कश्मीर में 65 दिनों के बाद भी हालात सामान्य नहीं हो सके हैं। मोबाइल फ़ोन पूरी तरह चालू नहीं हैं और इस वजह से लोगों को ख़ासी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है। अंग्रेजी अख़बार ‘द इंडियन एक्सप्रेस’ में छपी ख़बर के मुताबिक़, राज्यपाल की ओर से घाटी में पर्यटकों की आवाजाही को खोलने के आदेश के बाद भी कोई पर्यटक यहां नहीं आया है। इसके अलावा बीडीसी चुनावों को लेकर भी राजनीतिक दलों के बीच कोई उत्साह नहीं है और बीजेपी को छोड़कर बाक़ी सभी राजनीतिक दलों ने मंगलवार को घोषणा की है कि वे इस चुनाव में हिस्सा नहीं लेंगे। कश्मीर के ये हालात केंद्र सरकार के उन दावों के बिलकुल उलट हैं, जिसमें उसने दावा किया था कि घाटी में हालात सामान्य हो चुके हैं।
‘द इंडियन एक्सप्रेस’ ने पिछले एक हफ़्ते में श्रीनगर और दक्षिण कश्मीर के शोपियां, पुलवामा में तैनात कई सरकारी अधिकारियों और पुलिस अफ़सरों से बातचीत की है। अख़बार के मुताबिक़, एक वरिष्ठ अफ़सर ने कहा है कि केंद्र सरकार सोचती है कि इतने दिनों में कश्मीर में कोई बड़ी घटना नहीं हुई है और इसका मतलब हालात सामान्य हैं, लेकिन यह धारणा पूरी तरह ग़लत है। एक अन्य वरिष्ठ पुलिस अफ़सर ने कहा कि घाटी में कई जगहों पर स्थानीय लोग अपनी दुकानों को खोलने के लिए तैयार नहीं हैं।
अख़बार के मुताबिक़, एक सरकारी अफ़सर ने कहा कि इस तरह के हालातों को सामान्य नहीं कहा जा सकता और हम सभी को इस बात को स्वीकार करना चाहिए। उन्होंने यह भी कहा कि हालांकि नेशनल कॉन्फ़्रेंस के नेताओं को पार्टी के नेता फ़ारूक अब्दुल्ला से मिलने की अनुमति देने को सही क़दम माना जा रहा है लेकिन फिर भी इसका बहुत ज़्यादा फ़ायदा होता नहीं दिखता और शायद इसी वजह से महबूबा मुफ़्ती ने अपनी पार्टी के नेताओं से मिलने से मना कर दिया।
एक अफ़सर ने अख़बार से कहा कि सरकारी अधिकारी और पुलिस अफ़सर भी अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज पा रहे हैं, इसलिए मोबाइल फ़ोन सेवाओं को पूरी तरह चालू किया जाना बेहद ज़रूरी है तभी लोग स्कूल में अपने बच्चों के संपर्क में रह सकेंगे। इसके अलावा अभी भी श्रीनगर में सुबह और शाम को कुछ घंटों के लिए ही दुकानें खुल रही हैं।
अख़बार के मुताबिक़, एक दूसरे अफ़सर ने कहा कि 5 अगस्त को लिये गये फ़ैसले को लेकर क्या प्रतिक्रिया होगी, यह कहा नहीं जा सकता और यह कब होगी, इसकी टाइमिंग को लेकर भी कोई जानकारी नहीं है लेकिन इससे यह नहीं माना जा सकता कि हालात सामान्य हैं। उन्होंने कहा कि किसी बड़ी घटना के न होने के पीछे कारण यह है कि घाटी में बड़ी संख्या में जवान तैनात हैं।
मेयर मट्टू ने भी यही कहा था
श्रीनगर के मेयर और जम्मू-कश्मीर पीपल्स कॉन्फ़्रेंस (जेकेपीसी) के प्रवक्ता जुनैद अज़ीम मट्टू ने एनडीटीवी के साथ बातचीत में सितंबर में भी कुछ इसी ओर इशारा किया था। मट्टू ने कहा था कि अगर कश्मीर में लाशें नहीं मिल रही हैं तो इसका मतलब यह नहीं है कि हालात सामान्य हो गए हैं। उन्होंने यह भी कहा था कि हालात सामान्य होने का दावा करना पूरी तरह हक़ीक़त से परे है। मट्टू ने कहा, ‘किसी की भावनाओं को अपने फ़ैसले से और जोर-जबरदस्ती कर क़ैद कर देने का यह मतलब नहीं है कि हालात सामान्य हैं। बीजेपी सरकार की हिरासत में लेने की नीति पूरी तरह यही है।’
इससे पहले भी यह ख़बर आई थी कि लोग अनुच्छेद 370 को हटाये जाने से नाराज़ हैं और वे अपने बच्चों को स्कूल नहीं भेज रहे हैं। कुछ ख़बरों में यह भी कहा गया है कि 2016 में बुरहान वानी की मौत के समय भी इतने ख़राब हालात नहीं थे।
पुलिस अफ़सरों का कहना है कि लोगों ने अपमान, नाराज़गी, ग़ुस्से और विरोध का जवाब ख़ुद से ही कर्फ़्यू लगाकर दिया है और हिंसा के जरिये इसे जताने की कोशिश नहीं की है। एक शीर्ष पुलिस अफ़सर ने अख़बार को बताया कि केंद्र सरकार के इस फ़ैसले के ख़िलाफ़ कोई प्रतिक्रिया नहीं हो रही है और लोग चुप हैं लेकिन उन्हें समझ नहीं आ रहा है कि इस चुप्पी का क्या मतलब है लेकिन इसे शांत माहौल कहना ठीक नहीं होगा।
ख़बर के मुताबिक़, जम्मू-कश्मीर पुलिस और सेना का कहना है कि सीमापार से घुसपैठ की कोशिशें लगातार जारी हैं और सूत्रों के मुताबिक़, पुंछ, राजौरी, गुलमर्ग, शोपियां और पुलवामा के ग्रामीणों का कहना है कि उन्होंने कुछ लोगों को छोटे समूहों में घुसपैठ करते देखा है।
एक सीनियर पुलिस अफ़सर ने कहा कि हालात सामान्य होने की यह धारणा उल्टी भी साबित हो सकती है। उन्होंने कहा कि सुरक्षा इंतजामों को भी बढ़ाना पड़ा है। जम्मू-कश्मीर पुलिस ने पुलिसकर्मियों को 15 जून से छुट्टी नहीं दी थी और 5 अगस्त के बाद से तो उनकी आगे की छुट्टियां भी कैंसिल कर दी गईं।
इमरान के भाषण के बाद हुए थे प्रदर्शन
अंग्रेजी अख़बार ‘द हिंदू’ ने कुछ ही दिन पहले ख़बर दी थी कि संयुक्त राष्ट्र में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान ख़ान के भाषण के बाद कश्मीर में 24 घंटे के भीतर कुल 23 जगहों पर प्रदर्शन हुए। इस दौरान उन्होंने जमकर नारेबाज़ी भी की। प्रदर्शनकारियों को तितर-बितर करने के लिए पुलिस ने आंसू गैस के गोले छोड़े। ये प्रदर्शन बाटापोरा, लाल बाज़ार, सौरा, चानापोरा, बाग़-ए-मेहताब और कई दूसरी जगहों पर हुए। एक पुलिस अफ़सर ने ‘द हिंदू’ को बताया था कि कई प्रदशर्नकारी मसजिदों में घुस गए और उन्होंने वहाँ से भारत के विरोध में नारेबाज़ी की और धार्मिक गाने बजाये।
ऑल-वुमन फ़ैक्ट-फ़ाइंडिंग नाम की टीम ने हाल ही में कश्मीर की स्थिति का जायजा लिया था और राज्य के अलग-अलग हिस्सों में जाकर लोगों से मिलकर एक रिपोर्ट तैयार की थी। रिपोर्ट के मुताबिक़, जम्मू-कश्मीर में ज़िंदगी ख़ौफ़ और पाबंदी में क़ैद है।
कश्मीर में कर्फ़्यू का मुद्दा हिंदुस्तान और पाकिस्तान के बीच से संयुक्त राष्ट्र और फिर दुनिया तक के देशों तक पहुँच गया है। केंद्र सरकार और राज्यपाल सत्यपाल मलिक प्रेस के सामने दावे करते हैं कि कश्मीर में हालात सामान्य हैं लेकिन 65 दिन बाद भी जब पुलिस और सेना के अफ़सर हालात को सामान्य नहीं कह रहे हैं तो यह कैसे माना जा सकता है कि वहां के हालात सामान्य हैं।