आखिर कश्मीर घाटी से पलायन को मजबूर हैं यूपी, बिहार के लोग 

08:37 pm Oct 18, 2021 | सत्य ब्यूरो

जम्मू-कश्मीर के आतंकवादी निहत्थे प्रवासी मजदूरों पर हमले कर एक दूरगामी मक़सद हासिल करने की रणनीति तो अपना रहे हैं, पर वे यह नहीं समझ रहे हैं कि इससे नुक़सान इस राज्य को भी होगा। बाहरी लोगों पर ताज़ातरीन आतंकवादी हमलों के बाद जम्मू-कश्मीर से बड़ी तादाद में पलायन तो हो ही रहा है, यह संकेत भी जा रहा है कि बाहर के लोग वहां न जाएं।

रविवार को संदिग्ध आतंकवादियों ने कुलगाम के विनपोह में हमले कर दो बिहारी मजदूरों की हत्या कर दी। इस हमले में एक मजदूर घायल हो गया।

मारे गए मजदूरों की पहचान राजा ऋषिदेव और जोगिन्द्र ऋषिदेव के रूप में की गई है। वहीं घायल आदमी की पहचान चुनचुन ऋषिदेव के तौर पर हुई है।

कुलगाम की इस वारदात में मारे गए लोगों के साथ ही बीते दो हफ़्तों में जम्मू-कश्मीर में मरने वाले आम नागरिकों की संख्या 11 हो गई है।

एक मोटे अनुमान के मुताबिक, जम्मू-कश्मीर में लगभग तीन लाख प्रवासी मजदूर हैं जो स्थानीय लोगों की मदद धान की खेती, सेब की बागवानी और ईंट भट्ठे में करते हैं।

सस्ते मजदूर

ये महत्वपूर्ण इसलिए हैं कि ये सस्ते मजदूर हैं जो सीजन ख़त्म होने पर अपने घर लौट जाते हैं, उन्हें काम का हुनर है, उन पर काम छोड़ कर निश्चित रहा जा सकता है।

लेकिन रविवार की वारदात के बाद सोमवार से ही सैकड़ों की संख्या में ये लोग अपने घर लौट रहे हैं। इनमें से ज़्यादातर बिहार और उत्तर प्रदेश के हैं।

आतंक की रणनीति

जब 1990 के दशक में घाटी में आतंकवाद चरम पर था और कश्मीरी पंडितों को निशाने पर लिया गया था, उस समय भी इन्होंने पलायन नहीं किया था। आतंकवादियों ने उस समय इन पर हमला नहीं किया था।

पर्यवेक्षकों का कहना है कि आतंकवादी इन पर सोची समझी रणनीति के तहत हमले कर रहे हैं ताकि वे यह दावा कर सकें कि स्थिति सामान्य नहीं है जैसा कि सरकार दावा कर रही है।

इसके अलावा ये आतंकवादी गुट इस आशंका को भी दूर करना चाहते हैं कि बाहर से आए लोग जम्मू-कश्मीर में बस जाएंगे और स्थानीय लोगों की ज़मीन और रोजी-रोटी उनसे छीनने लगेंगे।

आतंकवादियों का मक़सद शेष भारत को यह संकेत देना है कि वे जम्मू-कश्मीर जाकर वहाँ बसने या कामकाज करने की बात न सोचें।

अर्थव्यवस्था पर असर

कुछ स्थानीय लोगों ने 'आउटलुक' को बताया कि इन मजदूरों के चले जाने से राज्य की अर्थव्यवस्था पर असर पड़ेगा क्योंकि सेब की बागवानी और दूसरे कामकाज प्रभावित होंगे, सस्ते श्रमिक की कमी होने से विकास कार्य प्रभावित होंगे।

स्थानीय लोगों का कहना है कि ये मजदूर यहाँ काम करने आए हैं, उन्हें बाहर निकलना ही होगा, तभी उन्हें काम मिलेगा। वे घर पर नहीं बैठ सकते। ऐसे में वे सॉफ्ट टारगेट हैं, उन्हें निशाना बनाना आतंकवादियों के लिए आसान भी है और उनकी रणनीति के लिये मुफ़ीद भी है।

सीपीआईएम के जम्मू-कश्मीर के नेता युसुफ़ तारीगामी ने आउटलुक से कहा,

इन मजदूरों पर हमला दरअसल जम्मू-कश्मीर के लोगों को निशाने पर लेने के लिए किया गया है। यह फसल का समय है और ऐसे में इनके यहां से चले जाने से राज्य की अर्थव्यवस्था को ही नुक़सान होगा।

निशाने पर कश्मीरी पंडित

इसके पहले जब श्रीनगर में दवा दुकान वाले माखन लाल बिंदरू और दो शिक्षकों की हत्या कर दी गई, तब, उसके अगले दिन ही सैकड़ों लोगों ने अपने घर-बार छोड़ दिए थे और रातोरात जम्मू के लिए कूच कर गए थे। ये कश्मीरी पंडित थे।

क्या कहना है एल-जी का?

पलायन का नया दौर शुरू हुआ है, उसमें बाहर से आए हुए लोग हैं। ये लोग रोजी रोटी की तलाश में आए थे और मेहनत मजदूरी करते थे या सड़क किनारे रेहड़ी लगा कर कुछ बेच कर कुछ पैसे कमा लेते थे। ये ज़्यादा प्रभावित और आतंकित हैं। ये इसलिए भाग रहे हैं कि इनके पास कश्मीर में अपना घर या किसी का सहारा तक नहीं है।

दूसरी ओर जम्मू-कश्मीर के लेफ़्टीनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा ने कहा है कि

आतंकवादियों और उनसे सहानुभूति रखने वालों का पता लगाया जाएगा और खून के हर बूंद का बदला लिया जाएगा।


मनोज सिन्हा, लेफ़्टीनेंट गवर्नर, जम्मू-कश्मीर

क्या कहना है पंडितों का?

सीपीआईएम नेता तारीगामी ने भी कहा है कि "सिर्फ निंदा करने से नहीं होगा, आगे बढ़ कर इसका विरोध करना होगा और इन अपराधियों को दंड दिलाना होगा।"

दूसरी ओर, कुछ कश्मीरी पंडितों ने कहा है कि वे किसी कीमत पर अपना घर-बार छोड़ कर नहीं जाएंगे। कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति के संजय टिक्कू ने कहा है कि

लोग घाटी के मुसलमान भाइयों को छोड़ कर नहीं जाएंगे, उन्हीं के साथ जिएंगे और उन्हीं के साथ मरेंगे।


संजय टिक्कू, अध्यक्ष, कश्मीरी पंडित संघर्ष समिति

संजय टिक्कू ने 'फ़्री प्रेस कश्मीर' से कहा, "मैंने देखा है कि स्थानीय लोगों ने मसजिदों से अल्पसंख्यकों के प्रति समर्थन का एलान किया है। यह एक बहुत ही सद्भावना भरा काम है। हिन्दुओं का मनोबल इससे बढ़ा है और वे घाटी छोड़ कर नहीं जाने की सोच रहे है।" 

सवाल यह उठता है कि कश्मीर की इस स्थिति के लिए कौन ज़िम्मेदार है? आतंकवादी गुट और पाकिस्तानी ख़ुफ़िया एजेन्सी आईएसआई की रणनीति तो घाटी में अशांति फैलाने की है, लेकिन वे लोग क्या कर रहे हैं जिन्होंने दावा किया था कि अनुच्छेद 370 खत्म होने के बाद आतंकवाद भी खत्म हो जाएगा। वे अब बिहार-उत्तर प्रदेश से कश्मीर गए लोगों को क्या जवाब देंगे?