आम चुनाव से ठीक पहले अंतरिम बजट के जरिये किसानों को सालाना छह हज़ार रुपये देने की मोदी सरकार की योजना ज़्यादातर पिछड़ी जाति के किसानों को ध्यान में रखकर लाई गई है।
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आबादी में बड़ी हिस्सेदारी के अलावा भी छोटी जोतों (2 हेक्टेयर से कम) के ज़्यादातर किसान पिछड़ी जातियों से आते हैं। हालाँकि किसी आँकड़े के अभाव में बटाईदार किसान (जो कुल किसानों का क़रीब 30 प्रतिशत हैं) इस लाभ से वंचित रहेंगे। फ़ायदा वही पा सकेंगे जिनका नाम खतौनी में दर्ज़ है।
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यह योजना क़रीब साढ़े बारह करोड़ खतौनी धारकों को दो-दो हज़ार रुपये की तीन किश्तों में साल भर में कुल छह हज़ार रुपये की मदद करेगी। इसके लिए बजट में करीब 75 हज़ार करोड़ रुपये की राशि प्रस्तावित की गई है।
मोदी सरकार आम चुनाव प्रचार के दौरान अप्रैल में ही योजना की पहली किश्त के दो हज़ार रुपये साढ़े बारह करोड़ खतौनीधारकों के खातों में पहुँचाने की कोशिश करेगी जिसका तुरंत मतपेटी पर असर पड़े।
नेशनल सैम्पल सर्वेक्षण संगठन (एनएसएसओ) के 2013 के आँकड़ों के अनुसार यह बात साबित भी होती है कि किसानों की कुल संख्या का बहुमत पिछड़े वर्ग से आने वाले किसानों का है। ज़ाहिर है कि इस योजना की पहली किश्त के 2 हज़ार रुपये, किसानों के समाज के उस हिस्से को सरकार के पक्ष में वोट देने के लिए मनाने की कोशिश करेंगे, जो सामान्यतया बीजेपी का समर्थक वर्ग का नहीं माना जाता।
किसानों को पहली किश्त के रूप में दिए जाने वाले सिर्फ़ 2 हज़ार रुपये कितना असर डाल पाएँगे, जब खाद, बिजली, गैस, डीजल के दाम किसान के ग़ुस्से का सबब बने हुए हैं, यह मतगणना के बाद ही पता चलेगा।
आँकड़ों के हिसाब से देश भर में कुल 15.60 करोड़ से ज़्यादा ग्रामीण किसान परिवार हैं। इनमें से क़रीब 13.5 करोड़ किसान परिवारों के पास 2 हेक्टेयर या उससे कम ज़मीन है। क़रीब 1.11 करोड़ भूमिहीन किसान परिवार हैं जिनके पास .002 हेक्टेयर से भी कम ज़मीन है। यह संख्या कुल मिलाकर 14.6 करोड़ के आसपास बैठती है। इसके अलावा लगभग 1.10 करोड़ ही ऐसे किसान परिवार हैं जिनके पास 2 हेक्टेयर से ज़्यादा ज़मीन है, इनमें से भी आधे के क़रीब पंजाब और राजस्थान के हैं।
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इनमें से 2 हेक्टेयर से कम जोत वाले क़रीब साढ़े 6.5 करोड़ किसान परिवार पिछड़ी जातियों के हैं, जिनके चुनाव में समर्थन मिलने की संभावना से विपक्ष आत्ममुग्ध है। लेकिन मोदी जी की कोशिश इन्हीं का समर्थन हासिल करने की है। सवर्ण जातियों के किसान उन्हीं को समर्थन देंगे, ऐसा विश्वास करने के तमाम कारण और अनुभव मौजूद हैं।
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हालाँकि इस तरह का कोई अध्ययन मौजूद नहीं है जिससे पता चल सके कि किसानों की कितनी संख्या टेलीविजन के प्रभाव में है एक अध्ययन के अनुसार टेलिविज़न पर समाचार देखने वालों का बहुमत मोदी जी को पसंद करता है।