अगर आप मोबाइल ऐप से क़र्ज़ ले रहे हैं तो होशियार हो जाइये। कहीं ऐसा न हो कि आप को इसकी क़ीमत अपनी जान देकर चुकानी पड़े। ऐसे कई मामले आ चुके हैं, जब मोबाइल ऐप से आसान शर्तों पर क़र्ज़ लेने वाले क़र्ज़ के ऐसे जाल में फँसे कि उन्हे आत्महत्या करनी पड़ी। इससे जुड़ी माइक्रो-फ़ाइनेंस कंपनियों के एक बड़े रैकेट का भंडाफोड़ हुआ है।
सवाल यह है कि जिस माइक्रो फ़ाइनेंस ने बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था को नई ऊँचाइयाँ हासिल करने में मदद की, जिसकी वजह से इससे जुड़े एक व्यक्ति को नोबेल पुरस्कार मिला, वही माइक्रो फ़ाइनेंस क्यों और कैसे भारत में लोगों को आत्महत्या की ओर धकेल रहा है और पूरी अर्थव्यवस्था के लिए संकट खड़ा कर रहा है।
एक महीने में पाँच आत्महत्याएं
- तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में पी. सुनील ने 17 दिसंबर को आत्महत्या कर लिया, क्योंकि क़र्ज़ देने वालों के एजेंट उन्हें लगातार धमकियाँ दे रहे थे।
- तेलंगाना के ही मेडक ज़िले के एद्दु श्रवण ने क़र्ज़ नहीं चुकाने की स्थिति में खुदकुशी कर ली।
- सिद्दीपेट की कृणि मोनिका ने भी क़र्ज़ नहीं चुका पाने और लगातार मिल रही धमकियों से घबरा कर खुदकुशी कर ली।
- मशहूर धारावाहिक 'तारक मेहता का उल्टा चश्मा' के लेखक अभिषेक मकवाना ने भी इन्ही स्थितियों में 27 नवंबर को अपनी जान दे दी।
- आंध्र प्रदेश में एमबीए की हुई एक युवती ने सिर्फ़ 25,000 रुपए का क़र्ज न चुका पाने की वजह से आत्महत्या कर ली।
गिरफ़्तारियाँ, जाँच
इन मामलों के उजागर होने के बाद प्रशासन और पुलिस हरक़त में आई। तेलंगाना के मुख्यमंत्री वाई. एस. जगनमोहन रेड्डी ने तात्कालिक राहत का एलान करते हुए जाँच का आदेश दे दिया।
इसके बाद चेन्नई, बेंगलुरु और दूसरे जगहों की पुलिस सक्रिय हुई और अनाधिकृत मोबाइल ऐप से जुड़े चार लोगों को गिरफ़्तार किया गया, जिनमें दो चीनी नागरिक हैं। प्रवर्तन निदेशालय ने इस पूरे मामले की जाँच शुरू कर दी है।
दरअसल यह मामला सिर्फ तेलंगाना या आंध्र प्रदेश तक सीमित नहीं है। मोबाइल ऐप पर क़र्ज़ देने वाली कंपनियों का जाल कई राज्यों में फैला हुआ है, यह तेज़ी से फैलता जा रहा है।
'इकोनॉमिक टाइम्स' के अनुसार, मार्च से नवंबर के बीच आंध्र प्रदेश में 70 लोगों ने इस तरह के मामलों में आत्महत्या की हैं।
कैसे चलता है यह रैकेट?
क़र्ज़ देने वाले इन मोबाइल ऐप की सबसे बड़ी खूबी यह है कि ये बग़ैर किसी ज़मानत या गारंटी के छोटे क़र्ज़ आसान शर्तों पर देते हैं, पर एक बार क़र्ज़ लेने के बाद आदमी इस जाल में इस तरह फँसता है कि वह क़र्ज़ लेता चला जाता है, एक क़र्ज़ को चुकाने के लिए दूसरा क़र्ज़ लेता है और इस तरह वह उस स्थिति में पहुँच जाता है जब क़र्ज़ चुकाने की स्थिति में नहीं रहता है। दूसरी ओर इन ऐप के लोग उसे तरह-तरह की धमकियाँ देते हैं, उसे अपमानित करते हैं और उसके घर पहुँच कर उसे सबके सामने जलील करते हैं, उसे शारीरिक नुक़सान पहुँचाने तक की धमकी दी जाती है। ऐसे में निराश-हताश वह व्यक्ति अपनी जान देने को तैयार हो जाता है।
तेलंगाना के हैदराबाद स्थित साइबराबाद थाने के अनुसार,
मोबाइल ऐप डाउनलोड करते हुए क़र्ज़ की प्रक्रिया शुरू हो जाती है। उस पर कुछ काग़ज़ात के साथ आवेदन अपलोड करते ही क़र्ज़ मंजूर हो जाता है और आवेदनकर्ता के बैंक खाते में पैसा पहुँच भी जाता है। उसके और उसके परिवार वालों के फ़ोन नंबर व दूसरी जानकारियाँ ली जाती हैं।
इसके बाद दूसरे 20-25 मोबाइल ऐप वाले फ़ोन करना शुरू करते हैं और तरह तरह के क़र्ज़ देने की पेशकश करने लगते हैं। यह क़र्ज़ 50,000 रुपए तक का हो सकता है, इस पर 35 प्रतिशत तक का ब्याज लगता है और भारी ज़ुर्माने का प्रावधान होता है।
ज़ुर्माना, धमकी, गालियाँ
समय पर किश्त नहीं चुकाने पर रोज़ाना 3,000 रुपए तक का जु़र्माना लगाया जा सकता है और इस ज़ुर्माने पर ब्याज अलग से लगता है। ये बातें ऐप वाले पहले फ़ोन पर नहीं बताते। हालांकि उनकी सेवा शर्तों में ये बातें होती हैं, पर क़र्ज़ लेने वाले अममूमन ये शर्ते नहीं पढ़ते और स्वीकार कर लेते हैं।
निश्चित समय पर क़र्ज़ नहीं चुकाने की स्थिति में ग्राहक को ऐप वालों से फ़ोन आने लगता है, पहले यह पैसे देने से जुड़ा होता है, उसके बाद गाली-गलौच शुरू होती है और उसके बाद खुले आम धमकियाँ दी जाती हैं। इसके बाद उसके घर पहुँच कर सबके सामने अपमानित किया जाता है।
ईडी जाँच
इन मोबाइल ऐप के ये तमाम क्रिया-कलाप रिज़र्व बैंक दिशा-निर्देशों समेत तमाम नियम-क़ानून के ख़िलाफ़ हैं। प्रवर्तन निदेशाल यानी एनफ़ोर्समेंट डाइरेक्टरेट के मुताबिक ये तमाम ऐप अनाधिकृत हैं, ग़ैर-क़ानूनी हैं, ये नियमों का उल्लंघन करते हैं। हैदराबाद, गुरुग्राम, बेंगलुरु और दूसरी जगहों पर बने इनके कॉल सेंटर मुख्य रूप से पैसे उगाही के लिए ही होते हैं।
'टाइम्स ऑफ़ इंडिया' के मुताबिक़, ईडी ने पाया है कि हैदराबाद से गिरफ़्तार एक चीनी नागरिक झ़ू वेई और उसके भारतीय सहयोगियों ने 1.4 करोड़ लेनदेन कर 21,000 करोड़ उगाहे। ये लोग ब्याज ही नहीं, प्रोसेसिंग फ़ीस, ज़ुर्माना और जीएसटी तक वसूलते हैं।
इस तरह के क़र्ज़ देने वालों में कैपिटल फ़्लोट, ज़ेस्ट मनी, इन्डीफ़ाई, क्रेडक्स, भारतपे, लेंडिंगकार्ट और पैसाबाज़ार प्रमुख हैं।
रिज़र्व बैंक की चेतावनी
भारतीय रिज़र्व बैंक ने 22 दिसंबर को एक बयान जारी कर छोटे व्यवसायियों और आम लोगों को अनाधिकृत डिजिटल ऐप वालों से आगाह किया। इसने यह भी कहा कि लोग इस तरह के ऐप की पूरी जानकारी हासिल कर लें।
भारत में बीते कुछ समय से डिजिटल तरीके से यानी ऑनलाइन या मोबाइल ऐप के ज़रिए क़र्ज़ देने का बहुत बड़ा बाज़ार बन गया है। 'फ़ाइनेंशियल एक्सप्रेस' के अनुसार, वित्तीय वर्ष 2020 में इस तरह के क़र्ज़ की कल रकम 150 अरब डॉलर हो सकती है, समझा जाता है कि यह 2023 तक बढ़ कर 350 अरब डॉलर तक जा सकती है।
माइक्रो फ़ाइनेंसिंग पर सवाल
डिजिटल प्लैटफ़ॉर्म से मिलने वाले इन क़र्ज़ों से पूरे लघु व सूक्ष्म क़र्ज़ यानी माइक्रो फ़ाइनेंसिंग पर सवाल उठता है।
बीबीसी के मुताबिक़, सिर्फ आंध्र प्रदेश में इन कंपनियों ने 80 अरब डॉलर के क़र्ज़ दिए हैं, लेकिन उन्हें डर है कि लगभग 4 अरब डॉलर के क़र्ज़ डूब सकते हैं।
माइक्रोफ़ाइनेंस इंस्टीच्यूशन्स नेटवर्क के विजय महाजन विजय महाजन ने बीबीसी से कहा,
“
"कई क़र्ज़ देने, ज़्यादा क़र्ज़, ज़ोर-ज़बरदस्ती से पैसे वसूलने और कंपनियों के शीर्ष अधिकारियों द्वारा पैसे बनाने की प्रवृत्ति से यह स्थिति बनी है।"
विजय महाजन, विजय महाजन, माइक्रोफ़ाइनेंस इंस्टीच्यूशन्स नेटवर्क
इसी तरह माइक्रो क्रेडिट रेटिंग्स इंटरनेशनल लिमिटेड मैल्कम हार्पर ने 'इकोनॉमिक टाइम्स' से कहा, "आंध्र प्रदेश में अनपढ़ महिला को ये क़र्ज़ देना किसी अनपढ़ को दवा बेचने जैसा है।"
भारत में माइक्रो-फ़ाइनेंसिंग की मौजूदा स्थिति ठीक वैसी ही है, जैसी अमेरिका में 2008 में सबप्राइम मॉर्टगेज़ की वजह से बनी स्थिति थी। वहाँ लोगों ने सस्ते ब्याज पर आसानी से मिलने वाले क़र्ज़ लेकर मकान वगैरह खरीद लिए, बाद में मंदी आई, वे उसका भुगतान नहीं कर सके और वे मकान उन्हें औने-पौने दाम पर बेचने पड़े। लेकिन बैंकों का बहुत पैसा डूब गया, जिससे पहले से चल रही मंदी और बढ़ी।
बांग्लादेश और भारत
यह विडंबना है कि माइक्रो-फ़ाइनेंस को महिलाओं को ताक़तवर बनाने का औजार माना गया था क्योंकि इससे महिलाएँ क़र्ज़ लेकर छोटा-मोटा धंधा शुरू कर सकती थीं, पर यह उनके और उनके परिजनों की आत्महत्या का सबब बन गया है।
यह भी विडंबना है कि सूक्ष्म क़र्ज़ यानी माइक्रो-फ़ाइेनेंसिंग ने भारत के पड़ोसी देश बांग्लादेश में अहम काम किया है। ग्राामीण बैंक के अध्यक्ष मुहम्मद युनूस को माइक्रो-फ़ाइनेंसिंग के ज़रिए हज़ारों महिलाओं की आर्थिक स्थिति सुधारने के लिए नोबेल पुरस्कार दिया गया था। मछली पालन से लेकर मुर्गी पालन और कपड़ा व्यापार जैसे छोटे-मोटे काम के लिए 5,000 से 50,000 टाका तक के दिए गए क़र्ज़ ने बांग्लादेश की अर्थव्यवस्था को सुधारने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।
लेकिन भारत में इसका उल्टा हो रहा है। यहां लोग कर्ज़ के जाल में फँस कर आत्महत्या कर रहे हैं और कंपनियों को मुनाफ़ा हो रहा है। लेकिन यदि दिए हुए क़र्ज़ के अरबों रुपए नहीं वसूल हुए तो इससे पूरी भारतीय अर्थव्यवस्था पर बुरा असर पड़ सकता है।