एक रिपोर्ट में कहा गया है कि केंद्र सरकार जम्मू कश्मीर से सेना को चरणबद्ध तरीक़े से हटाना चाहती है। अगर सेना के इस प्रस्ताव को मंजूरी मिली तो सेना की मौजूदगी सिर्फ़ लाइन ऑफ़ कंट्रोल पर होगी। सवाल है कि सेना को जम्मू कश्मीर से क्यों हटाया जा रहा है? इस सवाल का जवाब बाद में पहले यह जान लें कि आख़िर इन सैनिकों को कब तैनात किया गया था और किन वजहों से उन्हें तैनात करना पड़ा था।
वैसे तो जम्मू कश्मीर में जैसे जैसे आतंकवादी घटनाएँ बढ़ीं वैसे वैसे सेना को वहाँ लंबे समय से तैनात किया जाता रहा है, लेकिन उनकी तैनाती का सबसे ताज़ा मामला 2019 के अगस्त महीने से पहले हुआ था। 5 अगस्त 2019 का ही वह दिन था जब अनुच्छेद 370 को हटाने की प्रक्रिया शुरू की गई थी और इसकी घोषणा की गई थी।
5 अगस्त 2019 को राज्यसभा में भारी शोर-शराबे के बीच गृहमंत्री अमित शाह ने जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 हटाने का संकल्प पेश किया था। उन्होंने कहा था कि अनुच्छेद 370 का सिर्फ़ खंड एक लागू होगा और राष्ट्रपति ने इसे मंजूरी दे दी है। गृहमंत्री ने कहा था कि जम्मू-कश्मीर से लद्दाख को अलग कर दिया गया है, जम्मू-कश्मीर और लद्दाख दोनों को अब केंद्र शासित प्रदेश बना दिया गया है।
यह एक ऐसा फ़ैसला था जिसका बड़े पैमाने पर विरोध होने की आशंका थी। संसद में तो विपक्षी दलों ने विरोध किया, लेकिन जम्मू कश्मीर में विरोध-प्रदर्शन नहीं होने दिया गया। न तो आम लोगों के लिए और न ही राजनीतिक दलों के लिए ऐसी गुंजाइश छोड़ी गई। ऐसा इसलिए हुआ कि सरकार ने पहले ही बड़ी संख्या में सेना की तैनाती कर दी थी और राज्य में नेताओं सहित बड़ी संख्या में सक्रिय लोगों को गिरफ़्तार कर लिया था।
संसद में अनुच्छेद 370 हटाए जाने से पहले किसी को इसकी भनक नहीं लगने दी गई थी। लेकिन 2019 में 5 अगस्त से पहले जब बड़ी संख्या में सैनिकों की तैनाती की गई थी तो इसको लेकर कयास लगाए जाने लगे थे। तब जुलाई महीने के आखिरी दिनों में ख़बर आई थी कि तत्कालीन राज्य में 10 हज़ार अतिरिक्त जवानों को भेजा गया। सशस्त्र बलों की अतिरिक्त टुकड़ियाँ भेजने से राज्य में हलचल मच गई थी। इसके बाद 5 अगस्त तक 35000 से ज़्यादा सैनिकों की तैनाती कर दी गई थी।
इतनी बड़ी संख्या में राज्य में सैनिकों की तैनाती के बाद सवाल उठ रहे थे कि आख़िर राज्य में क्या होने वाला है। तरह-तरह के कयास लगाए जा रहे थे। कुछ रिपोर्टों में यह कयास लगाया गया था कि क्या किसी बड़ी आतंकी घटना की आशंका है?
राज्य में परिसीमन की कथित तैयारी को भी बीजेपी के उसी लक्ष्य से जोड़कर देखा जा रहा था।
इसके साथ ही अनुच्छेद 370 और अनुच्छेद 35ए को लेकर भी सुगबुगाहट थी। लेकिन चूँकि यह मामला तब सुप्रीम कोर्ट में लंबित था तो इनको हटाए जाने के बारे में पक्के तौर पर कयास भी नहीं लगाए गए थे।
अनुच्छेद 370 को हटाने का फ़ैसला तब लिया गया था जब राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू था। राज्यसभा में प्रस्ताव पेश करने से पहले ही श्रीनगर में धारा 144 लागू कर दी गई थी। नेताओं को नज़रबंद कर दिया गया था और बड़ी संख्या में लोगों को गिरफ़्तार किया गया था। हर गली-चौराहे पर सैनिक थे।
बहरहाल, जम्मू कश्मीर के राजनीतिक दल लंबे समय से कश्मीर के भीतरी इलाक़ों से सेना हटाने की मांग कर रहे हैं। राज्य में प्रशासन बदलने के बाद तमाम अधिकारी सरकार से कह रहे हैं कि जम्मू कश्मीर की स्थिति सामान्य बताने का दावा तभी किया जा सकता है, जब वहां पर सेना नहीं हो।
इसी बीच अब द इंडियन एक्सप्रेस ने सूत्रों के हवाले से बताया है कि इस मामले से जुड़े अधिकारियों का कहना है कि कश्मीर के भीतरी इलाकों से सेना हटाने के प्रस्ताव पर लगभग दो साल से चर्चा हो रही है। यह प्रस्ताव अब रक्षा मंत्रालय, गृह मंत्रालय, जम्मू-कश्मीर पुलिस के पास है। इस प्रस्ताव में कहा गया है कि सेना को हटाकर उसकी जगह सीआरपीएफ को तैनात किया जाएगा। सीआरपीएफ कानून व्यवस्था के अलावा आतंकवाद के हालात को भी संभालेगी। इस काम में जम्मू कश्मीर पुलिस की भी भूमिका बढ़ेगी।