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सिकुड़ता जा रहा है एनडीए, बड़े दलों ने छोड़ा साथ

सिकुड़ता जा रहा है एनडीए, बड़े दलों ने छोड़ा साथ

निश्चित रूप से एनडीए के कमजोर होने का असर साल 2024 के लोकसभा चुनाव में जरूर हो सकता है क्योंकि नीतीश कुमार के आने से विपक्ष को मजबूती मिली है। 

केंद्र की सरकार की अगुवाई कर रहा राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन यानी एनडीए लगातार सिकुड़ता जा रहा है। अब कोई भी बड़ा राजनीतिक दल एनडीए के साथ नहीं है। ऐसे में सवाल यह है कि क्या एनडीए सिर्फ छोटे दलों का ही गठबंधन रह जाएगा और इसके कमजोर होने से क्या 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी की सत्ता में वापसी की संभावनाओं पर भी असर पड़ेगा। 

बीजेपी की अगुवाई में एनडीए की स्थापना पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी, पूर्व उप प्रधानमंत्री लालकृष्ण आडवाणी ने 1998 में की थी। 1998 में 13 महीने तक और उसके बाद 1999 में 5 साल तक एनडीए के नेतृत्व में देश में सरकार चली थी। 

साल 2004 से 2014 तक लालकृष्ण आडवाणी एनडीए की कमान संभालते रहे थे और उसके बाद केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह को एनडीए का चेयरमैन बनाया गया था। 

साल 2014 में जब बीजेपी को पहली बार अपने दम पर बहुमत मिला, उस वक्त एनडीए में 24 राजनीतिक दल हुआ करते थे आज इनकी संख्या 17 के आसपास है। साल 2014 से 2019 के बीच में जम्मू-कश्मीर की पीपल्स डेमोक्रेटिक पार्टी और चंद्रबाबू नायडू की तेलुगू देशम पार्टी ने एनडीए का साथ छोड़ दिया था। 2019 में ही शिवसेना ने मुख्यमंत्री पद के बंटवारे के मुद्दे पर एनडीए छोड़कर एनसीपी और कांग्रेस के साथ महाराष्ट्र में सरकार बना ली थी। 

साल 2020 में एक और बड़े राजनीतिक सहयोगी शिरोमणि अकाली दल ने कृषि कानूनों के मुद्दे पर एनडीए का साथ छोड़ दिया था।

इन्होंने भी छोड़ा साथ 

इसके अलावा कई क्षेत्रीय राजनीतिक दलों जैसे झारखंड में सुदेश महतो के ऑल झारखंड स्टूडेंट्स यूनियन(आजसू), उत्तर प्रदेश में ओमप्रकाश राजभर की सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी, राजस्थान में हनुमान बेनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी, असम में बोडो पीपल्स फ्रंट, पश्चिम बंगाल की गोरखा जनमुक्ति मोर्चा, गोवा में गोवा फॉरवर्ड पार्टी, दक्षिण के राजनीतिक दलों एमडीएमके, डीएमडीके ने भी बीते कुछ सालों में एनडीए का साथ छोड़ दिया। हालांकि बाद में आजसू फिर से एनडीए में लौट आई थी।

 - Satya Hindi

ये दल हैं साथ

तमिलनाडु में बीजेपी को एनडीए के सहयोगी के रुप में एआईएडीएमके का साथ है लेकिन वह खुद ही टूट का शिकार हो चुका है। जबकि महाराष्ट्र में शिवसेना के एकनाथ शिंदे गुट के साथ मिलकर उसने हाल ही में सरकार बनाई है। बिहार में केंद्रीय मंत्री पशुपति पारस की अगुवाई वाली लोक जनशक्ति पार्टी और सांसद चिराग पासवान की अगुवाई वाली लोक जनशक्ति पार्टी (रामविलास) उसके साथ है। उत्तर प्रदेश में अपना दल (सोनेलाल) और संजय निषाद की निषाद पार्टी का समर्थन उसे हासिल है। असम में उसके पास असम गण परिषद का भी समर्थन है। इसके अलावा पूर्वोत्तर के दूसरे राज्यों में कुछ छोटे राजनीतिक दल उसके साथ हैं लेकिन वे बहुत ज्यादा प्रभावी नहीं हैं। 

2023 का साल 

निश्चित रूप से एनडीए के कमजोर होने का असर साल 2024 के लोकसभा चुनाव में जरूर हो सकता है क्योंकि नीतीश कुमार के आने से विपक्ष को मजबूती मिली है। बिहार ऐसा प्रदेश है जहां की सियासत उत्तर प्रदेश और झारखंड को भी काफी हद तक प्रभावित करती है। साल 2023 में 9 राज्यों में विधानसभा के चुनाव भी होने हैं और यह साल बेहद अहम है। 

अगर विपक्षी दल पूरी ताकत के साथ 2023 के तमाम चुनावी राज्यों में चुनाव लड़ते हैं तो बीजेपी के लिए मुश्किलें बढ़ जाएंगी। साल 2003 के चुनाव नतीजे 2024 के लोकसभा चुनाव को भी काफी हद तक प्रभावित करेंगे।

मोदी-शाह का एनडीए 

एनडीए के बारे में कहा जाता है कि अटल-आडवाणी का एनडीए और मोदी-शाह का एनडीए पूरी तरह अलग है। यह भी कहा जाता है कि अटल-आडवाणी के दौर में एनडीए के तमाम राजनीतिक दलों के नेताओं से सभी मुद्दों पर रायशुमारी की जाती थी लेकिन मोदी-शाह के युग में एनडीए के राजनीतिक दलों से रायशुमारी नहीं की जाती। इसके अलावा बीजेपी पर आरोप लगता है कि वह सहयोगी दलों की ही सियासी ज़मीन को ख़त्म करने का काम करती है और इस वजह से ही कोई बड़ा राजनीतिक दल अब एनडीए के साथ नहीं है।

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