जम्मू-कश्मीर में हिन्दुओं को एक बार फिर निशाना बनाने की कोशिशें हो रही हैं। श्रीनगर में माखन लाल बिंदरू की हत्या के दो दिन बाद ही दो शिक्षकों की हत्या कर दी गई है। इनमें से एक हिन्दू व एक सिख हैं।समझा जाता है कि इन तीनों ही वारदातों के पीछे आंतकवादी संगठन 'द रेजिस्टेन्स फ़ोर्स' का हाथ है, हालांकि सुरक्षा बलों ने पक्के तौर पर कुछ नहीं कहा है।
एक पुलिस अधिकारी ने कहा है कि श्रीनगर के संगम ईदगाह में दो स्कूली शिक्षकों को गोली मार दी गई है। इस इलाक़े को चारों ओर से घेर लिया गया है और आतंकवादियों को ढूंढने का काम शुरू कर दिया गया है।
उमर अब्दुल्ला ने शोक जताया
जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने इस पर ट्वीट कर शोक जताया है। उन्होंने कहा है, "श्रीनगर से एक बार फिर दुखद खबरें आ रही हैं। इस बार सरकारी स्कूल के दो शिक्षकों को निशाना बना कर मारा गया है। इस अमानवीय आतंकवादी हमले की निंदा शब्दों में नहीं की जा सकती है। मैं ईश्वर से प्रार्थना करता हूं कि मारे गए लोगों की आत्मा को शांति मिले।"निशाने पर कश्मीरी पंडित?
बता दें कि इसके पहले मंगलवार को श्रीनगर के इक़बाल पार्क इलाक़े में एक 70 वर्षीय दवा दुकानदार की इसी तरह गोली मार कर हत्या कर दी गई थी।
बिंदरू एक कश्मीरी पंडित थे और 1990 के दशक में आतंकवाद के चरम पर होने व कश्मीरी पंडितों को निशाना बनाए जाने के बाद भी उन्होंने कश्मीर को नहीं छोड़ा था।
यह वह समय था जब जम्मू- कश्मीर से बड़ी संख्या में कश्मीरी पंडित पलायन कर देश के दूसरे हिस्सों में गए थे और फिर कभी लौटकर वापस नहीं जा पाए।
इक़बाल पार्क की घटना के बाद आतंकवादियों ने श्रीनगर के लाल बाज़ार में हमला किया और एक रेहड़ी वाले की हत्या कर दी। पुलिस ने उनकी पहचान वीरेंद्र पासवान के रूप में की है। पुलिस ने बताया कि बिहार के भागलपुर का रहने वाला वह शख्स श्रीनगर के जदीबल इलाक़े में रहता था।
एक घंटे के भीतर तीसरे आतंकी हमले में बांदीपोरा में आतंकवादियों ने एक और नागरिक की गोली मारकर हत्या कर दी थी थी। उस शख्स की पहचान इलाक़े के एक टैक्सी स्टैंड के अध्यक्ष मुहम्मद शफी के रूप में हुई है।
बीते साल पाकिस्तान ने भारत में सक्रिय कई आतंकवादी गुटों को मिला कर टीआरएफ़ यानी 'द रेजिस्टेन्स फ़ोर्स' का गठन किया था। इसका मक़सद अंतरराष्ट्रीय समुदाय की आँखों में धूल झोंकना था।
पाकिस्तान का मक़सद यह दिखाना था कि यह स्थानीय लोगों का प्रतिरोध है। इसके साथ ही इसका नाम कुछ इस तरह रखा गया था कि किसी इसलामी आतंकवादी गुट के बारे में संदेह न हो।
हालांकि अभी तक किसी गुट ने इन हत्याओं की ज़िम्मेदारी नहीं ली है न ही पुलिस ने कुछ कहा है, पर पर्यवेक्षकों का मानना इन वारदातों के पीछी टीआरएफ़ का हाथ हो सकता है।