भारत की खुदरा महंगाई फरवरी के महीने में बढ़कर 6.07 प्रतिशत हो गई है। यह जनवरी महीने में 6.01 फ़ीसदी से ज़्यादा है। जनवरी महीने की मुद्रस्फीति पिछले छह महीने में सबसे ज़्यादा थी। भारतीय रिज़र्व बैंक ने इस महंगाई को 6 प्रतिशत की सीमा के अंदर रखने का लक्ष्य रखा है। यानी मौजूदा महंगाई की दर ख़तरे के निशान को पार कर गई है।
आज ही थोक महंगाई का आँकड़ा भी आया है और यह भी बढ़ी हुई है। आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ अब महंगाई और भी बढ़ने की आशंका जता रहे हैं। ऐसा इसलिए कि एक तो यूक्रेन रूस युद्ध का असर है और डीजल-पेट्रोल भी महंगा होने के आसार हैं।
बहरहाल, सांख्यिकी और कार्यक्रम कार्यान्वयन मंत्रालय ने सोमवार को खुदरा मुद्रास्फीति का आँकड़ा जारी किया है। इसे उपभोक्ता मूल्य सूचकांक यानी सीपीआई द्वारा मापा जाता है।
यह लगातार दूसरी बार है जब सीपीआई डेटा भारतीय रिजर्व बैंक के 6 फ़ीसदी के ऊपरी मार्जिन से ऊपर आया है। मार्च 2026 को समाप्त होने वाली पांच साल की अवधि के लिए खुदरा मुद्रास्फीति को 4 प्रतिशत पर बनाए रखने का निर्णय लिया गया है और कहा गया है कि इसे 2 प्रतिशत ऊपर या नीचे यानी 2 से 6 प्रतिशत की सीमा में रखने का लक्ष्य रहेगा।
मुद्रास्फीति मुख्य रूप से आरबीआई द्वारा अपनी मौद्रिक नीति बनाते समय ध्यान में रखा जाता है। पिछले महीने केंद्रीय बैंक की मौद्रिक नीति समिति ने रेपो दर को लगातार दसवीं बार 4 फ़ीसदी पर अपरिवर्तित रखा था।
आँकड़ों से पता चलता है कि उपभोक्ता खाद्य मूल्य सूचकांक यानी खाने-पीने की चीजों की महंगाई फरवरी के दौरान बढ़कर 5.85 प्रतिशत हो गई। यह जनवरी में 5.43 प्रतिशत थी।
इसमें वृद्धि तेल और वनस्पति की कीमतों में वृद्धि के कारण हुई। यह फरवरी में सालाना आधार पर 16.44 प्रतिशत ऊपर चढ़ गई। इसके अलावा सब्जियों की कीमतों में 6.13 फीसदी की तेजी देखी गई, जबकि मांस और मछली में 7.45 फीसदी और अंडे की कीमतों में 4.15 फीसदी की तेजी देखी गई। ईंधन में भी 8.73 प्रतिशत, कपड़े और जूते में 8.86 प्रतिशत की तेजी आई।
बता दें कि आज ही थोक महंगाई का आँकड़ा भी सामने आया है। वाणिज्य और उद्योग मंत्रालय द्वारा जारी आँकड़ों से पता चलता है कि फ़रवरी में देश भर में थोक मुद्रास्फीति यानी महंगाई बढ़कर 13.11 प्रतिशत हो गई है। जनवरी के महीने में थोक मूल्य सूचकांक यानी डब्ल्यूपीआई में 12.96 प्रतिशत की वृद्धि हुई, जबकि पिछले साल दिसंबर के लिए डब्ल्यूपीआई को 13.56 प्रतिशत से संशोधित कर 14.27 प्रतिशत किया गया था। फरवरी 2021 में डब्ल्यूपीआई 4.83 फीसदी पर था। अप्रैल 2021 से शुरू होकर लगातार 11वें महीने डब्ल्यूपीआई मुद्रास्फीति दहाई अंक में बनी हुई है।
यह रिपोर्ट तब आई है जब आशंका जताई जा रही है कि पेट्रोल डीजल की क़ीमतें बढ़ सकती हैं। ऐसा इसलिए कि देश में आखिरी बार इनके दाम जब 2 नवंबर को बढ़े थे तब कच्चे तेल के दाम क़रीब 85 डॉलर प्रति बैरल थे, लेकिन वही कच्चा तेल अब यूक्रेन रूस युद्ध के बाद लगातार 100 डॉलर प्रति बैरल से ऊपर है।
यदि डीजल-पेट्रोल के दाम बढ़ते हैं तो यह महंगाई और भी ज़्यादा बढ़ेगी। ऐसा इसलिए कि हर चीज की ढुलाई पर इसका असर पड़ेगा और चीजें महंगी होंगी।