कश्मीर: व्यापारी बोले- पैकेज नाकाफ़ी, 45 हज़ार करोड़ का हुआ नुक़सान

08:54 am Sep 21, 2020 | हारून रेशी - सत्य हिन्दी

लेफ्टिनेंट गवर्नर (प्रशासन) ने जम्मू और कश्मीर के खस्ता हाल व्यापार क्षेत्र को पुनर्जीवित करने के लिए 1,350 करोड़ रुपये के वित्तीय पैकेज की घोषणा की है। कश्मीर के व्यापारिक संगठनों ने इस पर मिली-जुली प्रतिक्रिया व्यक्त की है, लेकिन अर्थशास्त्रियों का कहना है कि यह पैकेज उस भारी नुक़सान की तुलना में बहुत छोटा है जिसका सामना 5 अगस्त के बाद जम्मू-कश्मीर को करना पड़ा है।

कैसे ध्वस्त हुई अर्थव्यवस्था?

पिछले साल 2 अगस्त को, कश्मीर घाटी में पर्यटन का सीजन पूरे जोरों पर था। न केवल सभी पर्यटक स्थल यहां देशी और विदेशी पर्यटकों से भरे हुए थे, बल्कि लाखों अमरनाथ यात्री भी घाटी में मौजूद थे। अचानक गवर्नर प्रशासन ने एक सर्कुलर जारी करते हुए पर्यटकों को 24 घंटे के भीतर घाटी को खाली करने का आदेश दिया। किसी को समझ नहीं आया कि क्या हो रहा है। 

तब एक आधिकारिक झूठ फैलाया गया कि घाटी में 'बड़ा आतंकवादी' हमला होने वाला है। यहां तक कहा गया कि सुरक्षा एजेंसियों को जानकारी मिली है कि आतंकवादी अमरनाथ यात्रियों को निशाना बनाना वाले हैं।

आधिकारिक आदेश के बाद, कश्मीर घाटी 4 अगस्त की शाम तक पर्यटकों से खाली थी। उस रात कर्फ्यू लगाया गया और अगले दिन संसद में जम्मू-कश्मीर की विशेष संवैधानिक स्थिति और राज्य का दर्जा समाप्त करने के लिए एक विधेयक पारित किया गया। उसके बाद, कश्मीर लगभग छह महीने तक बंद रहा। उस दौरान  इंटरनेट सेवा पूरी तरह से ठप थी। लगातार छह महीनों तक सभी वाणिज्यिक, औद्योगिक और शैक्षणिक क्षेत्र पूरी तरह से बंद रहे।

लॉकडाउन से गहरी हुई मार 

इस साल फरवरी में जब लोग अपने व्यापार और अर्थव्यवस्था को पुनर्जीवित करने की कोशिश करने लगे तो कुछ ही हफ़्ते बाद कोरोना महामारी आ गई। कोरोना लॉकडाउन 18 मार्च से शुरू हुआ जो आंशिक रूप से आज भी जारी है। इस प्रकार, कश्मीर की वाणिज्यिक, औद्योगिक और अन्य आर्थिक गतिविधियां एक वर्ष से अधिक समय से बंद हैं। निजी क्षेत्र के अधिकांश उद्यम ध्वस्त हो गए हैं। 

4.5 लाख लोगों की नौकरी गई 

घाटी के व्यापार, औद्योगिक और पर्यटन संघों के दर्जनों संगठनों वाले मंच- कश्मीर चैंबर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज की एक सर्वेक्षण रिपोर्ट के अनुसार, एक साल के लॉकडाउन के कारण कश्मीर को 45,000 करोड़ रुपये का नुक़सान हुआ है और इस दौरान 4.5 लाख से अधिक लोगों ने अपनी नौकरी खो दी। चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज 85 साल पुराना सरकारी मान्यता प्राप्त ट्रेडिंग प्लेटफॉर्म है। 

इसके प्रमुख शेख आशिक ने ‘सत्य हिंदी’ के साथ बातचीत में कहा, "पिछले साल 2 अगस्त को, राज्यपाल  प्रशासन द्वारा पर्यटकों को 24 घंटे के भीतर घाटी को खाली करने का आदेश ऐसा था, जैसे कि सरकार ने चलती-फिरती अर्थव्यवस्था के इंजन को एक झटके में बंद कर दिया हो। क्योंकि तब से हमारी अर्थव्यवस्था को जो नुकसान हुआ है, उसकी भरपाई असंभव है।”

हमने राज्यपाल प्रशासन के 1350 करोड़ रुपये के वित्तीय पैकेज का स्वागत किया है लेकिन वास्तविकता यह है कि हमारी अर्थव्यवस्था को जितना नुक़सान हुआ है, इसकी तुलना में यह पैकेज बहुत कम है।


शेख आशिक, प्रमुख, चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज

एक अन्य प्रमुख व्यापारिक संगठन कश्मीर ट्रेड अलायंस की एक रिपोर्ट में कहा गया है कि मार्च से लगे लॉकडाउन से कश्मीर की अर्थव्यवस्था को 21 हज़ार 320 करोड़ रुपये का नुक़सान हुआ है, लेकिन अगर पिछले साल 5 अगस्त के बाद कई महीनों तक सरकार द्वारा लगाए गए लॉकडाउन से हुए नुक़सान को भी ध्यान में रखा जाए तब कश्मीर की अर्थव्यवस्था को 45,000 करोड़ रुपये का नुक़सान हुआ है।

जाहिर है कि केवल लेफ्टिनेंट गवर्नर मनोज सिन्हा द्वारा घोषित किए गए मात्र 1,350 करोड़ रुपये का वित्तीय पैकेज आर्थिक नुक़सान की भरपाई के लिए एक छोटी राशि है।

15,000 करोड़ का पैकेज ज़रूरी

हालांकि, लेफ्टिनेंट गवर्नर ने कहा कि उन्हें उम्मीद है कि सरकार अधिक वित्तीय पैकेज भी देगी। ‘सत्य हिंदी’ से बात करते हुए कश्मीर इकनॉमिक अलायंस के अध्यक्ष मोहम्मद यासीन खान ने कहा, "हम तो सरकार से कश्मीर की अर्थव्यवस्था को सुधारने के लिए 15,000 करोड़ रुपये के वित्तीय पैकेज की मांग कर रहे हैं। क्योंकि हमारे अनुमान के अनुसार, केवल इस राशि से जम्मू-कश्मीर की अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाया जा सकता है। लेकिन लेफ्टिनेंट गवर्नर प्रशासन ने केवल 1,350 करोड़ रुपये के वित्तीय पैकेज की घोषणा की है। हालांकि, उन्होंने खुद कहा है कि यह सरकारी सहायता की शुरुआत है। हमें उम्मीद है कि आने वाले दिनों में अधिक बड़े और कुशल वित्तीय पैकेज प्रदान किए जाएंगे।” हालांकि, अर्थशास्त्रियों का कहना है कि भविष्य की वित्तीय सहायता देश की समग्र आर्थिक स्थिति पर निर्भर करेगी।

देखिए, कश्मीर के हालात पर वरिष्ठ पत्रकार आशुतोष का वीडियो- 

टूरिज्म, फ्रूट इंडस्ट्री को तगड़ा झटका 

पर्यटन क्षेत्र को हुए नुक़सान का अनुमान पर्यटन विभाग के आंकड़ों से लगाया जा सकता है, जिसके अनुसार वर्ष 2018 में, अगस्त के महीने में, घाटी में डेढ़ लाख से अधिक पर्यटक आए। लेकिन पिछले साल, धारा 370 को हटाने के बाद, अगस्त में केवल 10,000 पर्यटक कश्मीर आए। यह उल्लेखनीय है कि पर्यटन उद्योग कश्मीर की अर्थव्यवस्था के लिए रीढ़ की हड्डी है क्योंकि लाखों परिवारों का रोजगार प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से इससे जुड़ा हुआ है।

इसी तरह, पिछले साल 5 अगस्त के बाद, कश्मीर के फल उद्योग को भी गंभीर नुकसान हुआ। कश्मीर सालाना 1,35,000 मीट्रिक टन फल उगाता है। अकेले सेब उत्पादन से कश्मीर को 14,000 करोड़ रुपये की वार्षिक आय होती है।  

पिछले साल 5 अगस्त के बाद हुए आधिकारिक लॉकडाउन के कारण, समय पर देश के बाजारों में फल वितरित करना संभव नहीं था। केंद्रीय गृह मंत्रालय के अनुसार, नेशनल एग्रीकल्चर कोऑपरेटिव मार्केटिंग फेडरेशन ऑफ इंडिया ने बाग मालिकों से केवल 70.45 करोड़ रुपये का माल खरीदा। यही कारण है कि पिछले साल, चूंकि सेब बाहरी बाजार में नहीं पहुंच सके थे, इसलिए पूरे माल को सड़कों पर और ठेलों पर घाटी के विभिन्न हिस्सों में कौड़ियों के भाव में बिकते देखा गया था।

चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्रीज का अनुमान है कि पिछले साल 5 अगस्त के बाद घाटी में सामान्य जीवन में व्यवधान के कारण अकेले पर्यटन क्षेत्र में कुल 1 लाख 44, हज़ार 500 लोगों ने अपनी नौकरी खो दी और कश्मीर में 4.5 लाख लोगों ने अपनी नौकरी खो दी है।

बेरोजगारी में असाधारण वृद्धि

विशेषज्ञों का कहना है कि जम्मू और कश्मीर की कुल जनसंख्या एक करोड़ 25 लाख में से 40 लाख लोग काम करने के योग्य हैं। लेकिन उनमें से 15 प्रतिशत पहले से ही बेरोजगारी से जूझ रहे हैं और अब बेरोजगारों की संख्या तीन गुना हो गई है।

अर्थशास्त्री क्या कहते हैं 

अर्थशास्त्रियों का कहना है कि कोरोना वायरस के फैलने से दुनिया की अर्थव्यवस्था सिकुड़ गई है। कोरोना से नुक़सान इस साल फरवरी या मार्च में शुरू हुआ। लेकिन कश्मीर का मामला कुछ अलग है। कश्मीर की अर्थव्यवस्था पर पिछले साल अगस्त में कड़ा प्रहार किया गया था। अब सभी व्यापार पंगु हो गए हैं। लोगों की खरीदने की क्षमता खत्म हो गई है। जिनके पास पैसा है, वे खर्च नहीं कर रहे हैं।

विदेश के पैसे का सहारा

कश्मीर के शीर्ष अर्थशास्त्री प्रोफेसर निसार अली ने ‘सत्य हिंदी’ के साथ एक विस्तृत बातचीत में कहा कि अगर सरकारी कर्मचारियों और विदेश में काम करने वाले लोगों के वेतन नहीं होते, तो यहाँ भुखमरी की स्थिति होती। प्रो. अली ने कहा, “जम्मू और कश्मीर में, सरकारी कर्मचारियों के वेतन और सेवानिवृत्त कर्मचारियों की सालाना पेंशन 50,000 करोड़ रुपये होती है। इसके अलावा, हमें खाड़ी देशों, यूरोप और संयुक्त राज्य अमेरिका में काम करने वाले जम्मू-कश्मीर के लोगों से 2500 करोड़ रुपये की विदेशी मुद्रा मिलती है। जबकि हमारा कॉटेज उद्योग, जो लॉकडाउन से बहुत अधिक प्रभावित नहीं था, उससे भी हमें सालाना 2,000-3,000 करोड़ रुपये की आमदनी हो रही  है। यही वह धन है जो इस समय हमारे समाज में घूम रहा है।'' उन्होंने कहा कि अगर यह आय नहीं होती तो पिछले साल अगस्त के बाद कश्मीर में  भुखमरी की स्थिति बन चुकी होती।