इसे कहते हैं सिर मुड़ाते ही ओले पड़ना। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की सरकार ने शपथ ग्रहण किया, उसके अगले ही दिन ख़बर आई कि भारत अब सबसे तेज़ गति से बढ़ने वाली अर्थव्यवस्था नहीं रही। उसे चीन ने पछाड़ दिया। घरेलू खपत घटने और अंतरराष्ट्रीय माँग गिरने की वजह से भारत के उत्पादन और सेवा क्षेत्रों में जनवरी-मार्च की तिमाही में काफ़ी कमी आई। नतीजा यह है कि अर्थव्यवस्था बढ़ने की रफ़्तार में यह चीन से पीछे छूट गया।
रॉयटर्स ने अपने एक सर्वे में पाया कि जनवरी-मार्च के दौरान भारत की अर्थव्यवस्था 6.30 प्रतिशत की दर से बढ़ी, यह पाँच साल की न्यूनतम वृद्धि दर है। इसके साथ ही सेंट्रल स्टैटिस्टिकल ऑफ़िस ने कहा है कि अंतिम तिमाही के दौरान सकल घरेलू उत्पाद 5.8 प्रतिशत की दर से बढ़ा है। दूसरी ओर, इसी दौरान चीन की अर्थव्यवस्था ने 6.40 प्रतिशत की वृद्धि दर दर्ज की। इस तरह चीन भारत से आगे निकल गया।
पिछले साल इसी तिमाही में यह दर 8.1 फ़ीसदी थी। मार्च की इस तिमाही की जीडीपी विकास दर पिछले पाँच साल में सबसे कम है। इससे पहले 2013-14 में यह दर सबसे कम 6.4 फ़ीसदी थी। इसके साथ ही पूरे साल यह विकास दर 6.8 फ़ीसदी पहुँच गई। पिछले वित्तीय वर्ष के दौरान सालाना जीडीपी विकास दर 7.2 फ़ीसदी रही थी।
क्या करेंगी निर्मला सीतारमण
निर्मला सीतारमण को वित्त मंत्री बनाया गया है। उन्होंने वित्त मंत्री का कार्य भार ऐसे समय संभाला है जब पूरी भारतीय अर्थव्यवस्था बदहाल है। समझा जाता है कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने इसे दुरुस्त करने के लिए ही सीतारमण को यह विभाग सौंपा। पर्यवेक्षकों का कहना है कि वह जल्द ही ठोस कदम उठाएँगी। शायद केंद्र सरकार अर्थव्यवस्था को बल देने के लिए कुछ ऐसे फ़ैसले करे जिससे उत्पादन और माँग बढ़े। पर सरकार की जो स्थिति है, उसे देखते हुए उससे यह उम्मीद नहीं की जानी चाहिए कि वह ज़्यादा पैसे खर्च करेगी। समझा जाता है कि रिजर्व बैंक 4-6 जून को होने वाली बैठक में ब्याज दर में 25 बेसिस अंकों की कटौती करे, जिससे यह 5.75 प्रतिशत पर आ जाए। इससे कॉरपोरेट जगत खुश होगा।पर्यवेक्षकों का कहना है कि वित्त मंत्री अपने बजट मे करों में कुछ छूट का एलान कर सकती हैं, ताकि उत्पादों की कीमतें गिरे और इससे माँग को बल मिले। पर इससे उनके बजट के लिए पैसे की किल्लत होगी और वह राजस्व घाटे को एक सीमा से आगे नहीं ले जा सकती। दिक्क़त यह है कि अर्थव्यवस्था के तमाम इंडीकेटर यही बता रहे है कि रफ़्तार धीमी हो चुकी है। माँग, खपत, उत्पादन, आयात-निर्यात, मुद्रा की दर, सभी मामलों में भारत पिछले साल में फिसला है।