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कश्मीरः धारा 370 हटाने वाली भाजपा अनंतनाग-राजौरी में चुनाव लड़ने से क्यों भागी

कश्मीरः धारा 370 हटाने वाली भाजपा अनंतनाग-राजौरी में चुनाव लड़ने से क्यों भागी

कश्मीर घाटी में चुनाव लड़ने से भाजपा भाग रही है। गुलाम नबी आजाद ने पहले अनंतनाग-राजौरी सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा की लेकिन अंत में पीछे हट गए। भाजपा कश्मीर घाटी में अपने प्रॉक्सी दलों के साथ जमीन तलाश रही है। जबकि धारा 370 हटाने और चुनाव क्षेत्रों का परिसीमन अपने अनुकूल कराने के बावजूद वो चुनाव लड़ने की हिम्मत नहीं दिखा रही। जानिए पूरी राजनीति क्या हैः

केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह शनिवार 27 अप्रैल को गुजरात के राजकोट में थे। वहां उन्होंने जो कहा, पढ़िए-  ''कश्मीर हमारा है, लेकिन कांग्रेस के लोग और खड़गे कह रहे हैं कि गुजरात और राजस्थान का कश्मीर से क्या लेना-देना। राहुल गांधी ने कहा कि धारा 370 हटाओगे तो नदियां कश्मीर में खून बहेंगी, लेकिन पांच साल में एक पत्थर भी नहीं फेंका गया...कांग्रेस सरकार के दौरान बम धमाके होते थे, लेकिन उरी और पुलवामा हमले के बाद पीएम नरेंद्र मोदी ने सर्जिकल तरीके से आतंकवाद को खत्म किया स्ट्राइक और एयर स्ट्राइक से पीएम मोदी ने दस साल में भारतीय अर्थव्यवस्था को 11वें से 5वें स्थान पर पहुंचा दिया।'' कश्मीर को लेकर बड़ी बड़ी बातें कहने वाले अमित शाह की पार्टी भाजपा उसी कश्मीर में अनंतनाग-राजौरी लोकसभा सीट पर चुनाव लड़ने से भाग रही है। अब वो कह रही है कि अनंतनाग लोकसभा सीट का चुनाव टाला जाए। जबकि नेशनल कॉन्फ्रेंस के उमर अब्दुल्लाह और पीडीपी की महबूबा मुफ्ती ने कहा कि अनंतनाग में चुनाव होने चाहिए। 

लोकसभा चुनाव की घोषणा के बाद से ही इस सीट पर सबकी नजरें टिकी हुई हैं क्योंकि इस सीट से बीजेपी के दोस्त और पूर्व मुख्यमंत्री गुलाम नबी आजाद के चुनाव लड़ने की उम्मीद थी। उनकी डेमोक्रेटिक प्रोग्रेसिव आज़ाद पार्टी (डीपीएपी) ने आज़ाद की उम्मीदवारी की घोषणा भी की। जबकि भाजपा ने अपने पत्ते नहीं खोले।

घाटी में इस बात पर व्यापक बहस हो रही थी कि क्या अनंतनाग-राजौरी सीट भाजपा को घाटी में उसे एंट्री दिला देगी। हालाँकि, जैसे ही नामांकन पत्र दाखिल करने की आखिरी तारीख करीब आई, दोनों दलों यानी गुलाम नबी आजाद और भाजपा ने दौड़ से बाहर होकर सभी को हैरान कर दिया। 17 अप्रैल को, आज़ाद ने घोषणा की कि वह चुनाव मैदान में नहीं उतरेंगे क्योंकि वह केवल जम्मू-कश्मीर के लोगों के बीच रहकर उनकी सेवा करना चाहते हैं।

ऐसा क्यों हुआः दरअसल, जब गुलाम नबी आजाद ने अनंतनाग-राजौरी सीट से चुनाव लड़ने की घोषणा की तो घाटी में यह चर्चा शुरू हो गई कि आजाद दरअसल भाजपा की ओर से लड़ेंगे। भाजपा यहां सिर्फ मौजूदगी दिखाने के लिए रहेगी। गुलाम नबीं आजाद चुनाव जीतने के बाद पार्टी सहित भाजपा में चले जाएंगे। यह चर्चा आजाद पर भारी पड़ी और वो भाग खड़े हुए। इसी तरह भाजपा को भी एहसास हो गया कि इस चुनाव में मतदाता उसे अलग-थलग कर देंगे। इससे पहले की उसके धारा 370 हटाने का जवाब सामने आए, वो भी पीछे हट गई। लेकिन उसने चाल यह चली कि अब मांग रख दी है कि अभी फिलहाल इस सीट पर चुनाव टाला जाए।

गुलाम नबी आजाद के पीछे हटने के बाद उनकी पार्टी ने इस सीट से मोहम्मद सलीम पारे को अपना उम्मीदवार बनाया है। पिछले कुछ हफ्तों में, आज़ाद और तथाकथित भाजपा नेताओं ने जम्मू-कश्मीर के कई हिस्सों का दौरा किया और जनता के मूड को जानने के लिए जाहिरा तौर पर कई रैलियाँ और बैठकें कीं। उन्होंने देख लिया कि भावना उनके ख़िलाफ़ है, जिसके चलते उन्होंने चुनाव से हटने का निर्णय लिया। कई रैलियों में गुलाम नबी आजाद के सामने ही जनता ने उन्हें भाजपा का एजेंट कह दिया। पीडीपी के प्रवक्ता मोहित भान का कहना है कि आजाद को उनके खिलाफ जनभावना मिली क्योंकि वह भाजपा के प्रति अपना समर्थन छिपाने में विफल रहे। उन्होंने कहा, "इसके अलावा, अनंतनाग में लोगों के साथ उनका कोई जुड़ाव नहीं था।

भाजपा भी भागीः बीजेपी ने नामांकन पत्र दाखिल करने की समय सीमा से कुछ दिन पहले संकेत दिया था कि वह कश्मीर से चुनाव नहीं लड़ सकती है। 16 अप्रैल को अपनी जम्मू यात्रा के दौरान, गृह मंत्री अमित शाह ने कहा था: "घाटी में कमल अपने आप खिल जाएगा" और "पार्टी जल्दी में नहीं है"। भाजपा नेता अल्ताफ ठाकुर का कहना है कि चुनाव से बचना एक रणनीतिक कदम है।

चुनाव से क्यों भाग रही भाजपा

कश्मीर में चुनाव में भाजपा का सबकुछ दांव है। जुमले से लेकर वादे तक। यहां हार का मतलब अनुच्छेद 370 को रद्द करने के फैसले पर तमाचा मारने जैसा होगा। घाटी में स्थिति सामान्य होने के दावे भी मजाक में बदलते रहते हैं। कश्मीर के आम लोगों और राजनीतिक वर्ग के बीच एक आम धारणा है कि भाजपा ने जम्मू-कश्मीर अपनी पार्टी (जेकेएपी) और सज्जाद गनी लोन के नेतृत्व वाली पीपुल्स कॉन्फ्रेंस (पीसी) जैसे अपने प्रतिनिधियों के माध्यम से कश्मीर में चुनाव लड़ने का विकल्प चुना है। जेकेएपी प्रमुख अल्ताफ बुखारी के आवास पर भाजपा के जम्मू-कश्मीर प्रभारी तरुण चुघ और लोन के बीच हाल ही में हुई बैठक ने ऐसी धारणाओं को कुछ हद तक बल दिया। यानी भाजपा अपनी प्रॉक्सी दलों और नेताओं के जरिए जमीन तलाश रही है।

भाजपा को अब घाटी की असलियत पता चल गई है। जम्मू छोड़कर शेष घाटी में नेशनल कॉन्फ्रेंस, पीडीपी और कांग्रेस का थोड़ा बहुत जनाधार है। भाजपा घाटी में कहीं नहीं है। जम्मू में जरूर उसका आधार है। ऐसे में वो अपनी भद्द नहीं पिटवाना चाहती है। घाटी से हारने का मतलब पूरी दुनिया में यही जाएगा कि कश्मीरी अवाम ने भाजपा सरकार को धारा 370 रद्द करने का जवाब दे दिया है। 

जम्मू कश्मीर की पांच लोकसभा सीटों पर पांच चरणों में चुनाव होंगे। अभी जिस सीट अनंतनाग-राजौरी की चर्चा हुई, वहां 7 मई को वोट डाले जाएंगे। उधमपुर सीट के लिए 19 और जम्मू सीट के लिए 26 अप्रैल को वोट पड़ चुके हैं। ये दोनों हिन्दु बहुल इलाके हैं। श्रीनगर सीट पर 13 मई और बारामूला सीट पर 20 मई को वोट डाले जाएंगे। पांच सीटों के लिए पांच चरणों में चुनाव कराया जाना बहुत कुछ संकेत दे रहा है। जबकि दूसरी तरफ हालात सामान्य होने का दावा भी किया जा रहा है।

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