लोकसभा चुनाव से पहले आर्थिक मोर्चे पर मोदी सरकार के लिए बुरी ख़बर है। खुदरा महँगाई दर बढ़कर 4 महीने के उच्च स्तर पर पहुँच गई है। फ़रवरी में खुदरा महँगाई दर जनवरी के 1.97 फ़ीसदी से बढ़कर 2.57 फ़ीसदी हो गई। इसका सीधा असर आम लोगों पर पड़ता है। इधर, देश की औद्योगिक उत्पादन दर जनवरी 2019 में पिछले वर्ष की समान अवधि के 7.5 फ़ीसदी से घटकर 1.7 फ़ीसदी हो गई है। यह बड़ी गिरावट हैं। ऐसी आर्थिक स्थिति पर विपक्ष सरकार को घेर सकता है।
केंद्रीय सांख्यिकी कार्यालय (सीएसओ) के आधिकारिक आंकड़े में कहा गया है कि माह-दर-माह आधार पर भी औद्योगिक उत्पादन सूचकांक (आईआईपी) की वृद्धि दर में गिरावट आयी है। इस बीच, सीएसओ ने दिसंबर, 2018 के आईआईपी आँकड़ों को ऊपर की ओर संशोधित कर 2.6 प्रतिशत कर दिया है। पहले इसके 2.4 प्रतिशत रहने का अनुमान था।
माना जा रहा है कि विनिर्माण क्षेत्र, विशेष रूप से पूँजीगत सामान और उपभोक्ता सामान क्षेत्र के सुस्त प्रदर्शन की वजह से आईआईपी की वृद्धि दर कम हुई है। रेटिंग एजेंसी केयर ने भी कुछ ऐसे ही कारण गिनाए हैं। इसका कहना है कि विनिर्माण क्षेत्र में गिरावट का अंदाज़ा पहले से ही था। इसके अलावा पहले से ही बड़ा स्टॉक पड़ा हुआ था और माँग नहीं बढ़ने से उत्पादन में कमी आयी।
सीएसओ द्वारा आईआईपी के आँकड़े रिजर्व बैंक की चार अप्रैल को आने वाली मौद्रिक समीक्षा से पहले जारी किए गए हैं। माना जा रहा है कि इससे रिजर्व बैंक पर ब्याज दर में कटौती का दबाव बढ़ेगा।
सीएसओ के आंकड़ों के अनुसार जनवरी में विनिर्माण क्षेत्र की वृद्धि दर घटकर 1.3 प्रतिशत रह गई, जो जनवरी, 2018 में 8.7 प्रतिशत पर थी। बिजली क्षेत्र की वृद्धि दर 0.8 प्रतिशत रही, जो एक साल पहले इसी महीने में 7.6 प्रतिशत थी। हालाँकि, खनन क्षेत्र का प्रदर्शन बेहतर रहा। जनवरी में खनन क्षेत्र की वृद्धि दर बढ़कर 3.9 प्रतिशत हो गई, जो एक साल पहले इसी महीने में 0.3 प्रतिशत थी। पूँजीगत सामान क्षेत्र का उत्पादन जनवरी महीने में घट गया।
- मध्यवर्ती वस्तुओं के उत्पादन में भी गिरावट आई। आँकड़ों के अनुसार जनवरी में टिकाऊ उपभोक्ता सामान और ग़ैर-टिकाऊ उपभोक्ता सामान क्षेत्र की उत्पादन वृद्धि भी कम रही। चालू वित्त वर्ष की अप्रैल से जनवरी अवधि में औद्योगिक उत्पादन की औसत वृद्धि दर 4.4 प्रतिशत रही है जो इससे पिछले वित्त वर्ष की इसी अवधि में औसतन 4.1 प्रतिशत रही थी।
खुदरा महँगाई दर बढ़कर 2.57% पर
फ़रवरी में खुदरा महँगाई दर बढ़कर 2.57 फ़ीसदी पर पहुँच गई है। आंकड़ों के मुताबिक़ जनवरी में खुदरा महँगाई दर 1.97 फ़ीसदी रही। दिसंबर माह में यह 2.19 फीसदी रही थी और इससे पहले के महीने नवंबर में 2.33 फ़ीसदी थी। थोक मूल्य सूचकांक (डब्ल्यूपीआई) आधारित मुद्रास्फीति दिसंबर में आठ महीने के निचले स्तर पर जाकर 3.80 फ़ीसदी रही थी। इसकी वजह ईंधन और खाद्य पदार्थों की क़ीमतें कम होना रहा है। नवंबर में थोक मुद्रास्फीति 4.64 फीसदी थी, जबकि दिसंबर 2017 में यह 3.58 फीसदी थी।
जीडीपी वृद्धि दर भी निराशाजनक स्थिति में
फ़रवरी में आये सरकारी आँकड़े में जीडीपी दर में गिरावट दर्ज की गयी थी। भारत की विकास दर अक्टूबर-दिसंबर 2018 के दौरान 6.6% दर्ज हुई है। यह छह तिमाही में सबसे कम है। इससे कम विकार दर अप्रैल-जून 2017 में 6.0% रही थी। एक साल पहले दिसंबर 2017 तिमाही में अर्थव्यवस्था 7.7% बढ़ी थी। अक्टूबर-दिसंबर 2018 में विकास दर कम रहने की मुख्य वजह घरेलू और निर्यात माँग में कमी है। रिजर्व बैंक ने इस साल के लिए 7.4% ग्रोथ का अनुमान जताया था। पहली-दूसरी तिमाही के आँकड़े भी संशोधित किए गए हैं। अप्रैल-जून की विकास दर को 8.2% से घटाकर 8.0% और जुलाई-सितंबर का 7.1% से घटाकर 7% किया गया है। सालाना विकार दर भी 2017-18 के 7.2% की तुलना में 7% रहने का अनुमान है।