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आर्थिक आधार पर आरक्षण के ख़िलाफ़ इंदिरा साहनी जा सकती हैं कोर्ट 

आर्थिक आधार पर आरक्षण के ख़िलाफ़ इंदिरा साहनी जा सकती हैं कोर्ट 

इंदिरा साहनी ने कहा कि सरकार द्वारा संविधान में किया गया 124वाँ संशोधन अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 15 का हनन करता है जो कि संविधान का मूल आधार है। 

सवर्ण समेत आर्थिक रूप से पिछड़े तमाम लोगों  को सरकारी नौकरियों और शिक्षा संस्थानों में दाखि़ले के मामले में 10 फ़ीसद आरक्षण दिए जाने के मुद्दे पर वकील इंदिरा साहनी सुप्रीम कोर्ट का रुख़ कर सकती हैं। 

ये वही इंदिरा साहनी हैं, जिन्होंने मंडल आयोग की सिफ़ारिशों को लागू करने के ख़िलाफ़ अदालत में याचिका दायर की थी और नरसिम्हा राव सरकार के आरक्षण क़ानून के विरुद्ध अदालत गई थीं। सुप्रीम कोर्ट ने उनकी याचिका पर सुनवाई के बाद दिए 'इंदिरा साहनी बनाम भारतीय संघ' के नाम से मशहूर मामले के फ़ैसले में कहा था कि आरक्षण की ऊपरी सीमा 50 प्रतिशत से ज़्यादा नहीं हो सकती। वही इंदिरा साहनी जल्द ही इस पर फ़ैसला करेंगी कि उन्हें संसद में पारित किए गए संविधान संशोधन के ख़िलाफ़ अदालत जाना चाहिए या नहीं। साहनी ने कहा कि यह कानून भारतीय संविधान के मूल नियमों का उलंघन करता है। 

इतना ही नहीं, उन्होंने यह भी कहा कि इस बावत किसी ने पहले से ही अदालत में याचिका दायर कर दी है। साहनी का कहना है , 'इस बिल को कोर्ट में चुनौती दी जाएगी। मुझे इस बारे में सोचना होगा कि क्या मैं इस संविधान संशोधन को कोर्ट में चुनौती दे सकती हूं।'

इंदिरा साहनी ने कहा कि सरकार द्वारा संविधान में किया गया 124वाँ संशोधन अनुच्छेद 14 और अनुच्छेद 15 का हनन करता है जो कि संविधान का मूल आधार है।

संशोधन में आर्थिक आधार तय नहीं

साहनी का कहना है कि यह संशोधन मंडल आयोग की सिफ़ारिशों पर दिए गए फ़ैसले के भी ख़िलाफ़ है क्योंकि उसमें साफ़ तौर से कहा गया है कि आर्थिक आधार पर आरक्षण नहीं दिया जा सकता। उन्होंने आगे कहा कि इस संशोधन में यह भी तय नहीं किया गया है कि आख़िर में आर्थिक आधार पर कमजोर कौन है। सरकार ने यह यह फ़ैसला राज्यों सरकारों पर छोड़ा है कि वह अपने हिसाब से तय करें कि कौन आर्थिक रुप से कमज़ोर है। ऐसी स्थिति में सभी राज्यों की सरकारें अपने-अपने हिसाब से इसकी परिभाषा तय करेंगी।

पिछड़ा वर्ग जाति के आधार पर परिभाषित 

इंदिरा साहनी ने कहा है कि इस बिल के बाद अब आरक्षण की सीमा बढ़कर 60 फ़ीसदी तक हो जाएगी और बिना आरक्षित वाले कोटा के योग्य लोगों के लिए मुसीबतें बढ़ जाएंगी। 1992 में प्रधानमंत्री नरसिम्हा राव के कोटा बिल को चुनौती देने वाली साहनी ने कहा कि उस समय कोर्ट के फैसले की सबसे अहम बात थी संविधान में पिछड़े वर्ग की परिभाषा। साहनी के मुताबिक़, पिछड़े वर्ग को जाति और सामाजिक स्थिति के आधार पर परिभाषित किया गया है न कि आर्थिक आधार पर। उनका कहना है कि इसी आधार पर मोदी सरकार के हालिया कदम को चुनौती दी जा सकेगी। जैसे साल 1992 में नरसिम्हा राव के फैसले को दी गई थी। ग़ौरतलब है कि आर्थिक रूप से पिछड़े लोगों को 10 प्रतिशत आरक्षण देने के लिए संसद में संविधान संशोधन बिल पास किया गया है और अब इसे राष्ट्रपति ने भी मंजूरी दे दी है। इसमें सवर्ण समेत वे सभी लोग आएँगे जिन्हें अब तक किसी तरह के आरक्षण नहीं मिला है। 

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