुधा भारद्वाज, अरुण फ़रेरा, वरनों गोंजाल्विस और गौतम नवलखा को भी अभियुक्त बनाया गया है।

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