77 साल के जदानंद सिंह इतने लंबे समय लालू प्रसाद के साथ रहे हैं कि उनके बारे में यह मान लेना कि वे आरजेडी से अलग हो जाएंगे, असंभव सा लगता है लेकिन राजनीति में संबंधों के बीच जब परिवार आ जाए तो बहुत कुछ नहीं चाहते हुए भी करना पड़ता है। फिलहाल आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष पद से उनके इस्तीफे की बात हवा में तैर रही है जिसे जगदानंद सिंह खुद न तो खारिज कर रहे हैं और न ही स्वीकार कर रहे हैं। उनकी यह लुकाछिपी राजद के लिए सिरदर्द बनी हुई है।
याद रखने की बात यह है कि दिवंगत रघुवंश प्रसाद सिंह के बाद आरजेडी के पास क्षत्रिय समाज का कोई और बड़ा लीडर नहीं है। इसलिए आरजेडी के लिए जगदानंद सिंह को किनारे लगाना आसान नहीं जान पड़ता। दूसरी तरफ़ जगदानंद सिंह का आरजेडी से इतना पुराना नाता है कि वे इस आशियाने को छोड़कर कहीं और आशियाना नहीं बनाना चाहते।
चूँकि लालू प्रसाद इस समय अपने किडनी ट्रांसप्लांट के लिए सिंगापुर में हैं, इसलिए आरजेडी की तरफ़ से कोई निर्णायक बयान आने में समय लगेगा। वैसे, आरजेडी के आधिकारिक प्रवक्ता मृत्युंजय तिवारी ने जगदानंद सिंह के इस्तीफे की बात से इनकार किया है। इसके आगे वह कुछ और बोलना नहीं चाहते।
यही हाल जगदानंद सिंह का है कि जो आरजेडी के प्रदेश कार्यालय न आने और दिल्ली में हुई राष्ट्रीय कार्यकारिणी और राष्ट्रीय परिषद की बैठक में शामिल न होने के सवाल पर बस इतना कह रहे हैं कि वे आराम कर रहे हैं। कई लोग यह लिख रहे हैं कि जगदा बाबू कैमूर के कोपभवन में हैं और लालू उन्हें इस बार बहुत भाव देने के मूड में नहीं हैं।
इसी साल 10 सितंबर को लगातार दूसरी बार आरजेडी के प्रदेश अध्यक्ष बनाये गये जगदानंद सिंह को लालू प्रसाद बहुत अहमियत देते रहे हैं, इसमें कोई दो राय नहीं हो सकती लेकिन हाल के दिनों में आरजेडी में उनके दिन बहुत अच्छे नहीं गुजर रहे हैं। इसके लिए लालू और जगदानंद की दूसरी पीढ़ी जिम्मेदार मानी जा रही है।
जगदानंद सिंह के प्रदेश अध्यक्ष रहते हुए लालू के बड़े बेटे तेज प्रताप यादव को उनसे बहुत शिकायत रही है। लालू के जेल में रहते हुए तेज प्रताप के मामले को तेजस्वी यादव किसी तरह संभालते रहे हैं।
अब जबकि लालू प्रसाद जेल से बाहर हैं तो तेज प्रताप की शिकायतें कम मिल रही हैं लेकिन जगदानंद अब अपने बेटे सुधाकर सिंह के मसले पर खफा चल रहे हैं।
पहली बार विधायक बने सुधाकर सिंह पहले राजद छोड़कर भाजपा में शामिल हुए थे और चुनाव भी लड़ा था लेकिन 2020 के विधानसभा चुनाव से कुछ पहले उन्होंने दोबारा राजद का हाथ थामा था। उन्हें जब कृषि मंत्री बनाया गया तो उन्होंने अपने विभाग के बारे में ऐसी प्रतिकूल टिप्पणियां कीं जो मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को बिल्कुल बर्दाश्त नहीं थीं। उन्होंने अपने विभाग को भ्रष्ट और खुद को चोरों का सरदार कहा था। उन्होंने नीतीश कुमार के कृषि रोड मैप का भी एक तरह से मजाक उड़ाया था और कैबिनेट की बैठक से ऐसे चले आये थे जैसे कोई रूठा इंसान घर से भाग जाता है। पहली बार विधायक और मंत्री बने सुधाकर सिंह का यह रवैया नीतीश कुमार से अधिक आरजेडी के लिए सिरदर्द बन गया था।
आजकल यह बात मानने के लिए कोई तैयार नहीं होता कि पहली बार मंत्री बना कोई आदमी नीतियों की बुनियाद पर सरकार से अलग हो जाए। आरजेडी के अंदरूनी सूत्र बताते हैं कि कृषि रोड मैप तो बहाना है, असल में सुधाकर सिंह चाहते थे कि उनके खिलाफ राइस मिल से चावल देने में गबन का जो केस चल रहा है, सरकार उसे वापस ले ले। यह भी कहा जाता है कि इस मांग के लिए नीतीश तो राजी नहीं ही थे, खुद लालू प्रसाद ने भी इस मांग पर सख्त नाराज़गी जतायी थी।
ऐसा माना जाता है कि जगदानंद सिंह तो पहले से नीतीश कुमार के साथ दोबारा हाथ मिलाने को बिल्कुल तैयार नहीं थे लेकिन आरजेडी में नयी पीढ़ी के आगे उनकी एक न चली। इसकी संभावना भी व्यक्त की जाती है कि जगदानंद ने बेटे को मंत्री बनवाकर ऐसे बयान दिलवाये जिससे नीतीश के लिए उनकी नापसंदगी का पता चलता है।
जगदानंद के इस्तीफे की ख़बर आरजेडी के लिए कैसे सिरदर्द बनी हुई है, इसका पता इस बात से भी लगता है कि उनकी जगह पूर्व मंत्री अब्दुल बारी सिद्दीकी और पूर्व विधायक शिवचंद्र राम का नाम प्रदेश अध्यक्ष के लिए चर्चा में आया हुआ है, हालाँकि दोनों ने इसकी जानकारी से इनकार किया है।
जगदानंद सिंह के बारे में यह माना जाता है कि कैमूर में उनकी पकड़ अच्छी है और आरजेडी को राजपूूत वोट दिलाने में उनकी भूमिका रहती है। इससे भी अधिक महत्वपूर्ण बात यह है कि छपरा में राजपूतों की संख्या अच्छी है जहां से लालू-राबड़ी के राजनैतिक हित जुड़े रहे हैं।
आरजेडी नेतृत्व आगे बढ़कर जगदानंद सिंह के खिलाफ कोई कार्रवाई इसलिए नहीं करना चाहता कि इससे राजपूतों के बीच गलत संदेश जाएगा लेकिन वह इस बात के लिए भी राजी नहीं हैं कि वे अपनी मर्जी पार्टी के अंदर या बाहर चलाएं।
इससे पहले इसी तरह का बहुत करीबी संबंध रखने वाले रामकृपाल यादव उस समय आरजेडी से अलग हो गये थे जब लालू प्रसाद ने पारिवारिक दबाव के कारण उनका टिकट काटकर अपनी बेटी मीसा यादव को लोकसभा सीट का उम्मीदवार बना दिया था। रामकृपाल ने आरजेडी से नाता तोड़ भाजपा का दामन थाम लिया, चुनाव में मीसा को मात दी और मंत्री भी बने थे।
इसलिए जगदानंद सिंह के मामले में राजद नेतृत्व राम कृपाल वाली गलती नहीं दोहराना चाह रहा लेकिन उनके सामने बहुत विकल्प भी नहीं छोड़ रहा है।