लगातार बिगड़ रही अर्थव्यवस्था की हालत को संभालने के लिए रिजर्व बैंक ऑफ़ इंडिया (आरबीआई) ने सोमवार को एक बड़ा क़दम उठाते हुए केंद्र सरकार को लाभांश और सरप्लस फ़ंड से 1.76 लाख करोड़ रुपये हस्तांतरित करने का निर्णय लिया है। बता दें कि कुछ ही दिन पहले केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने के लिए कई क़दमों की घोषणा की थी।
आरबीआई की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि शक्तिकांत दास के नेतृत्व वाले आरबीआई के सेंट्रल बोर्ड ने सरकार को 1,76,051 करोड़ रुपये हस्तांतरित करने का जो निर्णय लिया है, उसमें 2018-19 के लिए 1,23,414 करोड़ रुपये सरप्लस और 52,637 करोड़ रुपये अतिरिक्त प्रावधान के रूप में हैं।
खज़ाने को लेकर रही थी तनातनी
बता दें कि लोकसभा चुनाव से पहले केन्द्र सरकार और आरबीआई के बीच लंबे समय तक बैंक के खज़ाने को लेकर काफ़ी तनातनी रही थी। रिज़र्व बैंक के पास क़रीब नौ लाख सत्तर हज़ार करोड़ रुपये का अतिरिक्त धन भंडार है। मोदी सरकार चाहती थी कि बैंक इसमें से कुछ हिस्सा अपने पास रखे और बाक़ी पैसा उसे दे दे ताकि वह चुनावी साल में सरकार लोकलुभावन योजनाओं की घोषणाएँ कर सके। लेकिन बैंक इसके लिए तैयार नहीं था। आरबीआई के तत्कालीन गवर्नर उर्जित पटेल और सरकार के बीच झगड़े की एक बड़ी जड़ यही थी। अंत में पटेल ने दिसंबर 2018 में अपने पद से इस्तीफ़ा दे दिया था। पटेल के इस्तीफ़े को लेकर उस समय कई तरह के सवाल उठे थे क्योंकि पटेल को प्रधानमंत्री मोदी की पसंद माना जाता था और यह माना गया था कि पटेल का इस्तीफ़ा उनके और केंद्र सरकार के बीच चल रही तनातनी का परिणाम है।इस मुद्दे पर दिसंबर, 2018 में आरबीआई के पूर्व गवर्नर बिमल जालान की अध्यक्षता में छह सदस्यों के एक पैनल का गठन किया गया था।
इस पैनल की अध्यक्षता को लेकर भी सरकार और आरबीआई में अलग-अलग राय होने की ख़बरें लोकसभा चुनाव से पहले आई थीं। मोदी सरकार चाहती थी कि बिमल जालान इस पैनल के अध्यक्ष बनें, लेकिन आरबीआई ने अपने पूर्व डिप्टी गवर्नर राकेश मोहन का नाम सुझाया था।
जालान सरप्लस में से सरकार को पैसे देने को लेकर लचीला रुख रखते थे, जबकि राकेश मोहन सार्वजनिक तौर पर यह कह चुके थे कि सरप्लस से सरकार को पैसा दिया जाना एक ग़लत परंपरा की शुरुआत होगी। सरप्लस को लेकर जालान और राकेश मोहन के विचार अलग-अलग थे और इसी वजह से पैनल के अध्यक्ष को लेकर बैंक और सरकार के बीच मतभेद की ख़बरें भी सामने आईं थीं।
आरबीआई द्वारा सरप्लस ट्रांसफ़र से केंद्र सरकार को बैंकों में पूंजी डालने में मदद मिलेगी। केंद्रीय वित्त मंत्री निर्मला सीतारमन पहले ही सरकारी बैंकों में 70 हजार करोड़ रुपये की पूंजी डालने की घोषणा कर चुकी हैं। माना जा रहा है कि आरबीआई की ओर से यह रकम मिलने के बाद केंद्र सरकार के अर्थव्यवस्था को बढ़ाने के प्रयासों को प्रोत्साहन मिलेगा।
ऑटोमोबाइल से लेकर टैक्सटाइल इंडस्ट्री से यह ख़बरें आ रही हैं कि उद्योग-धंधों की हालत ठीक नहीं है लेकिन फिर भी मोदी सरकार दावा करती रही कि अर्थव्यवस्था की हालत ठीक है। लेकिन नीति आयोग के उपाध्यक्ष राजीव कुमार ने कुछ ही दिन पहले कहा था कि देश में 70 साल में अब तक नक़दी का ऐसा संकट नहीं देखा गया है और सरकार के लिए यह अप्रत्याशित समस्या है। इसके बाद यह माना गया कि अब सरकार ने भी मान लिया है कि वास्तव में अर्थव्यवस्था की हालत डांवाडोल है। उसके बाद निर्मला सीतारमण ने कई क़दमों की घोषणा की और अब आरबीआई के इस क़दम के बाद अर्थव्यवस्था को संजीवनी मिलने की उम्मीद है।