जम्मू-कश्मीर : बंदी के दौरान 18 वर्षीय किशोर की मौत, कारण पर विवाद

05:00 pm Sep 05, 2019 | सत्य ब्यूरो - सत्य हिन्दी

जम्मू-कश्मीर में महीने भर की बंदी में एक और मौत की ख़बर पक्की हो गई है। श्रीनगर के तेज तर्रार 18 वर्षीय किशोर असरार अहमद ख़ान  की मौत की पुष्टि पुलिस ने कर दी है। शहर के शेर-ए-कश्मीर इंस्टीच्यूट ऑफ़ मेडिकल साइसेंज  में बुधवार की शाम उसकी मौत हो गई, रिश्तेदारों ने उसे पास के ही कब्रिस्तान में दफ़ना दिया। इसके पहले एक निजी ट्रक के ड्राइवर को सुरक्षा बलों का ड्राइवर समझ कर भीड़ ने पत्थरों से हमला कर मार दिया था। 

मौत की वजह पर विवाद

लेकिन असरार की मौत के कारणों पर विवाद गहराता जा रहा है। असरार के पिता का दावा है कि इस किशोर की मौत पेलेट गन की गोलियाँ और आँसू गैस के गोले लगने से हुई। उनका दावा है कि असरार को पहले पेलेट गन के छर्रे लगे, जिससे वह ज़मीन पर गिर पड़ा। फिर उसके सिर में आँसू गैस का खोखा लगा।

अल जज़ीरा के मुताबिक़, असरार के पिता फ़िरदौस अहमद ख़ान ने कहा, 'उस घटना के कई गवाह हैं। अस्पताल के डॉक्टरों ने भी कहा था कि वह पेलेट गन की गोलियों और आँसू गैस के खोखे से जख़्मी हुआ था। इसे साबित करने के लिए हमारे पास सबूत भी हैं।

पत्थर या पैलेट?

लेकिन पुलिस और प्रशासन इससे इनकार करते हैं। उनका कहना है कि किशोर पत्थरबाजी कर रहा था और किसी और के फेंके गए पत्थर लगने से वह ज़ख़्मी हो गया था। 

मुझे अच्छी तरह पता है। आपसे किसने कहा कि वह गोली लगने से मरा? वह गोली लगने या पेलेट गन से जख़्मी नहीं हुआ, उसे पत्थर से चोट लगी थी।


मुनीर ख़ान, वरिष्ठ पुलिस अफ़सर, जम्मू-कश्मीर

अस्पताल की रिपोर्ट में कहा गया है कि किशोर किसी भोथरी चीज (ब्लंट ऑब्जेक्ट) लगने से ज़ख़्मी हुआ था। उसकी स्थिति सुधर रही थी, पर बुधवार की शाम उनकी मौत हो गई। 

रिश्तेदारों का कहना है कि असरार पत्थरबाजी में शरीक नहीं था। वह क्रिकेट खेल रहा था। उसी समय पुलिस ने पेलेट गन से गोलियाँ चलाईं और आँसू गैस के गोले दागे, जो जाकर असरार के सिर पर लगे। वह वहीं गिर पड़ा, उसे उठा कर अस्पताल में दाखिल कराया गया।

'500 में से 495 नंबर'

असरार के पिता का कहना है कि वह बहुत ही मेधावी छात्र था। पिछले क्लास में उसे 500 में से 495 नंबर मिले थे। वह कहते हैं, 'असरार इस तरह चला जाएगा, यह सोचा भी नहीं था।'

असरार के साथ क्रिकेट खेलने वाले एक पड़ोसी ने कहा, 'हम उसे आबे कहते थे। यदि वह जीवित रहता तो बड़ा क्रिकेटर बन सकतता था।'

'आबे' नहीं रहा। पर उसकी मौत से कई चीजें बदल गईं। सरकार का दावा भी उनमें एक है।  संविधान के अनुच्छेद 370 में बदलाव कर जम्मू-कश्मीर के विशेष दर्जे को ख़त्म करने के बाद सरकार दावा कर रही थी कि वहाँ स्थिति बिल्कुल सामान्य है और इसके लिए तर्क देती थी कि वहाँ अब तक एक आदमी की भी मौत नहीं हुई है। सरकार अब यह दावा नहीं कर सकेगी। पहली मौत हो चुकी है और सरकार इसे मानती है।